Text on screen : हर उम्र में सीखने और सिखाने की रूचि को कैसे बनाए रखें ?
प्रेम रावत:
अगर हम लोग ये stance नहीं adopt करें कि "हमको कुछ मालूम है, तुमको नहीं मालूम!" क्योंकि मनुष्य हमेशा यही करता रहता है। "मेरे पास कितना है, तुम्हारे पास कितना है! मेरे पास ज्यादा होना चाहिए, तुम्हारे पास कम होना चाहिए! ये मेरा है, ये तेरा है!"
तुलसीदास जी ने यही कहा है कि "यही माया है! ये मेरा है, ये तेरा है", यही माया है। और यही माया है कि "मैं ये जानता हूं, तू ये नहीं जानता है।"
तो अब बात ये हो गई कि जहां टेक्नोलोजी की बात है तो वो छोटे वाले जो हैं, उनको ज्यादा मालूम है तो वो कहते हैं कि "तुमको नहीं मालूम है, तुम नहीं कर सकते।" पर माहौल तो ऐसा होना चाहिए कि "मैं सीखना चाहता हूं! अगर तुम मुझे सिखा सकते हो, सिखाओ!" और अगर मैं कुछ तुम्हें सिखा सकता हूं तो मेरे से सीख लो!"
अगर ये exchange होने लगे लोगों में तो देखिए! बड़े-बड़े भी छोटों से सीख लेंगे और छोटे भी बड़ों से सीख लेंगे। फिर ये भेदभाव नहीं रहेगा, क्योंकि माली को जो मालूम है, माली को जो मालूम है, वो मालिक को नहीं मालूम! और मालिक को जो मालूम है, वो माली को नहीं मालूम! और जिस दिन मालिक, माली से सीखने लगेगा, उस दिन उसके लिए कुछ नया ज्ञान पैदा होगा। और माली, मालिक से सीख सकते हैं। और उसके लिए हो सकता है कि वो दो पैसे और बचाना शुरू कर दे! दस पैसे और बचाना शुरू कर दे! बजटिंग चालू कर दे और वो भी एक दिन मालिक बन जाए।
ये बात है — क्योंकि हमारे कल्चर में सीखने की बात ही नहीं है। "हम जानते हैं सबकुछ!" और जब छोटा बच्चा — 11 साल का, 12 साल का, जिस फोन को हम नहीं चला सक रहे हैं ठीक ढंग से, वो आकर छीनता है और कहता है, "मेरे को मालूम है, कैसे करना है — खड़- खड़-खड़, हो गया!"
हमको ये नहीं होता है कि "मैं क्या इससे सीख सकता हूं!"
"बेटा! सिखाना, तुमने क्या किया ?"
नहीं। गुस्सा आता है — "इसको मालूम है, मेरे को नहीं मालूम!"
लोग अपने पर पाबंदी लगा लेते हैं — "मेरी तो उम्र बहुत हो गई। अब मैं क्या सीखूंगा ?"
देखिए! आपका जो शरीर है, इसमें उम्र के कारण आँखें कमजोर होने लगती हैं। हो सकता है, सुनाई कम दे। हो सकता है, दाँत हिलने लगे! और चीजें हैं, उस ढंग से काम न करें, जैसे करती थीं। पर दिमाग एक ऐसी चीज है, जो काम करती रहती है। दिमाग एक ऐसी चीज है, जो काम करती रहती है! और दिमाग एक ऐसी चीज है कि जितना उसको इस्तेमाल करेंगे, उतना ही वो बढ़िया काम करेगा। जितना आप उसको इस्तेमाल करेंगे। तो अगर हमारे कल्चर में — सारे, मैं पृथ्वी की कल्चर की बात कर रहा हूं। मैं सिर्फ हिन्दुस्तान ही के कल्चर की बात नहीं कर रहा हूं। हर एक कल्चर में अगर लोग सीखने लगें और सिखाने लगें एक-दूसरे को — एक तो लोगों में कितनी रिस्पेक्ट होगी! कितनी क़दर करेंगे लोग एक-दूसरे की!
अब देखिए! मैं बहुत कुछ कर सकता हूं। क्योंकि मेरी सीखने की आदत है। अब कोई भी — आज भी कोई आदमी कुछ कर रहा है तो मैं उससे कहता हूं, "सिखाओ! मेरे को बताओ, कैसे किया ये ?"
मैं सीखना चाहता हूं अपनी जिंदगी में और मैंने बहुत बार कोशिश की। मैं हवाई जहाज भी उड़ा सकता हूं। मैं मशीनों पर भी काम करता हूं। मैंने cars भी restore की हैं! बहुत कुछ किया है। पर रोटी बनाना, बेलना — मैं इसको आसान काम नहीं समझता हूं। और जिनको मैं देखता हूं बेलते हुए — क्या ? क्या खूब बात है, तुमको आता है! और जो बेलते हैं, उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। उनके लिए कि "आप हवाई जहाज उड़ा सकते हैं ?"
ये बहुत बड़ी बात है। परंतु ऐसी कोई चीज नहीं है इस दुनिया के अंदर, जो मनुष्य सीख नहीं सकता। सबमें सीखने की क्षमता है। परंतु पहले ही मनुष्य दीवाल बना लेता है कि मैं सीख नहीं सकता।
यही बात लागू होती है अपने आपको जानने में। पहले ही वो एक दीवाल बना लेता है कि "ना, ना, ना! इन चीजों से मेरा कुछ लेना-देना नहीं है। इन चीजों को मैं नहीं समझ सकता हूं। ये धार्मिक चीज है।"
ये धार्मिक चीज नहीं है। अपने आपको आईने में देखना, धार्मिक नहीं है। आपने आपको जानना, धार्मिक नहीं है। भगवान कैसा है, उसकी फोटो बना के अपने दिमाग में रखना, धार्मिक जरूर हो सकता है, परंतु साक्षात् उस ब्रह्म को अपने अंदर उसको महसूस करना, धार्मिक नहीं है। इसका किसी धर्म से लेना-देना नहीं है। इसका किसी — पहले ही बनी हुई धारणाओं से कुछ लेना-देना नहीं है। ये तो साक्षात् चीज है। और जबतक हम अपने कल्चर में, अपने जीवन में सीखना और सिखाना नहीं ले आएंगे, तबतक ये सारे झंझट जो हैं लोगों के बीच में, जो तनाव बना देते हैं, जो ages को separate कर रहे हैं — क्योंकि "ये तुम्हारी आयु है। तुम जवान हो, तुम बुड्ढे हो! तुम ये हो, तुम वो हो!"
ये सारे तबतक खतम नहीं होंगे। ये बढ़ते चले जाएंगे। क्योंकि जो नई-नई टेक्नोलोजी आ रही हैं, नये-नये जो छोटे बच्चे हैं, उनको इस्तेमाल कर रहे हैं। जो बुजुर्ग हैं, वो इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। क्योंकि उन्होंने पहले ही ठान लिया कि "ये हमसे नहीं होगा!"
तो ये झंझट बना रहेगा।