प्रेम रावत:
आप कौन हैं ? आप कौन हैं ? जब तुम मां के गर्भ से निकले, तब तुम्हारा नाम क्या था ? कुछ भी नहीं था। अभी रखा नहीं गया था। अभी कागज पर नहीं लिखा गया था। अभी किसी ने सोचा भी नहीं था। अभी लोगों को हो सकता है, ये भी नहीं मालूम था कि तुम लड़के हो या लड़की हो, तो नाम पहले रखने से क्या फायदा ? अगर तुम जीवित थे और तुम्हारा कोई नाम नहीं था और फिर भी तुम जीवित थे ? बिना नाम के जीवित थे ? तो तुम्हारा जो नाम है उससे और तुम्हारे से क्या लेना-देना ? कुछ लेना-देना नहीं।
दूसरी चीज, ये शरीर किसका है ? ये तुम्हारा है ? ये तुम्हारा है ? किसका है ? बनाने वाले का है ?
मतलब, अपने आपको समझना — मैं कौन हूं, क्या हूं। ये शरीर इन तत्वों का बना है, उन्हीं चीजों का बना हुआ है, जिसको तुम सबेरे-सबरे धोने की कोशिश करते हो। उसी मिट्टी का बना हुआ है, जिससे तुमको इतनी नफरत है। उन्हीं चीजों का बना हुआ है और जब ये शरीर खत्म होगा तो उन्हीं चीजों में जाकर के मिल जायेगा।
लोग कहते हैं न, ‘‘हां! फिर जब आदमी मरता है तो फिर ऊपर जाता है। अच्छा कर्म किया है तो ऊपर जाता है, बुरा कर्म किया है तो नीचे जाता है।’’
तो मैं पूछता हूं कि जब तुम्हारा जन्म हुआ तो तुम्हारा वजन अगर पांच पाउंड का था, सात पाउंड का था तो इस पृथ्वी का वजन सात पाउंड बढ़ा ? और अगर तुम्हारा वजन दो सौ पाउंड है और जब तुम मरोगे तो इस पृथ्वी का वजन दो सौ पाउंड कम होगा ? हां या नहीं ?
बात यह है, तुमने पहले कभी सोचा नहीं इस बारे में। तो अगर इसका वजन वैसे का वैसे ही रहेगा — मतलब, मनुष्यों के आने-जाने से नहीं बदलेगा तो क्या हो रहा है ? कोई कहीं से आ नहीं रहा है और कोई कहीं जा नहीं रहा है। सब यहीं अटके हैं। और उसी से लौकी बनती है, उसी से कद्दू बनता है, उसी से तुम बनते हो! ये है सच्चाई!
चक्कर क्या है ?
चक्कर है कि यह एक संगम है। हर एक व्यक्ति जो यहां बैठा है, यह एक संगम है। इस संगम में, इस संगम में एक वो यंत्र है, जो अनुभव कर सकता है और इसी यंत्र में बैठा है वो, जो अविनाशी है। तो, एक तो तुम अनुभव कर सकते हो और एक, इस यंत्र में बैठा है अविनाशी! यंत्र का नाश होगा, अविनाशी का नाश नहीं होगा। परंतु ये दोनों एक जगह, एक समय में आए हुए हैं। इसका क्या मतलब हो सकता है ? क्या यह संभव है कि इसका मतलब ये हो कि इस यंत्र के द्वारा तुम उस अविनाशी का अनुभव कर सको। इसलिए तुम हो! और अगर तुमने उसका अनुभव किया तो स्वर्ग तुम्हारे लिए यहीं बन जाएगा।
एक बार एक कछुए का बाप और कछुए की माँ दोनों खड़े हुए थे और अपने बच्चे — छोटे-से कछुए को देख रहे थे। वो छोटा-सा कछुआ पेड़ के ऊपर चढ़ता, बड़ी मेहनत से, बड़ी कोशिश से और टहनी के ऊपर जाता, बड़ी कोशिश से, बड़ी मेहनत से और फिर कूदता। और जैसे ही कूदता तो धक! जाकर जमीन पर गिरता। फिर वो जाता, फिर पेड़ पर चढ़ता, बड़ी मेहनत से —छोटा कछुआ, छोटा-छोटा कछुआ! फिर जाता है, टहनी के ऊपर जाता, जाता, जाता, जाता बड़ी कोशिश, बड़ी मेहनत से और फिर टहनी से कूदता और धक!
माँ, बाप कछुए से बोलती है, ‘‘मेरे ख्याल से इसको बता देना चाहिए कि ये चिड़िया नहीं है।’’
क्योंकि वो छोटा कछुआ यही सोच रहा था कि वह चिड़िया है। उड़ने की कोशिश कर रहा था, परंतु वो उड़ नहीं पायेगा।
क्या मनुष्य को भी ये बताना पड़ेगा, बताना चाहिए कि वो ये संगम है ? और क्या वो यह समझे कि वो ये संगम है और स्वर्ग यहां है ?
लोग लगे रहते हैं — कोई दान कर रहा है, कोई पुण्य कर रहा है। कोई कुछ कर रहा है, कोई कुछ कर रहा है। कोई कुछ कर रहा है, कोई कुछ कर रहा है। सब स्वर्ग जाने के लिए कर रहे हैं। कहां जाएंगे ?
‘‘स्वर्ग जाएंगे जी! स्वर्ग जाएंगे जी! स्वर्ग जाएंगे जी...!’’
हम उन लोगों को एक advice देते हैं, एक सलाह देते हैं। जब तुमको इतनी लगी हुई है जाने की — जाओ! मतलब, इंतजार क्यों कर रहे हो ?
इसीलिए कहा है कि अगर अपने आपका ज्ञान नहीं है, आत्मज्ञान नहीं है —
आतमज्ञान बिना नर भटके, भटकते रहोगे। तुम क्या हो, तुम समझ नहीं पाओगे। तुम संगम हो, ये नहीं समझ पाओगे। तुम्हारे अंदर वो अविनाशी बैठा है, ये समझ नहीं पाओगे। समझ नहीं पाओगे। लगे रहोगे खुश होने में और खुशी का भंडार तुम्हारे अंदर है। खुशी का भंडार तुम्हारे अंदर है।
कितनी सुंदर बात है कि जगह-जगह जाकर मैं जब लोगों को ये बात सुनाता हूं, लोगों को बड़ी अच्छी लगती है, क्योंकि ये बात सरल है, साधारण है और ये कहानी तुम्हारी है, ये कहानी हमारी है। जब तक हम जीवित हैं, इस कहानी को हम समझें, इस मिलन को, इस संगम को हम समझें। ये कहानी तुम्हारी ऐसी हो सकती है कि आनंदमय हो और तुम्हारा जीवन सफल हो सकता है। जीवन सफल करना, उसी को कहते हैं। और जिस दिन जीवन सफल होगा, उस दिन तुम्हारे लिए स्वर्ग ही स्वर्ग है। नरक भी यहां है, स्वर्ग भी यहां है।