पहचान (ऑडियो)

यह जो जीवन रूपी दिन मिला है, यह जो सूरज चढ़ा है, क्या करोगे तुम इस दिन में ? क्या करोगे तुम आज ?
Sep 10, 2019
तुम्हारे घट में है क्या ? अलख पुरुष अविनाशी! और तुम उसको जानते नहीं हो। अगर तुम उसको जान जाओ, तभी तुम्हारे जीवन के अंदर शांति आयेगी।

आना, जाना इस संसार के अंदर जैसे लहर आती जाती रहती हैं, जैसे ये बादल आते जाते रहते हैं, जैसे ये सूरज सबेरे चढ़ता है और शाम को ढल जाता है — ये है तुम्हारी जिंदगी। ये एक दिन का सूरज का चढ़ना है — ये एक सबेरा है, एक दोपहर है, एक शाम है। सूरज के चढ़ने से पहले भी अंधेरा था और सूरज के ढलने के बाद भी अंधेरा हो जायेगा। पर ये जो दिन मिला है, ये जो जीवन रूपी दिन मिला है, ये जो सूरज चढ़ा है, क्या करोगे तुम इस दिन में ? क्या करोगे तुम आज ? क्योंकि ये है तुम्हारा आज। ये जीवन, ये शरीर, इस जीवन का मिलना है तुम्हारा आज, ये है तुम्हारा सवेरा, और एक दिन दोपहर भी होगी और फिर सूरज ढलेगा और शाम भी होगी, और शाम के बाद फिर रात भी होगी।

क्या किया तुमने आज ?

जो तुम कर रहे हो अपने जीवन में, अगर तुमने उस ‘हंस’ को, जो तुम्हारे अंदर विराजमान है, अगर उसको नहीं जाना तो तुम्हारा आना-जाना बराबर है। क्या आना-जाना ?

मुट्ठी बांधे आया जग में, हाथ पसारे जायेगा।

सोचो! सोचने की बात है! अगर विचार करोगे, बच जाओगे। विचार करोगे, बच जाओगे।

एक छोटा-सा कुत्ता था। तो एक दिन टहलते-टहलते, टहलते-टहलते, टहलते-टहलते, वो जंगल में चला गया। और जब जंगल में चला गया तो उसको लगा कि बाप रे बाप! मैं इतने गहरे जंगल में आ गया हूं। खतरा लगा उसको! खतरा लगा तो वो सूंघा उसने। कुत्ता तो है ही! सूंघा उसने। तो उसको गंध ऐसी आई जैसे पहले कभी आयी नहीं थी। तो उसको लगा कि ये कोई शेर-वेर है, जो मेरे को खायेगा। तो आगे चलता गया, चलता गया, चलता गया, चलता गया। आगे उसको मिला एक हड्डियों का बहुत बड़ा ढेर! तो वहां जाकर के बैठ गया। बैठ गया।

अब सोचने लगा, "बचना है, सोच ले!"

इतने में आया शेर पीछे से गुर्राता हुआ।

तो कुत्ता बोलता है, "वाह, वाह, वाह!" कुत्ता बोलता है, "वाह, वाह, वाह! इतने शेरों को खा गया, अभी भी मेरी भूख खत्म नहीं हुई है। एक और शेर मिल जाए तो हो सकता है, मेरी भूख खत्म हो जाए।"

जैसे ही शेर ने ये सुना कि एक छोटा-सा कुत्ता और उसके सामने हड्डियों का ढेर! तो उसको भी लगा कि "हो सकता है, ये मेरे को खा जाय।"

तो शेर बेचारा मुड़ा और चल दिया वहां से दुम दबाए हुए। एक बंदर पेड़ पर चढ़ा हुआ ये सब देख रहा था। बंदर आया नीचे, गया शेर के पास और शेर को उसने बताया, "ये तेरे को बेवकूफ बना रहा है। ये छोटा कुत्ता तेरे को बेवकूफ बना रहा है। ये कह रहा था इसलिए सिर्फ, ताकि तू डर जाये। इसने किसी शेर-वेर को नहीं खाया।"

शेर को बड़ा गुस्सा आया। शेर को बड़ा गुस्सा आया कि मेरे को बेवकूफ बनाता है।

तो बंदर ने कहा, "चलो, वापिस चलो, खाने के लिए उसको!"

शेर ने कहा, "तू बैठ मेरी पीठ पर। चलते हैं।"

बंदर बैठ गया शेर की पीठ पर और चलने लगे।

अब कुत्ता वहीं का वहीं था। सोचा, "फिर सोच ले! अब की गया! इस बार तो बंदर भी आ रहा है। इसी ने कहीं गड़बड़ की होगी। सोच ले!"

तब कुत्ता बोलता है कि "वो बंदर गया कहां ? उसको आधे घंटे मैंने पहले भेजा था शेर लाने के लिए, अभी तक वापिस नहीं आया।"

और जैसे ही शेर ने सुना, उठाया बंदर को, फेंका नीचे और भागना शुरू कर दिया उसने।

सोच लो! क्यों सोच लो ? वो तो शेर था। तुम्हारे आसपास काल मंडरा रहा है। काल! इंतजार कर रहा है, "कब मौका मिले ?" इंतजार कर रहा है, "कब मौका मिले ?" तुम हो, तुमको परवाह ही नहीं है, क्योंकि तुम घमण्ड के नशे में चूर हो। घमण्ड हो जाता है न, घमण्ड! "मैंने ये कर लिया, मैं ये हूं! मेरा ये है, मेरा वो है!" और भूल जाते हैं कि यहां क्यों आए ? क्यों आए ? क्यों तुम्हारा जन्म हुआ ? इसके लिए नहीं। अरे, ये तो कुत्ते के पास भी है। कबीरदास जी कहते हैं, कि "तुम्हारा जन्म हुआ है, ताकि तुम उस चीज को पहचानो, उसको जानो और अपने जीवन को सफल बनाओ।" इसीलिए तुम्हारा जन्म हुआ।

देखो इस दुनिया को। आज जितने स्कूल हैं इस दुनिया के अंदर, पहले कभी नहीं थे। और जितनी क्रांति है इस संसार के अंदर, पहले कभी नहीं थी।

लोग तो कहते हैं न कि "अगर लोग पढ़े-लिखेंगे तो अच्छे बनेंगे।"

अरे, अब इतने स्कूल हैं तो क्रांति क्यों फैल रही है ? पढ़ने-लिखने से क्रांति का कोई संबंध नहीं है। क्रांति मन की अशांति के कारण फैलती है। जबतक मन शांत नहीं होगा लोगों का, जबतक शांति का अहसास नहीं होगा उनको अपने जीवन के अंदर, क्रांति फैलती रहेगी। तुम्हारे जीवन के अंदर भी क्रांति है। तुमको भी परेशान करती है। बिना बात के परेशान करती है। और तुम्हारे घट में है क्या ? अलख पुरुष अविनाशी! और तुम उसको जानते नहीं हो। अगर तुम उसको जान जाओ, तभी तुम्हारे जीवन के अंदर शांति आयेगी। उससे पहले नहीं आ सकती। घमण्ड करने से कुछ नहीं होगा इस संसार के अंदर!

एक वैद्य था — हकीम! उसको मालूम था कि जब वो, उसका टाइम आने वाला है, मरेगा। तो उसको मालूम था कि आयेगा, यमराज का दूत आयेगा। और उसको ये भी मालूम था कि वो एक ही को ले जा सकता है, दो को नहीं ले जा सकता। तो उसने अपना पुतला बनाया और ऐसा पुतला बनाया, ऐसा पुतला बनाया, ऐसा पुतला बनाया कि दोनों एक ही तरीके से दिखाई दें। और जब समय आया तो वो भी लेट गया अपने पुतले को साथ में रख दिया।

आया यमराज का दूत लेने के लिए।

अब वो भी दुविधा में पड़ गया कि "एक ही को ले जाना है, यहां तो दो हैं। किसको ले जाऊं ?"

अब वो भी पड़ा हुआ है वहां, कुछ बोल नहीं रहा है। अपने पुतले की तरह ही वो भी चुपचाप है।

तब यमराज का दूत बोलता है, "हकीम जी! मान गये आपको। ऐसा पुतला बनाया है, ऐसा पुतला बनाया है कि हम भी अचंभे में पड़ गये! पर आप एक चीज भूल गये।"

अब हकीम से रहा नहीं गया। बोलता है, "क्या भूल गया ?"

यम का दूत बोलता है, "ये भूल गया! चुप रहना भूल गया। घमण्ड है तेरे को इतना कि तू चुप नहीं रह सका। तेरे को बोलना था। क्या भूल गया ? यही भूल गया कि तू घमण्ड के अधीन है। चल!" ले गया। यही मनुष्य के साथ होता है।

- प्रेम रावत

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