प्रश्नकर्ता:
सरकार और जनता के बीच एक बेहतर संवाद कैसे स्थापित हो सकता है ?
प्रेम रावत:
कहीं भी आप चले जाइए, समाज में एक बीमारी है। और वो बीमारी यह है — भगवान हो, धर्म हो, गवर्नमेंट हो, हम उनको दोषी ठहराना चाहते हैं। "मेरे जीवन में ये नहीं है, ये नहीं है, ये नहीं है, यह भगवान की — भगवान की गलती है। भगवान को दोष दो! यह ऐसा नहीं है, यह वैसा नहीं है, धर्म को दोष दो!"
तो हम तो लग गए हैं लोगों को दोष देने में। जबतक ये कीड़ा हम अपने दिमाग से नहीं निकालेंगे हम सरकार क्या होती है, नहीं समझ पाएंगे। इस समय हालत ये है कि सरकार को चाहिए वोट और लोगों को चाहिए तरक्की। और इस पिंग-पोंग में, इस खेल में अगर थोड़ा-बहुत कहीं गुंज़ाइश है — क्योंकि सबसे पहले लोग ही जाते हैं, सरकार को सत्ता में लाते हैं वोट देकर और जैसे ही वोट दे दी, फिर उन पर आरोप के बाद आरोप, आरोप के बाद — ‘‘उन्होंने ये नहीं किया, उन्होंने ये नहीं किया, उन्होंने ये नहीं किया, उन्होंने ये नहीं किया।"
तो ये जो कीड़ा है दूसरों को दोष देने का, "उनकी वजह से नहीं हो रहा है, उनकी वजह से...।"
"मैं क्या कर सकता हूं, मैं क्या कर सकता हूं ?"
अब ये एक बात है कि जो आज देख रहे हैं हिन्दुस्तान में — स्वच्छ भारत! कितना बढ़िया आइडिया है। कितना सुंदर आइडिया है। मतलब, ये तो बेसिक चीज है। क्योंकि हमको साफ रहना — इसका मतलब है कि हम बीमार नहीं होंगे। देखने में भी अच्छा लगता है।
परंतु मैं देखता हूं कि कई जगह जो स्वच्छता होनी चाहिए, वो नहीं है। तो पहले मेरे में यही प्रेरणा आती है कि मैं गवर्नमेंट को दोष दूं। उनकी वजह से नहीं हो रहा है। परंतु मैं भी तो कुछ कर सकता हूं। अगर मैं कूड़ा फेंकना छोड़ दूं — हैं, जी ? तो क्या परिवर्तन नहीं आएगा ? क्योंकि ये कूड़ा आया कहां से ? आया कहां से ? ये आसमान से तो आया नहीं ? ये नहीं है कि बारिश शुरू हुई और कूड़ा, कूड़ा, कूड़ा, कूड़ा! नहीं। ये कूड़ा हम ही पैदा करते हैं और अगर हम ही थोड़ी-सी जिम्मेवारी लें कि हम कूड़ा न फेंकें या उसको ठीक तरीके से डिस्पोज़ करें तो इसमें असर पड़ेगा।
पर वो नहीं हो रहा है। वो नहीं हो रहा है। लोग मज़ाक उड़ाने के लिए तैयार हैं, परंतु जिम्मेवारी लेने के लिए तैयार नहीं हैं। दोष देने के लिए तैयार हैं, पर जिम्मेवारी लेने के लिए तैयार नहीं हैं। तो कोई भी चीज हो इस संसार के अंदर, मनुष्य की भी तो कोई जिम्मेवारी बनती है ? जो यहां के नागरिक हैं, उनकी भी तो कोई जिम्मेवारी बनती है ? और जबतक वो जिम्मेवारी नहीं लेंगे और वो समझेंगे कि ऐसी सरकार आए, जो उनके सारे प्रॉब्लम्स को सॉल्व कर दे, वो कभी होगा नहीं। कभी हुआ नहीं है, कभी होगा नहीं।