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एक मनुष्य होने के नाते, मैं समाज में कैसे कंट्रीब्यूट कर सकता हूं ?
कनुप्रिया:
एक भारतीय होने के नाते, आज मैं अगर अवेयर हूं, मैं अगर थोड़ा-सा जागरूक हो रहा हूं — आपने कहा कि, मैं कितना कूल हूं, खुद ही पहचान लूं अगर मैं जान रहा हूं ये तो मुझे क्या कंट्रीब्यूट करना है कि वो सीढ़ी मैं बना पाऊंगा। ये कुछ जरूर पूछना चाहूंगी मैं ।
प्रेम रावत जी:
देखिए! यह तो बहुत सरल-सी बात है। यह बात है — अगर हम यह जान जाएं कि हमारे पास भी कुछ देने के लिए है और हमारे पास गुंज़ाइश है कुछ लेने के लिए। कुछ लें, कुछ दें। बस!
यह नहीं है कि ‘‘बस, हम तो सिर्फ देंगे, हम लेंगे नहीं! हमको कोई चीज विदेश की नहीं चाहिए।’’
अच्छा, यह आपका फाउंटेन पेन कहां से आया ? आपका फोन कहां से आया ? आपकी बस कहां से आयी ? आपका हवाई जहाज कहां से आया ? आपकी पैंट कहां से आयी ? आपकी शर्ट कहां से आयी ? आपके चश्में कहां से आए ? आपका टूथपेस्ट कहां से आया ?
कोई जवाब नहीं दे रहा है।
कनुप्रिया: बिल्कुल! तो जो अच्छाई हमारे पास है...
प्रेम रावत जी:
नीम की बात नहीं कह रहा हूं मैं, टूथपेस्ट की बात कर रहा हूं। नीम तो आया हिन्दुस्तान से, टूथपेस्ट आया विदेश से।
हैं जी ?
तो ये सारी चीजें ग्रहण करने के लिए तो कोई प्रॉब्लम नहीं है, परंतु शादी-ब्याह होगा और उसमें क्या बजाएंगे ?
वो ट्रमबोन! वो कहां से आया ?
वो हिन्दुस्तानी है ? ना! वो भी विदेश से आया।
ड्रम बजाएंगे, वो कहां से आया ? विदेश से।
हिन्दुस्तानी क्या है ? वो हिन्दुस्तानी नहीं है, पर तबला — ये सारी चीजें। वो तो ज्यादा बजता नहीं है, शादी-ब्याह में जब बारात चलती है।
तो समझने की बात है — कुछ लें, कुछ दें। और हर एक व्यक्ति, जो दिया जाए उसको देखने के लिए, उसको स्वीकार करने के लिए, उसको जानने के लिए राज़ी हो। और जो दिया जाए, वो ऐसा दिया जाए, ताकि औरों का भी भला हो। वो चीजें नहीं दी जाएं, जिनका कोई सिर-पैर ही नहीं है। पर वो चीजें दी जाए, जिससे सबका भला होगा। सबका! सबका!
तभी सब मिलकर के — क्योंकि अब समय आ गया है दरारों को बंद करने का। दरारों को बढ़ाने का नहीं, दरारों को बंद करने का। सब मिलकर के जब करेंगे, नई सीढ़ी बनेगी और इस सीढ़ी के ऊपर सब चढ़ेंगे, सिर्फ युवा ही नहीं। सिर्फ युवा ही नहीं! क्योंकि लोग फिर वही बात करते हैं, युवा पीढ़ी की बात करते हैं।
हम कहते हैं, क्यों जी ? सिर्फ युवा ही क्यों ?
क्योंकि सब लोग अपनी जिम्मेवारी उनके सिर पर थोपना चाहते हैं। नहीं, हम सबको जिम्मेवार होना चाहिए, सबको जिम्मेवार होना चाहिए। समय ज्यादा दूर नहीं है। धीरे-धीरे लोग अस्सी, नब्बे, सौ साल जीना शुरू कर देंगे तो फिर युवा क्या रह जायेंगे, अगर युवा का ही इंतजार करते रहेंगे तो ?
सबको मिलकर के — सब एक हैं। सब मनुष्य हैं! जबतक ये स्वांस तुम्हारे में आ रहा है, जा रहा है, तुम पर भगवान की कृपा है। उठो और इस जिंदगी को स्वीकार करो! इस कृपा को स्वीकार करो अपने जीवन में, ताकि हम सभी इस पृथ्वी के वासी सब एक होकर के — एक होकर के अपनी, सबकी-सबकी तकदीर बदल सकें।
Text on screen:
इस पृथ्वी के वासी सब एक होकर के
अपनी और सबकी तकदीर बदल सकते हैं।