मेरे श्रोताओं को, मेरा नमस्कार। तो कुछ दिनों के बाद आपसे, फिर ये वीडियो बना रहा हूँ आपके लिए। मैं इंग्लैंड गया था, और वहां दो प्रोग्राम किये। और अब वापस आया हूँ, और फिर अब तैयारी हो रही है जर्मनी जाने की। वहां भी दो प्रोग्राम होंगे, उसके बाद कुछ और जगह हैं जहाँ इंतेज़ाम हो रहा है और मैं कोशिश कर रहा हूँ जितनी कर सकता हूँ कि आप तक यह वीडियो भी बनाता रहूँ और ये प्रोग्राम भी करता रहूँ, इधर-उधर जाना भी है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह मौका है एक चीज को समझने का, एक बात को समझने का —जैसे ब्रह्मानंद जी ने कहा कि "मुझे है काम ईश्वर से, जगत रूठे तो रूठन दे" — तो वह कह रहे हैं कि मेरा संबंध किसी और से है। मैं यहां क्यों आया हूँ वो कारण जो दुनिया समझती है, वह मेरा कारण नहीं है।
अभी जब मैं इंग्लैंड में गया था तो यही बात मैंने लोगों के आगे रखी कि तीन चीजें हैं — एक वो है, जो था, है और रहेगा। तो एक तरफ तो वो है अविनाशी — अविनाशी का मतलब ही यह है उसका कभी नाश नहीं होता है। वो था, है और रहेगा। और एक तरफ आप हैं, जो नहीं थे, अब हैं और आगे नहीं रहेंगे। एक तरफ तो अविनाशी है, एक तरफ आप हैं और एक तरफ एक तीसरी चीज है, और वह क्या है ? वो है यह माया! वो है यह दुनिया — सारा इसमें सब कुछ आ गया। तो इसके लिए क्या कहें!
अब सारा का सारा चक्कर यहीं खत्म होता है — यहीं से चालू होता है, यहीं खत्म होता है। जो संत-महात्मा हैं वो कहते हैं कि “ये कुछ नहीं है” और जो दुनिया के लोग हैं कहते हैं “यही है सब कुछ और कुछ नहीं है।” पर इसकी क्या परिभाषा है — यह जो माया है इसकी क्या परिभाषा है! तो इसकी परिभाषा है, (किससे लें, पर किसी भी तरीके से आप लीजिए) इसकी परिभाषा यह है कि ये नहीं थी, ये नहीं थी। संत-महात्माओं की बात सुनें तो वह कह रहे हैं कि ये नहीं है और वह तो सबको मालूम है कि ये आगे भी नहीं रहेगी। तो जैसे वह अविनाशी है बिल्कुल उसका उल्टा यह माया है - ना थी, ना है, ना रहेगी।
अविनाशी - है, था, है और रहेगा और तुम - नहीं थे, हो और नहीं रहोगे। इसमें मौका पड़ता है कि तुम्हारा तार किससे बंधा है! अगर तार बंधा है माया से, कैसे ? ब्रह्मानंद जी कहते हैं -
कुटुम्ब परिवार सुत दारा, माल धन लाज लोकन की।
हरि के भजन करने से, अगर छूटे तो छूटन दे।।
मतलब, अगर मैं अपना तार उसके साथ जोड़ना चाहता हूँ , जो था, है और रहेगा। और अगर यह छूट भी जाए, जो झूठ है यह छूट भी जाए , झूठ छूट जाए - कोई बात नहीं, क्योंकि करना क्या चाहता हूँ मैं —
बैठ संगत में संतन की, करूँ कल्याण मैं अपना।
लोग दुनिया के भोगों में, मौज लूटें तो लूटन दे।।
क्योंकि यह है नहीं कुछ और इसी में कुछ ना होने में भी लोग मौज ले रहे हैं, आनंद ले रहे हैं — "मैं यह बन गया, मैं वो हो गया, मेरा ये आ गया, मेरा वो आ गया, देखो यह मेरा सर्टिफिकेट है, यह मेरा वो है, यह मेरा वो है।" अब सर्टिफिकेट का करोगे क्या ? हिंदुस्तान में, भारतवर्ष में अगर आप हिंदू हैं तो आपका दाह-संस्कार होगा। तो क्या अपने सर्टिफिकेट को साथ ले जाओगे) , तो वह जल जाएगा, वह तो राख हो जाएगा। कैसे हो गया!
प्रभु का ध्यान धरने की, लगी दिल में लगन मेरे।
प्रीत संसार-विषयों से, अगर टूटे तो टूटन दे।।
पर इस बात को, यह जो आखिरी पंक्तियां हैं इस पर जरा ध्यान दीजिए कि — धरी सिर पाप की मटकी, धरी सिर पाप की मटकी — अब इस मटकी में बहुत कुछ आ गया। इसमें अज्ञानता भी है — अज्ञानता — सबसे बड़ी तो अज्ञानता यही है कि हम समझते हैं कि यह सारी दुनिया कुछ है; जब यह दुनिया नहीं थी, ना है, ना रहेगी। पर कुछ लोग हैं जो कहेंगे, "नहीं, नहीं ऐसा नहीं है, ऐसा नहीं है।" क्या है, कैसा है? लोग कहते हैं — दो टाइम का खाना चाहिए, तीन टाइम का खाना चाहिए। ठीक है, तीन टाइम का आपको खाना चाहिए। आप मनुष्य हैं आपको पानी की भी जरूरत है, भोजन की भी आपको जरूरत है और छत की भी आपको जरूरत है।
एक समय था, एक समय था जब आप भोजन पाने के लिए बीज बो करके उसमें से जो फसल निकलती थी उसको काट के उसका अपना खाना बनाते थे। एक ऐसा समय था जब आप पानी पीते थे और वह पानी नलके से नहीं आता था, बोतल से नहीं आता था, वह झरने से या नदी से उससे पीकर आप अपनी प्यास बुझा लेते थे। आज अगर आपको भोजन चाहिए, तो कहां, कैसे-कैसे होगा ? घर में, माइक्रोवेव ओवन की जरूरत है, प्रेशर कुकर की जरूरत है, गैस की जरूरत है।
एक जमाना था आपको बीज की जरूरत थी। आज आपको बीज की जरूरत नहीं है खाना बनाने के लिए। आपको जरूरत है माइक्रोवेव ओवन की, आपको जरूरत है गैस की, आपको जरूरत है गैस-सिलेंडर की और अगर आपके घर में बिजली का है तो आपको जरूरत है जनरेटर की या बिजली की। पर मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ क्या आज भी पानी आपकी प्यास नहीं बुझाता है ?आज भी क्या पानी आपकी प्यास नहीं बुझाता है! जो खाना आप खा रहे हैं जिसको आप माइक्रोवेव में बनाते हैं या उसको आप गैस के चूल्हे पर बनाते हैं, कड़ाही में डालकर बनाते हैं, कैसे भी बनाते हैं, क्या वह धरती से नहीं उपजा है ?
हां, जिस गाड़ी में उसको रखकर के आपके शहर तक लाया गया वह जरूर हो सकता है वह आधुनिक ट्रक हो, परन्तु बीज तो वही है। धरती भी वही है और किसान जब उस बीज को बोता है तो बिना पैसे डाले वो बीज उत्पन्न होता है। तो आपको अगर भिंडी खानी है तो भिंडी वैसे ही पैदा होती है जैसे हजार साल पहले, दो हजार साल पहले। टमाटर वैसे ही होते हैं जहाँ हजारों साल पहले जैसे वह उगते थे।
और बीज की जरूरत है, धरती मुफ्त में उन टमाटरों को उगाती है, पर अब वह नहीं रहा। अब अगर आपको टमाटर चाहिए तो आप खेत में नहीं जाएंगे, आप जाएंगे सुपर मार्केट में और वहां टमाटर को दबाएंगे, देखेंगे कि अच्छे हैं या नहीं और उसके लिए क्या देंगे ? पैसा देंगे, जो धरती ने मुफ्त में उगाया है उसके लिए आप पैसा देंगे, क्योंकि आपके पास टाइम नहीं है टमाटर उगाने का। क्योंकि आपके पास टाइम नहीं है भिंडी उगाने का। क्योंकि आपके पास टाइम नहीं है आलू उगाने का। क्योंकि आपके पास टाइम नहीं है प्याज उगाने का, तो कितनी बड़ी इंडस्ट्री बन गई है, क्योंकि आपके पास टाइम नहीं है।
आपके पास बीमार होने का टाइम है। डॉक्टर अगर बोल दे कि आपको बहुत भयंकर बीमारी हो रखी है, अस्पताल में भर्ती करना पड़ेगा उसके लिए आपके पास टाइम है, परंतु तंदुरुस्त रहने के लिए आपके पास टाइम नहीं है, तो कुछ उल्टा नहीं हो गया यहां ? नहीं, पूछ रहा हूँ मैं — आप समझते हैं कि ये सब ऐसे ही होना चाहिए! कोई बात नहीं मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि मतलब, यही कह रहा हूँ मैं कि आपकी समझ में कुछ उल्टा नहीं हो गया! मेरे को तो लगता है कि कुछ उल्टा-सीधा हो गया, क्योंकि धरती तो वही है और उसी धरती के आज दाम क्या हो गए हैं, पूछो मत। आपको किस चीज की जरूरत है ? आपको साफ हवा की जरूरत है। आपको किस चीज की जरूरत है! आपको पानी की जरूरत है, आपको भोजन की जरूरत है, आपको छत की जरूरत है, क्योंकि आप ज्यादा गर्म जगह नहीं रह सकते और ज्यादा ठंडी जगह नहीं रह सकते इसलिए आपको उन चीजों की जरूरत है जिससे कि आपको ज्यादा गर्मी ना लगे, जिससे ज्यादा ठंडी न लगे।
कोई बात नहीं, ये सब कुछ उल्टा हो रहा है, सब लोग देख रहे हैं और किसी से चर्चा भी इस बात की करो तो कहेंगे, "मैं क्या कर सकता हूँ !" ठीक बात है भाई, तुम क्या कर सकते हो —तुम क्या कर सकते हो! उलटी गंगा बह रही है, तुम क्या कर सकते हो! जो होना चाहिए वह नहीं हो रहा है, तुम क्या कर सकते हो! तुम क्या कर सकते हो — एक दिन तुम नहीं थे, एक दिन तुम्हारा जन्म हुआ, आज तुम जीवित हो, एक दिन ऐसा आएगा कि तुमको जाना पड़ेगा, तुम कर ही क्या सकते हो! और जो कर सकते हो, वो तभी कर सकते हो जब तक तुम जीवित हो। जब तुम्हारा जीवन खत्म हो जाएगा, उसके बाद तुम क्या कर पाओगे! कुछ नहीं कर पाओगे। तो क्या कहा है कि —
धरी सिर पाप की मटकी —
ये सारी चीजें, ये अज्ञानता जो है सारी इस मटकी में भरी पड़ी है यही है पाप, सबसे बड़ा पाप तो यह है,
उसको पहचाना नहीं। किसको पहचाना नहीं ? जो अंदर बैठा है उसको पहचाना नहीं। तो —
धरी सिर पाप की मटकी, मेरे गुरुदेव ने झटकी —
झटका दिया उसको, तोड़ी नहीं। यह संकेत किया कि काहे के लिए ये सिर पर रखी हुई है तैंने। ये अज्ञानता, ये जो मटकी है, काहे के लिए सिर के ऊपर रखी हुई है तो —
धरी सिर पाप की मटकी, मेरे गुरुदेव ने झटकी |
वो ब्रह्मानंद ने पटकी
पटक दिया उसको। क्योंकि जब वो, उसमें झटका उसको लगा कि "हां, यह सच नहीं है, ये क्यों रखी हुई है मैंने अपने सिर पर। तो मैं झूठ भी जान सकता हूँ ; मैं सत्य भी जान सकता हूँ । मैं ज्ञान में भी रह सकता हूँ ; मैं अज्ञानता में भी रह सकता हूँ । मैं उजाले में भी रह सकता हूँ ; मैं अंधेरे में भी रह सकता हूँ । क्यों, रह सकता हूँ या नहीं!
कमरे में जब रात को सोने के लिए जाते हैं तो अंधेरा कर लेते हैं। अंधेरे में तो रह सकते हैं, पर मैं उजाले में भी रह सकता हूँ जब मेरे को सब कुछ दिखाई देगा और मैं अंधेरे में भी रह सकता हूँ जिसमें मेरे को कुछ नहीं दिखाई देगा। मैं क्या करना चाहता हूँ अपनी जिंदगी में! तो,
वो ब्रह्मानंद ने पटकी
हां सच बात है इसको मेरे सिर पर नहीं रखना है मैंने।
वो ब्रह्मानंद ने पटकी अगर फूटे तो फूटन दे
अगर टूटती है, टूटने दे, कोई बात नहीं। ऐसा अगर हमारी जिंदगी के अंदर हो जाए तो कितना सुंदर रहेगा। यह याद रहे कि —
मुझे है काम ईश्वर से, जगत रूठे तो रूठन दे
सब आ गए इसमें।
कुटुम्ब परिवार सुत दारा, माल धन लाज
और किनकी ? लाज लोकन की। अरे! लोग क्या कहेंगे, लोग क्या कहेंगे, लोग क्या कहेंगे, लोग क्या कहेंगे, लोग क्या कहेंगे, लोग क्या कहेंगे!
कुटुम्ब परिवार सुत दारा, माल धन लाज लोकन की।
हरि के भजन करने से, अगर छूटे तो छूटन दे।।
इससे अगर मेरे को मुक्ति मिल जाए, क्योंकि जब मुक्ति की बात आती है, स्वतंत्रता की बात आती है तो सबको बड़ा अच्छा लगता है। पर कभी आप लोगों ने यह नहीं सोचा कि कौन-सी ऐसी चीजें हैं, जो आप से स्वतंत्रता को चोरी कर रही हैं, अलग कर रही हैं। क्यों अच्छा लगता है ? जब आनंद की बात आती है, तो क्यों अच्छा लगता है! क्योंकि जब आनंद में नहीं हैं तो आनंद में होने की इच्छा होती है।
जब स्वतंत्र नहीं हैं तो स्वतंत्र होने की इच्छा जरूर होती है, अच्छा लगता है। और मैं आया ही क्यों हूँ इस संसार के अंदर — इस बात को जानना, इस बात को समझना कि “मैं आया क्यों हूँ इस संसार के अंदर।” अगर मैं नाता जोड़ता हूँ उससे जो नहीं है, नहीं थी, नहीं है, नहीं रहेगी, तो मेरे को मिलेगा क्या! कुछ नहीं।
खाली हाथ मैं आया था, खाली हाथ मैं जाऊंगा। अरे नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, ये तो पहले ही किसी ने कहा है "खाली हाथ आया था और खाली हाथ जाना पड़ेगा।" क्यों खाली हाथ आए थे, खाली हाथ क्यों जाना पड़ेगा ? क्योंकि कुछ रखा ही नहीं है। ये माया में पड़े रहे और माया में कुछ है ही नहीं। क्या परिभाषा है उसकी — ना थी, ना है, ना रहेगी। और अगर उसके साथ, किसके साथ ? जो था, जो है और जो रहेगा, जो अविनाशी है, अगर उसके साथ तार जुड़ा — खाली हाथ आए जरूर थे, पर खाली हाथ जाना नहीं पड़ेगा। यह सोचने की बात है, यह समझने की बात है। ये समझ गए अगर तो बहुत कुछ समझ जाएंगे। फिर यह जीवन जिस तरफ जा रहा था उससे मुड़कर उस तरफ जाएगा जहां आनंद है, जहां इस जीवन का असली मकसद समझ में आए, मनुष्य अपने आपको धन्य कर पाए और आनंद ले।
खाली हाथ आए थे, पर खाली हाथ जाने की जरूरत नहीं है। मुझे आशा है कि ये बात आपको अच्छी लगी होगी, क्योंकि अगर अच्छी लगी तो यह संभव है। वहां से उस तार को निकाल कर — जो करना है इस संसार के अंदर मैं ये नहीं कह रहा कि नहीं करना है, परंतु जो आनंद का तार आपने इस दुनिया के साथ जोड़ा हुआ है उससे मिलेगा नहीं कुछ। उसको तो, कम से कम उस तार को तो लगाओ उसमें जो था, है और रहेगा। क्योंकि मेरे साथ यह चक्कर है, सबके साथ यह चक्कर है जो इस दुनिया के अंदर जीवित हैं - कि नहीं थे, हैं और नहीं रहेंगे। अब अगर यह उल्टा-सीधा होता, थोड़ा इधर-उधर होता, तो ठीक है हम कह सकते थे कि कोई बात नहीं, कोई बात नहीं — अगर यह ऐसा होता कि हम नहीं थे, हैं और रहेंगे, हमेशा रहेंगे; कोई बात नहीं, दुनिया में मजा लूटो।
परंतु सच्चाई यह है कि नहीं थे, हैं और नहीं रहेंगे। तो तार किसके साथ जुड़ना चाहिए उसके साथ जुड़ना चाहिए जो था, है और रहेगा। और जो है ही नहीं, जो थी ही नहीं, है ही नहीं और रहेगी भी नहीं उसके साथ अगर तार जोड़ेंगें , तो निराशा तो इस जीवन में उससे मिलेगी। मैं कोशिश करूंगा कि फिर आप लोगों के लिए वीडियो जल्दी बनाकर भेजूं।
तब तक के लिए सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!