सपने और हकीकत (ऑडियो)

मेरे को आनंद से मतलब है, मेरे को शांति से मतलब है, मेरे को संतोष से मतलब है। मेरे को उस चीज से मतलब है, जो मेरे हृदय में है।
Oct 04, 2019
सोचने की बात है हम अपने को अभागा समझते हैं। क्योंकि हमारी जो धारणाएं हैं, हमारी जो सोच है, हमारे जो सपने हैं जब साकार नहीं होते हैं तो हमको दुःख होता है।

प्रेम रावत:

एक बार एक राजा ने अपने माली को कहा कि महल के पास यह जगह है और यहां मैं चाहता हूं कि बहुत सुंदर एक बाग लगाओ। तो महल ऊपर पहाड़ी पर बना हुआ था। रोज माली एक बांस बड़ा और आगे एक मटका और पीछे एक मटका, उसको लेकर नीचे रास्ते से जाता था और जो नीचे, पहाड़ के नीचे जो नदी थी, उससे पानी, अपने मटके में भर के और फिर ऊपर तक, अपने बाग तक उसको ले जाता था। ऐसे करते-करते, करते-करते, काफी समय बीता। हरियाली होने लगी बाग में। फूल लगने लगे। बाग अच्छा लगने लगा।

एक दिन माली ने जैसे ही मटके को रखा तो एक मटका, जो पीछे वाला मटका था, उसमें छेद हो गया। फिर भी माली ने उस मटके को फेंका नहीं। और न ही अपने बांस से निकाला। वो रोज उन्हीं दो मटकों को नीचे तक ले जाता था, पानी से भरता था, फिर ऊपर लाता था। चलता रहा ये।

एक दिन आगे वाला मटका, पीछे वाले मटके से बोलता है, ‘‘तू किसी काम का नहीं रहा! तेरे में तो छेद है।’’

जो पीछे वाला मटका था, उसको अहसास हुआ कि सचमुच में किसी काम का नहीं हूं मैं।

आगे वाले मटके ने कहा कि ‘‘ये माली इतनी मेहनत करके नीचे ले जाता है, दोनों मटकों को भरता है और जब तक वो ऊपर, इस बाग में पहुंचता है, तेरे में तो एक बूंद पानी नहीं रहता है। और ये जो बाग — हरियाली इस बाग की जो दिखाई दे रही है, वो तो सिर्फ मेरे कारण है। तेरे कारण तो है नहीं! तू तो किसी काम का नहीं है।’’

मटके को बड़ा बुरा लगा। एक दिन पीछे वाला जो मटका था, वो रोने लगा।

माली आया। माली ने दोनों मटकों को देखा। पीछे वाले मटके को देखकर कहता है, ‘‘तू रो क्यों रहा है ?’’

कहा, ‘‘मैं किसी काम का नहीं रहा। तुम इतनी मेहनत करते हो, नीचे दोनों मटकों को भरते हो, ऊपर लाते हो और जबतक ऊपर लाते हो, मेरे में तो एक बूंद पानी नहीं रहता है। मैं तो किसी काम का नहीं।’’

माली ने कहा, ‘‘ऐसी बात नहीं है। मुझे मालूम है, जिस दिन तेरे में छेद हुआ। मुझे मालूम है। पर मैं तेरे को फिर भी भरता रहा और ऊपर तक लाता रहा। इस बाग में जो हरियाली है, वो तो आगे वाले मटके की वजह से है। परंतु तैंने देखा, जो रास्ता नदी से इस बाग तक आता है, उसमें कितनी हरियाली है! और वो तेरी वजह से है। इस बाग में सब कोई नहीं आ सकता। और उस रोड पर सब लोग आते हैं, जाते हैं और वो उन फूलों को देखकर खुश होते हैं। आगे वाला मटका तो एक ही आदमी को खुश करता है और तू दिन में हजारों लोगों को खुश करता है।’’

क्योंकि सोचने की बात है हम अपने को अभागा समझते हैं। क्योंकि हमारी जो धारणाएं हैं, हमारी जो सोच है — ऐसा होना चाहिए। हमारे जो सपने हैं, ऐसा होना चाहिए, ऐसा होना चाहिए। हम ये चाहते हैं, हम ये चाहते हैं, ये साकार नहीं होते हैं और जब साकार नहीं होते हैं तो हमको दुःख होता है। हम कहते हैं, ‘‘हमारे साथ ये क्यों हो रहा है ? उसके साथ ये क्यों हो रहा है ? उसके साथ सबकुछ अच्छा है, हमारे साथ सबकुछ बुरा है।’’ अपने कर्मों को कोसते हैं। जब दुःख आता है, ‘‘मेरे कर्मों का फल है। मैंने क्या कर्म किए होंगे पिछले जन्म में ?"

मतलब, सारी बात दिमाग में ऐसे-ऐसे घुसेड़ते हैं कि पूछो मत! और घुसेड़ने वाले भी एक नहीं हैं, अनेक हैं। ‘‘जो कुछ आज हो रहा है, वह तेरे कर्मों का फल है।’’ तो मुझे याद क्यों नहीं है ? मैंने क्या कर्म किए थे ? अगर याद होता कि ये-ये कर्म करने से मेरे को अच्छा फल मिल रहा है तो दुबारा करता! याद तो है नहीं! अब क्या करूं ? पर चक्कर है — कर्मों का नहीं, तुम्हारे सपने पूरे न होने का। चक्कर ये है! चक्कर कर्मों का नहीं है। चक्कर कर्मों का नहीं है! चक्कर है — तुमने जो धारणाएं बना रखी हैं कि मेरे सपने ये हैं, मेरे सपने ये हैं और दुनिया तुमको दिखाती है सपने।

क्यों ? ये है मनुष्य इस कलयुग का और भूल गया है मनुष्य अपनी ही प्रकृति को। भूल गया है मनुष्य कि वो सचमुच में वो क्या है, वो कौन है ?

और लोग लगे हुए हैं, ‘‘हां! हां, हां!!’’

देखो! जो तुमको समझ में न आए, वो कूड़ा है। जो तुमको समझ में न आए! अगर वो, जो समझ में नहीं आता है, उसको निकाल दो तो तुम जानते हो, तुम्हारे कंधों का बोझ कितना हल्का होगा ? कर्मों के चक्कर से निकल के तुम किस चक्कर में पड़ोगे कि मेरे को अपने जीवन में शांति चाहिए। मैं आनंदमय — हर दिन मैं आनंदमय होना चाहता हूं। बस! अब ये पैसे से आए तो फिर पैसा कमाऊंगा और पैसे से न आए, जैसे आए, मेरे को आनंद से मतलब है, मेरे को शांति से मतलब है, मेरे को संतोष से मतलब है। मेरे को उस चीज से मतलब है, जो मेरे हृदय में है। और चीजों से मेरे को मतलब नहीं है।

तुम्हारी प्रकृति है ये कि तुम्हें लगी है असली प्यास और असली प्यास है उस परमानन्द की, अपने आपको जानने की। क्योंकि अगर तुम अपने आपको जानते तो तुमको पता लगता कि तुम्हारे में कितना बल है! तुम अगर अपने आपको जानते तो और चीजों के पीछे न लगकर के, अपने पीछे लगते। अपने अंदर स्थित जो मंदिर तुम्हारे हृदय के अंदर है, वहां जाकर तुम दर्शन करते। वहां जाकर के उस भगवान का पूजन करते, जो असली भगवान, जो था, है और रहेगा, तुम्हारे अंदर जो है। 

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