जो आप हैं, जैसे आप हैं, इस पृथ्वी पर ऐसा न कभी कोई था और न कभी कोई होगा। आप जिस प्रकार रोते हैं वह आपका रोना है। जब आप हंसते हैं तो जिस प्रकार आप हंसते हैं, वह आपका हंसना है। ये जो सिग्नेचर आप हैं यह फिर कभी नहीं होगा। आप जैसे बहुत हैं, पर आप जैसा कोई नहीं है।
हमारे सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार! और मैं ये ब्रॉडकास्ट हिन्दुस्तान से कर रहा हूं। कुछ दिन पहले मैं आया हिन्दुस्तान। आप लोगों ने जो हंस जयंती की ब्रॉडकास्ट हुई थी उसमें आपने देखा होगा। तो मेरे आने का यहां क्या मकसद है, बहुत समय बीत गया था, नहीं आ पाया मैं। और कोरोना वायरस की वजह से सबकुछ लॉकडाउन था। तो जहां भी मैं जा सकता हूं वहां मैं कोशिश करता हूं जाने की। और मेरा यह कोई अभिप्राय नहीं है कि मैं कुछ ऐसा करूं जिससे कि लोग बीमार हों और बीमारी फैले। यह मैं नहीं करना चाहता। परंतु फिर भी मैं चाहता हूं कि लोग इस बात को समझें कि यह जीवन क्या है! क्योंकि यह गाड़ी तो चल रही है।
देखिये, मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। और उदाहरण कुछ इस प्रकार है कि आप एक रेलगाड़ी में बैठे हैं और आप जहां भी बैठे हैं एक खिड़की है और खिड़की से आप बाहर देख रहे हैं। तो गाड़ी चलने लगती है। जब चलने लगती है तो आप देखते हैं कि सबकुछ बाहर चल रहा है। पेड़ आ रहे हैं, जा रहे हैं। गाड़ियां आ रही हैं, जा रही हैं। जानवर हैं, आ रहे हैं, जा रहे हैं। कहीं जंगल है, कहीं पुल है, कहीं नदी है। सब आ रहे हैं, जा रहे हैं। आ रहे हैं, जा रहे हैं। आ रहे हैं, जा रहे हैं। और आप बैठे हुए हैं और खिड़की वैसी की वैसी है, जो आपके आगे लगी हुई है और आपको ऐसा लगता है कि आप नहीं चल रहे हैं, सबकुछ चल रहा है। परंतु असलियत यह है कि आप चल रहे हैं और कुछ नहीं चल रहा है। वो जो पेड़ आ रहे हैं, जा रहे हैं। वो कहीं नहीं जा रहे हैं, वो वहीं के वहीं हैं। आप चल रहे हैं। आप आ रहे हैं। आप जा रहे हैं।
यह जो मनुष्य का दृष्टिकोण है। जब वो देखता है कि क्या चीज चल रही है और क्या चीज नहीं चल रही है। तो वो अपने आपको नहीं देख रहा है कि वो चल रहा है। वो जा रहा है। वो देखता है कि नहीं और लोग चल रहे हैं। और चीजें बदल रही हैं। मैं नहीं बदल रहा हूं। मैं वैसे का वैसा ही हूं। ये नहीं है, बदल आप रहे हैं। आपका दृष्टिकोण कह रहा है कि आप नहीं बदल रहे हैं, परंतु बदल आप रहे हैं और चीजें वैसी की वैसी हैं। पेड़ सौ साल तक, दो सौ साल तक जी सकते हैं। उससे भी ज्यादा जी सकते हैं। हजारों साल तक जी सकते हैं। पहाड़ हैं। वैसे सबकुछ बदल रहा है, पर जिस रफ्तार से आप बदल रहे हैं, आपको नहीं लगता है कि चीजें बदल रही हैं, परंतु सबसे ज्यादा रफ्तार बदलने की आपकी है।
तो क्या बदल रहा है ? यह स्वांस आता है, जाता है। आपका यह जीवन है। आपके कितने संबंध हैं। लोगों के साथ आपकी दोस्तियां हैं, आपके परिवार के साथ आपके संबंध हैं। कोई आपका बेटा है, कोई आपका चाचा है, कोई आपका मामा है। कोई कुछ है, कोई कुछ है, कोई कुछ है, कोई कुछ है। कोई आपका पड़ोसी है। ये सबंध के तार आपने बनाये हुए हैं और इन्हीं तारों को लेकर के सवेरे से लेकर शाम तक आप जीते हैं। यही आपकी चिंता का माध्यम है कि ये लोग हमारी तरफ देखते हैं, क्या सोचते हैं, क्या कहेंगे!
क्या हो रहा है ? सवेरे उठते हैं। नौकरी की तरफ जाते हैं। नौकरी करता है, उसको सपोर्ट करने के लिए परिवार है। उनकी बीवी है वो उठती है, नाश्ता बनाती है, चाय बनाती है, बच्चों को तैयार करती है। और यही चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है। चल रहा है और इसी के अंदर, इसी के — जैसे नदी बह रही है इसी के अंदर सब लोग बह रहे हैं। और कहां जा रहे हैं! क्या हो रहा है ? किसका जीवन है ? क्या जीवन है ? और बातें — बड़ी-बड़ी बातों में लोग लग जाते हैं। क्या होगा, अगले कर्म में क्या होगा ? स्वर्ग कैसा है! नरक कैसा है! ये कैसा है! वो कैसा है ?
परंतु बहुत कम लोग हैं जो इस चीज पर ध्यान देते हैं कि अब क्या हो रहा है ? ये जो मेरा स्वांस चल रहा है, जो मैं जीवित हूं, ये क्या है ? जीवित होना क्या है ? संबंधों के बारे में तो आपको मालूम है और ये सब चीजें कैसे, क्या होना चाहिए, ये तो सबकुछ, इस पर लोग लगे रहते हैं। क्या ? लोगों की क्या इच्छा रहती है ? कल क्या होगा मैं जान जाऊं, कल क्या होगा मैं जान जाऊं! इसका सारा प्रबंध करते हैं क्या होगा, क्या प्लान बनाते हैं, बड़े-बड़े प्लान बनाते हैं और जो लोग रईस हैं जिनके पास सेक्रेटरी के बाद सेक्रेटरी हैं कि भाई! ये होगा, ये प्लान है और इसी तरीके से होना है, इसी तरीके से होना है और किसी — और कोई चीज नहीं हो सकती है। ये प्लान जो हमने बनाया है इसको पूरा करना है। हजारों, हजारों, हजारों डॉलर लोग खर्च करते हैं।
अभी देखा जाये तो बहुत कुछ बदल गया है। अमेरिका में प्रेसीडेंट बदल गया है। अभी बदला नहीं है पर जो नया प्रेसीडेंट आयेगा, लोगों ने वोट दी है। जो पुराना प्रेसीडेंट है वो जाना नहीं चाहता। क्यों नहीं जाना चाहता ? उसकी अपनी सोच है, उसकी अपनी — उसका प्लान दूसरा था। उसका प्लान था कि मैं दो टर्म के लिए प्रेसीडेंट बनूंगा, वो हो गये आठ साल। चार साल पहली टर्म, चार साल दूसरी टर्म। ये मेरे को मिलेगी। सब मेरे से प्रसन्न हैं। मैं सबसे बढ़िया काम करता हूं। सबसे बढ़िया चीज है। सबकुछ है, मैं गलती तो कर ही नहीं सकता। ये उसके दिमाग में बैठा हुआ है। और ये बात स्वीकार करना उसके प्लान में नहीं था कि मैं हार जाऊंगा और कोशिश कर रहा है। कोर्ट में जा रहा है, कचहरी में जाएगा कि फ्रॉड हुआ, ये हुआ, वो हुआ। क्यों ? क्योंकि उसने एक प्लान बनाया था।
लोग हैं एक प्लान बनाते हैं। मैं औरों की बात क्या करूं मैं खुद की बात करता हूं। कई बार ऐसा हुआ है कि पहुंचे कहीं, कार खराब है। पहुंचे, जाना है कहीं हेलीकॉप्टर खराब है। कहीं जाना है, हवाई जहाज खराब है। कहीं जाना है, जा नहीं सकते हैं। रोड टूट गया, ये हो गया, वो हो गया, रोड बंद है। तो क्या करें, अब जाना है, कहीं पहुंचना है प्लान बनाया हुआ है और वहां नहीं जा सकते।
तो प्लान तो हम लोग बनाते हैं। और उस प्लान को पूरा करने के लिए पूरी मेहनत करते हैं। और सारी मेहनत इसी में जाती है। जब ये कोरोना वायरस आया तो इसकी प्लानिंग क्या थी ? कुछ नहीं, किसने प्लानिंग की थी इसकी, कुछ नहीं। आया है, सारे संसार में इसने तहलका मचा दिया, क्योंकि इसकी कोई प्लानिंग थी ही नहीं। प्लानिंग क्या थी कि वो मिसाइल भेजेगा। दूसरा देश मिसाइल भेजेगा, वायरस नहीं, मिसाइल भेजेगा। वो अपने सिपाहियों को भेजेगा। उनको रोकना है, ये करना है, वो करना है। अमेरिका है, बड़े-बड़े देश हैं, नेवी हैं, आर्मी हैं, मरीन्स हैं, सील्स हैं। दुश्मन आयेगा, वहां से आयेगा, वहां से आयेगा, वहां रडार लगायेंगे। ये करेंगे, वो करेंगे। ये सारा प्रबंध कर रखा था।
पर इसकी क्या प्लानिंग थी, जहां प्लानिंग थी ही नहीं वहां से ये आ गया, कोरोना वायरस, सबकी प्लानिंग खराब हो गयी। क्या करें, इतना शक्तिशाली देश अमेरिका और गलत वजह से नंबर वन हो रखा है। कोरोना वायरस की वजह से नंबर वन हो रखा है। कैसे संभव है ? इतनी बड़ी-बड़ी खुफिया ऐजेंसीज। इतने बड़े-बड़े इंटेलीजेंस और ये सबकुछ। और ये आया, ये किसी को मालूम ही नहीं ये आ रहा है।
तो हम कितनी कोशिश करते हैं कि जो हमने प्लान बनाया है, वो सिद्ध हो, वो पूरा हो। परंतु अगर ये स्वांस का आना-जाना बंद हो जाये तो क्या प्लान बनायेंगे। क्या प्लान बचेगा ? कुछ नहीं बचेगा, न कोई संबंध बचेंगे। न कोई चाचा रहेगा, न कोई मामा रहेगा। वैसे तो जब कोई चला जाता है तो उसकी फोटो पर हार पहना देते हैं। उसकी फोटो लगाते हैं, उस पर हार पहना देते हैं। अगरबत्ती जलाते हैं। वो तो गया। न वो सूंघ सकता है। न वो खा सकता है। न वो आ सकता है। न वो जा सकता है, वो गया। अब कुछ नहीं होगा, उसके लिए सबकुछ समाप्त। क्या हम सोचते नहीं हैं इस बारे में। हम सोचते हैं कि स्वर्ग जायेंगे जी।
अब एक पंडित जी थे। वो आये ऑस्ट्रेलिया तो उनसे मैं मिला, तो मैंने कहा कि “पंडित जी आपने देवी-देवताओं को देखा।” क्योंकि देवी-देवता बादलों के ऊपर रहते हैं और वो जब हिन्दुस्तान से ऑस्ट्रेलिया गये, तो वो बादलों के ऊपर से गुजरे तो मैंने कहा कि “आपने देवी-देवताओं को देखा”, उन्होंने कहा, “नहीं देखा।”
तो कहां हैं वो जब बादलों के ऊपर से हवाई जहाज जाता है तो वो दिखाई तो देते नहीं हैं। क्या है ये ? कहां है वो स्वर्ग! कहां है वो नरक! कितना गहरा-गहरा गड्ढा खोदते हैं, जमीन में लोग। तेल निकलता है, पानी निकलता है। और क्या कि “जी, वहां नरक है, पाताल है, ये है, वो है।” इसी में सब लगे हुए हैं, परंतु असलियत क्या है!
असलियत यह है कि तुम जिंदा हो। कल क्या होगा वो असलियत नहीं है। कौन तुम्हारा चाचा है, कौन तुम्हारा मामा है, कौन तुम्हारा भाई है, कौन तुम्हारी बहन है, यह असलियत नहीं है। असलियत यह है कि यह तुम्हारे अंदर स्वांस आ रहा है और तुम्हारे अंदर स्वांस जा रहा है। इसको जानो, इसको समझो कि यह क्या है! उसके बाद सबकुछ, कोई फिक्र की बात नहीं है। तुम स्वर्ग का सपना देखना चाहते हो, खूब आंख बंद करके स्वर्ग का सपना देखो। कोई बात नहीं। तुम नरक का सपना देखना चाहते हो, खूब आंख बंद करके नरक का सपना देखो कोई बात नहीं। परंतु अपने आपको जानो, अपने आपको पहचानो, अपने आपको समझो। क्योंकि मनुष्य के अंदर यह प्यास है। वो अपने आपको समझना चाहता है।
जब बच्चा होता है तो धीरे-धीरे आप बच्चे को देखिये। पहले उसको चलना नहीं आता है। लोगों को वो पहचानता नहीं है। जो उसको समय मिलता है, अधिकतर वो सोता है। धीरे-धीरे-धीरे करके वो पहचानने लगता है। ये मां है, ये पिता है, ये भाई है, ये बहन है। धीरे-धीरे-धीरे करके दूध से, जो मां का दूध उसको मिलता है उससे वो, उसको कम करने लगती है मां और उसको खाना खिलाने लगती है। धीरे-धीरे-धीरे करके उसको अहसास होने लगता है कि क्या भूख है ? क्या प्यास है ? क्या सोना है ? क्या जगना है ? धीरे-धीरे करके वो इधर-उधर देखने लगता है। और उसमें एक प्यास, उस मनुष्य में एक प्यास धीरे-धीरे-धीरे-धीरे बहुत ही धीरे-धीरे चालू होती है कि मैं अपने आपको जानूं। बड़े रूप से नहीं। बड़े सूक्ष्म रूप से चालू होती है कि मैं अपने आपको जानूं।
क्या मेरे को पसंद है, क्या मेरे को पसंद नहीं है! कौन-सा रंग मेरे को पसंद है, कौन-सा रंग — पहले मेरा कुछ नहीं था। पहले मेरा कुछ नहीं था। अब मेरे-मेरा होने लगा है। धीरे-धीरे वो जानना चाहता है कि मैं कौन हूं! कौन-सा गाना मेरे को पसंद है! कौन-सी कहानी की किताब मेरे को पसंद है! कौन-सा रंग मेरे को पसंद है! कौन-सा खिलौना मेरे को पसंद है! मेरे को! मेरे को! उसकी जो दुनिया है, जब वो बच्चा था उसको यह नहीं मालूम था कि दुनिया भी होती है। और अगर उसकी कोई दुनिया थी तो वो उस मां के, मां उसके बीच में थी। और उसके चारों तरफ उसकी दुनिया थी। और अब वो दुनिया बनाने लगा है। और उसके बीच में वो है। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे करके मैं कौन हूं! मैं कौन हूं! मेरे को क्या पसंद है! कौन मैं ?
स्कूल जब जाता है वो। सब उसके दोस्त नहीं हैं। सब उसके दोस्त नहीं हैं। जिनको वो पसंद करता है उनसे वो दोस्ती करने लगता है। खाने में उसको क्या पसंद है। किस चीज को वो पसंद करता है। धीरे-धीरे-धीरे करके वो हुआ बीच में और वो अपनी दुनिया को बनाने लगता है। परंतु सबसे बड़ी बात है कि वो ये जानना चाहता है कि मैं कौन हूं! क्योंकि जबतक वो यह नहीं जानेगा कि मैं कौन हूं, तो जितने भी उसके रिश्ते-नाते हैं, चीजों से नाते हैं, लोगों से नाते हैं, बातों से नाते हैं। वो कैसे उनको बो पायेगा अगर उसको यह नहीं मालूम कि वो कौन है! तो उसको भी प्यास लगती है, अपने आपको जानने की, अपने आपको समझने की। परंतु इस दुनिया के अंदर अपने आपको जानने के लिए कोई साधन नहीं हैं।
स्कूल तो भेज देते हैं कि वहां जाओ अ, आ, इ, ई सीखो। एक, दो, तीन, चार सीखो। ये सीखो, ज्योमेट्री सीखो, हिस्ट्री, इतिहास को सीखो। ये सारी चीजें सीखो, परंतु अपने आपको जानने के लिए कोई साधन नहीं है। कोई, कोई प्लान नहीं है। कोई स्कूल नहीं है। कोई कुछ नहीं है। तो कैसे आदमी अपने आपको जाने। कैसे वो ये सारी चीजें समझे।
तो सबसे पहले क्या समझना है उसको ? उसको समझना है कि मेरे अंदर एक प्यास है जो अपने आपको जानने के लिए है। जो भी मैं कर रहा हूं, जो भी, इधर भागता हूं, उधर भागता हूं, ये करता हूं, वो करता हूं, वो जो प्यास है मेरे अंदर, दरअसल में वो जो मेरे अंदर स्वर्ग है, मैं उसको जानना चाहता हूं। जो मेरे अंदर नरक है, उससे मैं बचना चाहता हूं। सबसे बड़ा नरक मनुष्य के अंदर है। सबसे बड़ा स्वर्ग मनुष्य के अंदर है। एक चीज से बचना है। एक चीज को गले मिलना है। एक चीज को स्वीकार करना है, एक चीज को नहीं।
जब मनुष्य के लिए ये हो जाता है कि अब क्या होगा ? दुविधा में पड़ जाता है तो जो अंदर से उसको दर्द होता है। जो अंदर से वो दर्द महसूस करता है। जिसके लिए कोई गोली नहीं है। जिसके लिए कोई डॉक्टर नहीं है, उससे उसको बचना चाहिए। और वो जो स्वर्ग है, वो जो आनंद है, जो परमानंद है, उसको उससे गले मिलना चाहिए। उसको स्वीकार करना चाहिए। और जबतक यह नहीं होगा, इन दोनों चीजों का अनुभव नहीं होगा उसको कि जिस चीज से बचना है वो वो है और जिस चीज से गले मिलना है, जिसको स्वीकार करना है वो ये है। तबतक वो कैसे समझेगा कि वो है कौन! क्या है वो ?
आंख बंद करके नहीं आंख खोल करके उसको देखना है कि वो है कौन! उसकी प्रकृति क्या है! इस शरीर की प्रकृति क्या है ? इस शरीर की प्रकृति है कि आज जिंदा हो, कल भी जिंदा हो, परसों भी जिंदा हो पर इसका मतलब यह नहीं है कि तुम हमेशा जिंदा रहोगे। मनुष्य को यही लगता है कि वो हमेशा जिंदा रहेगा। पर ये होना नहीं है। होना ये है कि जो उसको मिला है, सारी चीजें। जैसे मैं पहले कह रहा था कि वो गाड़ी में बैठा हुआ है, रेलगाड़ी में। रेलगाड़ी चल रही है, वो समझता है कि नहीं वो नहीं चल रहा है बाकी सबकुछ चल रहा है। परंतु असलियत यह नहीं है। चल वो रहा है, क्योंकि वो उस गाड़ी में बैठा है और सारी चीजें नहीं चल रही हैं। ये दृष्टिकोण, इस चीज की सफाई, इस चीज को समझना मनुष्य के लिए बहुत जरूरी है।
यही, अब यह बात पहले सुनी हुई हो, कोई बात नहीं। फिर भी सुनना जरूरी है, समझना जरूरी है क्योंकि ये बात एक समय में समझ में नहीं आती है। बार-बार दोहराने से भी समझ में नहीं आती है, जितनी बार इसको दोहराया जाये। थोड़ा-थोड़ा-थोड़ा करके जो ये जाती है, इस खोपड़ी में, इस अक्ल में फिर इसका कुछ बनने लगता है कि “हां सचमुच में यह बात सही है।” क्योंकि ऐसी कोई चीज नहीं है बाहर जो हमको हमेशा याद दिलाये कि भाई, तेरे अंदर स्वांस आ रहा है, जा रहा है।
ये दुनिया, इसके लिए संत-महात्माओं ने क्या कहा है ये दुनिया ऐसी है कि ध्यान भगाती है। भागता रहता है, भागता रहता है मनुष्य। और जहां इसके अंदर की बात आती है, वो समझता ही नहीं है। अंदर क्या है ? कुछ नहीं है, ये क्या बात कर रहे हैं! जो कुछ है बाहर है। बाहर, बाहर बिज़नेस है, बाहर ये है, बाहर वो है। और जब आदमी स्वांस नहीं लेता है, जब चला जाता है इस संसार से तब उसको कहो कि अब क्या रह गया। क्या समझा ? समझाने के लिए तो कुछ रह नहीं गया उसके लिए। समझ में उसको कुछ आयेगा नहीं। जब वो जिंदा था तब भी वो समझ नहीं पाया। और अब जब चला गया है, तब भी नहीं समझ पाएगा। और बात यह है कि अगर समझ नहीं पाया तो उसका यहां आना और जाना दोनों बराबर है। आना, न जाना। जब जाना ही नहीं उसने। आया और चला गया। कुछ हाथ नहीं लगा। कुछ नहीं खरीदा। कुछ सौदा नहीं किया। कुछ स्वीकार नहीं किया। लगा रहा, लगा रहा। खाली हाथ आया और खाली हाथ चला जायेगा।
सिकंदर ने अपने जो उसके जनरल थे उनको कहा कि जब मैं मरूं — जब वो समय आया उसका। बीमार तो वो हो ही गया था। हिन्दुस्तान से ही बीमार हो गया था वो, वापस गया। जब मरने की बात आयी तो उसने कहा कि “मेरे हाथ बाहर होने चाहिए मेरे कफन से ताकि लोग देख सकें कि मेरे हाथ में कुछ नहीं है।’’ कि मेरे हाथ में कुछ नहीं है। कि मैं आया और एक तरफ मैंने क्या-क्या नहीं किया। कहां, कहां मैं नहीं गया! परंतु वो सब चीजों के होने के बावजूद भी मैं अपने साथ कुछ नहीं ले जाऊंगा। मैं चाहता हूं कि जब मेरा शरीर पूरा हो लोग मेरे से तब भी सीखें। क्या सीखें कि “मैं खाली हाथ आया था और खाली हाथ इस संसार से जाऊंगा।’’ चाहे कोई कुछ भी कर ले। बड़ी से बड़ी बात कर ले।
आये थे सो जायेंगे, राजा रंक फकीर।
एक सिंहासन चढ़ चला एक बांधे जंजीर।।
यही होगा। सभी के साथ यही होगा। तो बात ये होती है कि ये जो शरीर मिला है। जो समझने की बात है कोई समझे, अपने आपको जाने। अपने आपको पहचाने कि मैं ये सिर्फ हड्डी, मांस, खून, खाल यही नहीं हूं। ये सारी चीजें जो आयी हैं, इनकी वजह से और इस स्वांस की वजह से और वो जो मेरे अंदर बैठा है, उसकी वजह से मैं कुछ हूं। और मैं अपने जीवन में शांति हासिल कर सकता हूं। मैं अपने जीवन में उस परमानंद का अनुभव कर सकता हूं।
अब लोग हैं, ये परमानंद का अनुभव करने की क्या बड़ी बात है! अच्छा, आप पार्टी में जाते हैं। देखिये, शादी-ब्याह होंगे। समय आ रहा है लोग शादी-ब्याह करेंगे। तो पार्टी क्यों देते हैं ? सारे रिश्तेदारों को क्यों बुलाते हैं ? सभी लोगों को क्यों बुलाते हैं ? खाना क्यों खिलाते हैं उनको! खाना क्यों खिलाते हैं ? शादी तो जिन्हें करनी है वो हैं मिया और बीवी और वो हाथ मिलाकर भी शादी कर सकते हैं। सात हाथ मिलाया, हाथ में हाथ डाला, सात जन्म तक मैं तेरे साथ रहूंगा। तू मेरी बीवी है और बीवी कहे, तू मेरा पति है। हो गयी दोनों की शादी। तो औरों की क्या जरूरत है ? ना, सबको बुलाते हैं सब आते हैं। क्यों आते हैं ? नाचते हैं। क्यों नाचते हैं ? क्यों नाचते हैं, काहे के लिए नाच रहे हो ? मजा आता है, आनंद आता है। पार्टी हो रही है, आनंद के लिए।
संत महात्माओं का कहना है कि एक पार्टी और हो रही है और वो है परमानंद की पार्टी। उसमें आनंद की बात नहीं, परम आनंद की पार्टी है वो। और वो पार्टी क्यों है ? क्योंकि तुम जिंदा हो। तुम्हारे अंदर ये स्वांस आ रहा है, जा रहा है इस पार्टी में भी भाग लो। इस पार्टी में भी नाचो। इस पार्टी में भी आनंद उठाओ।
तो भाई, खैर ये ब्रॉडकास्ट आज हो रही है। और यहां, ये मेरे को मौका मिला हिन्दुस्तान आने का बड़ी अच्छी बात है। और लोगों को कुछ यह अहसास होता है कि भाई, मैं आया और मेरे को भी अहसास होता है कि अच्छी बात है, मैं आ सका हिन्दुस्तान। और अब क्या-क्या होगा आगे, वो तो देखना पड़ेगा, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से कोई बीमार हो। तो अब जब लोग इकट्ठा होंगे तो ये बीमारी फैल सकती है। तो क्या हम कर सकते हैं और क्या नहीं करेंगे, इस चीज का — अभी चर्चा इस चीज की होगी और उसी के अनुसार प्रोग्राम बनाया जायेगा। क्योंकि हम नहीं चाहते कि किसी भी रूप से कोई ऐसी चीज हो कि लोगों को और ये बीमारी फैले।
और इस चीज का ध्यान सभी रखें। हाथ धोना है। हाथ धोओ, अच्छी बात है। मास्क पहनो ताकि ये बीमारी न लगे। अब लोग हैं मास्क पहनना नहीं जानते। कोई किसी का मास्क यहां आ रहा, किसी का यहां आ रहा है, किसी का यहां। नहीं, इसको ढंग से पहनो। और लोगों से 6 फीट का जो अंतर है वो बनाकर रखो। ध्यान दो, ध्यान दो ताकि ये बीमारी तुमको परेशान न कर सके। सभी लोग अपना ख्याल रखें और फिर मैं आगे ब्रॉडकास्ट करूंगा।
सभी को मेरा नमस्कार।