प्रेम रावत:
मधुमक्खी। मधुमक्खी क्या करती है ? उसके बिज़ी होने का एक कारण है। वो ढूंढ रही है, ढूंढ रही है, ढूंढ रही है, ढूंढ रही है — हर एक फूल के पास जा के वो ढूंढ रही है कि, उस फूल में से वो थोड़ा-सा शहद रूपी अमृत मिले और वो उसको ले। कब तक रहेगी वो उस फूल में ? जब तक वो जितना उसको लेना है, वो ले न ले। और जब ले लिया फिर दूसरे फूल के पास, फिर दूसरे फूल के पास, फिर दूसरे फूल के पास।
अगर हर एक स्वांस हमारे लिए एक उस बनाने वाले का एक फूल {flower} है, तो हमको फूल तो मिल गया। मधुमक्खी की तरह उसमें से मीठा अगर रस निकालना हमने सीखा नहीं, तो फूल तो मिलते रहेंगे, मिलते रहेंगे, मिलते रहेंगे, मिलते रहेंगे और बेकार होते रहेंगे, बेकार होते रहेंगे, बेकार होते रहेंगे।
यह जो स्वांस रूपी फूल है, यह भरा हुआ है उस अमृत से...अमृत से...अमृत से...। कौन से अमृत से ? उस शांति के अमृत से — उस आनंद के अमृत से भरा हुआ है।
इस हर एक स्वांस रूपी फूल में से वो जो उसमें अमृत — शहद रूपी जो अमृत उसमें बसा हुआ है, उसको निकालने की विधि मेरे पास है।
और अगर कभी आपको इंट्रेस्ट हो कि आप अपने स्वांस रूपी फूल में से वो अमृत निकालना चाहते हैं, तो मेरे पास आओ।
प्यास के साथ आना, प्यास के बिना मत आना। प्यास क्या है ? उस मधुमक्खी के लिए तो वो इच्छा है कि वो उसको उड़ा के ले जाती है — वह है प्यास। छोटी सी तो है वो! सारे जीवन भर खोजती रहेगी, खोजती रहेगी, खोजती रहेगी— वह है प्यास।
जिस दिन अपनी प्यास को तुम महसूस करो — प्यास ही एक साधन है जो पानी तक ले जायेगी। किसी ने तुम्हारे अन्दर प्यास डाली है।
अगर यह जो स्वांस अन्दर आ रहा है, इसकी कीमत नहीं पहचानी अपने जीवन में, सारा जीवन व्यर्थ चला जायेगा।
आये थे कुछ कमाने के लिए, जाना है खाली हाथ। और मैं लोगों से कहता हूं — खाली हाथ तुम आये थे, पर खाली हाथ तुमको जाने की जरूरत नहीं है।
हर एक फूल में से निकालो जितना निकाल सकते हो, और डालो उस प्याले में ताकि वो भर जाये, वो उस अमृत से भर जाये। फिर जहां जाना है, जब हृदय के अन्दर आनंद है, हृदय के अन्दर तसल्ली है, हृदय के अन्दर शांति है तो चलो, फिर चलो — जहां जाना है चलो। पानी पीयो, ठाठ से पीयो। अपनी प्यास को बुझाओ...प्यास को बुझाओ...प्यास को बुझाओ... प्यास को बुझाओ...।