मोक्ष का दरवाजा

साथ साथ, न० : 4, श्रृंखला, श्री प्रेम रावत द्वारा
Nov 20, 2020
"अपने आपको जानना, अपने आपको पहचानना, इसकी यही कीमत है कि तुम अपने जीवन को सफल करो।" —प्रेम रावत

मेरे श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

आज मैं जिस चीज की बात करना चाहता हूं, एक तो — सबसे बड़ी बात यह है कि हमारे पास, हमारे सामने यह मौका है। ठीक है, "समस्याएं हैं, यह बात है, वह बात है, कोरोना वायरस है, इकोनॉमी का क्या होगा" ये सारी बातें अख़बारों में आती रहती हैं, "कहीं ये हो गया, कहीं वो हो गया" — ये सारी बातें अख़बारों में आती रहती हैं। और खबर है, और खबर है, लोग कहते हैं "ताजी खबर है, ताजी खबर है, इसको पढ़ो, इसको पढ़ो, इसको पढ़ो," पर एक और भी खबर है और वह खबर यह है कि आप जीवित हैं — आप जीवित हैं, आपको ये सारी चीजें करनी हैं, "यह करना है, वह करना है, ये बात होनी चाहिए, ये बात होनी चाहिए, ये बात होनी चाहिए।"

देखिये एक बात तो स्पष्ट है, जिस भी रास्ते पर मनुष्य आज चल रहा है, न मनुष्य खुश है, न रास्ता खुश है। मनुष्य क्यों नहीं खुश है, क्योंकि उसको और चाहिए। सारी प्रकृति क्यों खुश नहीं है, क्योंकि वह प्रकृति को ही परेशान कर रहा है अपनी इच्छाओं को पूरी करने के लिए। सुंदर-सुंदर नदियां उनको मैला कर दिया, सुंदर-सुंदर जंगल उनको काट रहा है। ये  सबकुछ जो हो रहा है इस संसार के अंदर, एक-दूसरे को मारने के लिए सब तैयार बैठे हुए हैं। अच्छा, एक बात आप देख लीजिये — अगर कोई गलती करता है, तो मनुष्य जैसी गलती करता है वैसा कोई नहीं करता है। मनुष्य जैसे गलती करता है और कोई नहीं करता है और मनुष्यों के पास हैं वह बटन जिनको दबाया और अगर गलती से भी दबा दिया और मिसाइल (missile) चल गई तो लाखों के लाखों लोग मर सकते हैं। ये हाल है।

विज्ञान, कोई भी ज्ञान, कोई भी ज्ञान ऐसा होना चाहिए जिससे कि मनुष्य बचें, ये नहीं कि मनुष्यों का अंत हो। तुम क्या हो — मनुष्य हो। मैं क्या हूं — मनुष्य हूं। यह नहीं कि मैं ऐसी चीज बनाऊं जिससे कि मैं तुमको मारुं, नहीं। या तुम मेरे को मारो, नहीं। बल्कि मैं तुमको बचा सकूँ, हानि से बचा सकूँ, ऐसी चीज का मैं अविष्कार करूं। तुम ऐसी चीज का अविष्कार करो। जो वैज्ञानिक लोग हैं वह ऐसी चीज का आविष्कार करें, जिससे कि मनुष्य बचें, मरे नहीं, बचें। परन्तु आज जो हालत है, वो हालत यह बना रखी है मनुष्य ने कि जहाँ देखो लोग एक-दूसरे को मारने के लिए तैयार हैं।

तो अगर इसके बारे में जरा सोचा जाए तो "ये सबकुछ हुआ कैसे!" इतना लालच, इतना लालच, इतना लालच, इतना लालच, इतना लालच, यह आया कहां से लालच! क्योंकि मनुष्य के अंदर अच्छाई तो है। इस संसार के अंदर जो हम अखबारों में पढ़ते हैं, "यह हो रहा है, वह हो रहा है, इसका ऐसे गलत कर दिया, ऐसे किसी ने गलत कर दिया।" ठीक है, परंतु यह मत भूलो इस संसार के अंदर आज भी, अभी भी, बहुत सारे, बहुत सुंदर लोग, अच्छे लोग हैं, जो सचमुच एक-दूसरे का भला चाहते हैं। वो एक-दूसरे को बचाने के लिए तैयार हैं। इस बात को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि अच्छाई मरी नहीं है। इस समय हो क्या रहा है कि जो मनुष्य की बुराइयां हैं, उन पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है और जो अच्छाइयां है, उन पर कम ध्यान दिया जा रहा है। और सबसे बढ़िया चीज क्या है मनुष्य के लिए! उसकी अच्छाई कहां है ? मनुष्य की वह अच्छाई उसके अंदर है।

जो हजारों-हजारों साल पहले, वो लोग जिन्होंने अपने आपको जानने की कोशिश की, अपने आपको पहचानने की कोशिश की और उन लोगों के दिमाग में एक बात स्पष्ट थी कि यह जो मनुष्य है, यह बहुत गलत रास्ते पर चलेगा। क्योंकि उन्होंने उसी समय देखा कि वह गलत रास्ते पर चल रहा था। और उनको लगा कि “अगर ऐसे चलता रहा, चलता रहा, चलता रहा, तो पता नहीं कहां का कहां गलत रास्ते से पहुँच जाएगा।” तो बड़ी सुंदर-सुंदर बातें उन्होंने मनुष्य को समझाने के लिए रखीं। और एक बात, हर एक बात में से एक बात कि जिस अच्छाई को तुम खोज रहे हो, जिस चीज को तुम खोज रहे हो, वह तुम्हारे अंदर है। बाहर नहीं, पेड़ पर नहीं, समुद्र के नीचे नहीं, तुम्हारे अंदर है। और अगर तुम दो मिनट भी बैठ करके इस बात को विचारो, सोचो कि सचमुच में तुम कितने भाग्यशाली हो, इसलिए नहीं कि तुम्हारी जो इच्छाएं हैं, जो बदलती रहती हैं —

मन के बहुत तरंग हैं, छिन छिन बदले सोय।
एकै रंग में जो रहै, ऐसा बिरला कोय ।।


तो ये जो इच्छाएं बदलती रहती हैं — "कभी कहीं भागती हैं, कभी कहीं भागती हैं, कभी कहीं भागती हैं, कभी कहीं भागती हैं।" एक रंग की बात, वह क्या बात है — वह बात है कि तुम बैठ करके सोचो कि तुम सचमुच में कितने भाग्यशाली हो कि वह चीज, जिसकी तुमको तलाश है, वह तुमसे बाहर नहीं है, वह तुम्हारे अंदर है। कितनी सुंदर बात है, पर उसका कोई असर नहीं होता है मनुष्य पर। क्या पूछेगा कि मैं अगर उस चीज को जान जाऊं जो मेरे अंदर है, तो क्या होगा ? मेरा बिजनेस आगे बढ़ेगा! मेरा प्रमोशन होगा! मेरे को ग्रेड्स अच्छे मिलेंगे स्कूल में! मेरे को अच्छा पति मिलेगा; मेरे को अच्छी पत्नी मिलेगी; मेरा घर और बनेगा ?"

ये बातें मनुष्य सोचता है। तुम जब पानी पीते हो, तो उससे क्या होता है ? तुम्हारी प्यास बुझती है। तुम्हारे अंदर भी एक प्यास लगी है अपने आपको जानने की, अपने आपको पहचानने की। और यह प्यास जबतक तुम बुझा नहीं पाओगे, तबतक तुम खोजते रहोगे, खोजते रहोगे, खोजते रहोगे, खोजते रहोगे, यह काम करेगी, यह काम करेगी, नई चीजों का आविष्कार करोगे, नई चीजों — हरेक चीज बदलेगी और बदलते रहोगे, बदलते रहोगे, बदलते रहोगे और तुमको एक मिनट का यह भी नहीं होगा कि "मैं बदल क्यों रहा हूं!” मैं बदल क्यों रहा हूं, पर बदलते रहेंगे लोग। क्यों बदलते रहेंगे ? क्योंकि वो जानते नहीं कि क्यों बदल रहे हैं। उनको खुद ही नहीं मालूम कि क्यों बदल रहे हैं। अगर बदल भी रहे हैं तो उनको मालूम नहीं है कि क्यों बदल रहे हैं। मैं कहता हूं कि वो इसलिए बदल रहे हैं और यही बात उनको, जो लोग इस बात को समझे कि कितना जरूरी है कि मनुष्य अपने आपको समझे। उनको हम लोग संत-महात्मा भी कहते हैं, महापुरुष भी कहते हैं। और आज की बात नहीं है, कल की बात नहीं है, हजारों साल पहले की बात मैं कह रहा हूं। तो क्या कि —  

बड़े भाग मानुष तन पावा |
सुर दुर्लभ सद् ग्रन्थन्हि गावा ||
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा |
पाई न जेहिं परलोक सँवारा

यह मोक्ष का दरवाजा है। इसकी परिभाषा आपके लिए पहले ही कर दी कि आप कितने भाग्यशाली हैं कि यह जो नर तन है, जो आपको मिला है यह देवी-देवताओं को भी दुर्लभ है, उनके पास नहीं है। देवी-देवताओं के बारे में तो कहा जा सकता है कि “वो खा सकते हैं, बना नहीं सकते हैं।” तो जब हवन होता है या पूजा होती है तो देवी-देवताओं को दिया जाता है, क्योंकि वो खा सकते हैं, पर बना नहीं सकते हैं। मनुष्य ही एक ऐसा है जो बना भी सकता है और खा भी सकता है। और क्या-क्या नहीं बना दिया मनुष्य ने! ऐसे-ऐसे पकवान जिनके बारे में सोचते ही मुंह में पानी आता है। और सबसे बड़ी बात कि वह जिसकी तुमको तलाश है, जिस चीज की तुमको तलाश है, जिस चीज की तुमको प्यास है, वह भी तुम्हारे अंदर है।

तो अपने आपको जानना, अपने आपको पहचानना इसकी यही कीमत है कि तुम अपने जीवन को सफल करो। और चीजें हैं जिसके पीछे सब लोग भाग रहे हैं। यह कोई नहीं पूछ रहा है, “क्यों भाग रहे हैं!” यह कोई नहीं — भाग रहे हैं, परंतु यह नहीं मालूम क्यों भाग रहे हैं। यह मालूम है कि जो हो रहा है वह अच्छा नहीं हो रहा है, परन्तु क्यों अच्छा नहीं हो रहा है यह नहीं मालूम। इसके लिए बड़े-बड़े विद्वान लोग बैठकर के आर्टिकल लिखते हैं, बड़ी-बड़ी किताबें लिखते हैं, बड़े-बड़े भाषण होते हैं, बड़े-बड़े डिबेट होते हैं — डिबेट ने किसका पेट भरा! कुछ नहीं, होता वही है। 

एक जमाना था, क्या-क्या नहीं होता था। आज जमाना है, क्या-क्या नहीं हो रहा है। बड़े-बड़े आविष्कार हो गए हैं बीच में, परन्तु मनुष्य अभी भी अपने आपको सुरक्षित नहीं पाता है। अभी भी उसको डर लगता है; अभी भी उसको भय लगता है। छोटी, छोटी, छोटी, छोटी, लड़ाइयां और बढ़ गई हैं। जो हर एक देश का डिफेंस बजट है वह बढ़ रहा है, घट नहीं रहा है, बढ़ रहा है, और बढ़ रहा है, और बढ़ रहा है, और बढ़ रहा है, और बढ़ रहा है। क्यों ? कैसी प्यास लगी है ? क्या चाहते हो ?

कई लोग हैं जिनको तो यह भी नहीं मालूम कि "हृदय" होता क्या है,  पर प्यास तो अंदर से लगी है तुमको। और जबतक वह प्यास बुझेगी नहीं, तबतक तुम खुश नहीं रह पाओगे। सबकुछ होने के बाद भी ऐसा लगेगा जैसे कोई चीज अधूरी है — सबकुछ होने के बाद।

इसीलिए मैं बार-बार लोगों को समझाता हूँ कि "भाई, सबकुछ हमारे आगे है। क्या करना है — हजारों साल पहले वह बात स्पष्ट हो गई है। क्या — कि जिस चीज की तुमको तलाश है, वह तुम्हारे अंदर है। अब उनको कैसे मालूम कि हम किसी चीज को तलाशेंगे — 2020 में हम किसी चीज को तलाशेंगे, उनको कैसे मालूम था ? क्योंकि उनको मालूम था कि वह चीज बदलती नहीं है, वह तब भी वैसी थी और आज भी वैसी है और वो कभी बदलेगी नहीं, चाहे कुछ भी हो जाए, वो बदलेगी नहीं।

हां, मनुष्य लगा हुआ है। अंधाधुंध चीजों को नष्ट कर रहा है, नष्ट कर रहा है, नष्ट कर रहा है, नष्ट कर रहा है और क्यों नष्ट कर रहा है ? सोचिये जरा, क्यों नष्ट कर रहा है! प्रकृति को जो वह नष्ट करने में लगा हुआ है, वह क्यों नष्ट कर रहा है ? वह इसलिए नष्ट कर रहा है, क्योंकि वह खुश होना चाहता है। वह सुखी होना चाहता है, वह आनंद में रहना चाहता है। और जो आनंद में वह रहना चाहता है, वह उसके अंदर है। जो सचमुच में चीज उसको खुश करेगी, वह बाहर नहीं है, वह उसके अंदर है। जो सचमुच में परमानंद है, जिसकी वह खोज कर रहा है, वह भी उसके अंदर है, बाहर नहीं और वह खोज रहा है बाहर। कभी मिलेगी उसको ? नहीं, मिल ही नहीं सकती। जब वहां वह है ही नहीं, वह आनंद बाहर है ही नहीं, तो वह खोजता रहे, खोजता रहे, खोजता रहे, खोजता रहे, खोजता रहे।  

अब लोग कितने खुश होते हैं, जब नया मकान बनाते हैं — नया मकान बनाते हैं, खुश हो जाते हैं। अपना नाम आगे लगाते हैं, खुश हो जाते हैं, "हां, यह हमारा नया मकान है।" पर कभी यह सोचते हैं कि एक दिन इस मकान में मैं नहीं रहूंगा, कोई और रहेगा — मैं गलत कह रहा हूँ ? जिसने भी वह मकान बनाया, वह तो वहां रह नहीं रहा। कितने ही ऐसे मकान हैं, जो फिर लोग खरीदते हैं। यह नहीं सोचता है मनुष्य, यह नहीं सोचता है। पर लगा हुआ है, पर बाहर उन चीजों का आनंद, जो असली आनंद है, वह उसके अंदर है और वह पा सकता है। वह जान सकता है, पहचान सकता है।  

तो भाई, यही मैं आप लोगों से कहना चाहता था। सुरक्षित रहिये और इस बीमारी से बचिए — "ना किसी को दीजिये; ना किसी से लीजिये" — और आनंद में रहिये।

तो सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

Log In / Create Account
Create Account




Log In with





Don’t have an account?
Create Account

Accounts created using Phone Number or Email Address are separate. 
Create Account Using
  
First name

  
Last name

Phone Number

I have read the Privacy Policy and agree.


Show

I have read the Privacy Policy and agree.

Account Information




  • You can create a TimelessToday account with either your Phone Number or your Email Address. Please Note: these are separate and cannot be used interchangeably!

  • Subscription purchase requires that you are logged in with a TimelessToday account.

  • If you purchase a subscription, it will only be linked to the Phone Number or Email Address that was used to log in at the time of Subscription purchase.

Please enter the first name. Please enter the last name. Please enter an email address. Please enter a valid email address. Please enter a password. Passwords must be at least 6 characters. Please Re Enter the password. Password and Confirm Password should be same. Please agree to the privacy policy to continue. Please enter the full name. Show Hide Please enter a Phone Number Invalid Code, please try again Failed to send SMS. Please try again Please enter your name Please enter your name Unable to save additional details. Can't check if user is already registered Please enter a password Invalid password, please try again Can't check if you have free subscription Can't activate FREE premium subscription Resend code in 00:30 seconds We cannot find an account with that phone number. Check the number or create a new account. An account with this phone number already exists. Log In or Try with a different phone number. Invalid Captcha, please try again.
Activate Account

You're Almost Done

ACTIVATE YOUR ACCOUNT

You should receive an email within the next hour.
Click on the link in the email to activate your account.

You won’t be able to log in or purchase a subscription unless you activate it.

Can't find the email?
Please check your Spam or Junk folder.
If you use Gmail, check under Promotions.

Activate Account

Your account linked with johndoe@gmail.com is not Active.

Activate it from the account activation email we sent you.

Can't find the email?
Please check your Spam or Junk folder.
If you use Gmail, check under Promotions.

OR

Get a new account activation email now

Need Help? Contact Customer Care

Activate Account

Account activation email sent to johndoe@gmail.com

ACTIVATE YOUR ACCOUNT

You should receive an email within the next hour.
Click on the link in the email to activate your account.

Once you have activated your account you can continue to log in

Do you really want to renew your subscription?
You haven't marked anything as a favorite so far. Please select a product Please select a play list Failed to add the product. Please refresh the page and try one more time.