प्रश्नकर्ता : हमने शांति को defined किया, मानवता को defined किया, एक आदमी, जो दिन में 150 रुपये कमाता है सारे दिन extreme conditions में काम करता है, उसके लिए शांति और मानवता हम कैसे define करेंगे ?
प्रेम रावत जी : पैसा भी मनुष्य ने बनाया है और पैसे का अभाव भी आज मनुष्य बना रहा है। इस पृथ्वी से सारा धन निकलता है। हीरे-जवाहरात कहां से निकलते हैं ? किसी के safe से निकलते हैं या धरती से निकलते हैं ? वो भी धरती से निकलते हैं। तो ये तो रही बात Inequality की। परंतु हमको अच्छी तरीके से मालूम है कि भूखे पेट से — इसके लिए कहा भी है कि —
बिन भोजन भजन न होय गोपाला।
ये लो अपनी कंठी माला।।
तो शांति जरूरी है और जो concerns आपने कही, ये भी जरूरी हैं। जो concerns हमारी भौतिक concerns हैं, इसके लिए society है। इसके लिए government है, इसके लिए systems हैं और उनके बावजूद भी ये नहीं हो रही है। और मैं ये कह रहा हूं कि जबतक मनुष्य अपने आपको नहीं पहचानेगा तो वो मानवता को — मानवता को, humanity को कैसे establish करेगा ? मानवता के लिए मानव को समझना बहुत जरूरी है! बिना मानव अपने आपको समझे, कैसे मानवता को स्थापित करेगा ? ये संभव नहीं है!
तो इसलिए मेरी कोशिश, मेरी कोशिश आज से नहीं, दो साल से नहीं, तीन साल से नहीं — 50 साल से ऊपर मेरी यही कोशिश रही है कि मनुष्य अपने आपको समझे, क्योंकि मैंने देखा है कि जब मनुष्य अपने आपको समझने लगता है तो उसके माहौल में ऐसा परिवर्तन होता है और सुंदर परिवर्तन होता है। ये बात मैं क्यों कह रहा हूं ? मेरे शब्द खाली नहीं हैं।
हमारा एक प्रोग्राम है, जो कि universities में भी है, libraries में भी है, जो veterans लड़ाइयों से वापिस आ रहे हैं, उनके लिए भी है। और सबसे बड़ी बात है कि वो जेलों में भी है। साउथ अफ्रीका में हर एक single जेल में है वो। हर एक जेल में है वो प्रोग्राम — पीस एजुकेशन प्रोग्राम!
उससे होता क्या है ? उससे होता क्या है ?
वो लोग, वो लोग, जो जेल में बंद हैं और एक साल के लिए नहीं, दो साल के लिए नहीं, तीन साल के लिए नहीं, कई ऐसे लोग हैं, जिनको जिंदगी का sentence मिला हुआ है, Life sentence मिला हुआ है — जब वो आते हैं जेल में तो सबसे पहले उनको यही लगता है कि सोसाइटी का fault है, गवर्नमेंट का fault है, पुलिस का fault है, उनकी फैमिली का fault है, उनके दोस्तों का fault है कि वो जेल में हैं। जब वो अपने आपको समझने लगते हैं, तब जाकर के असली परिवर्तन उनके जीवन में आता है कि इसका रिस्पॉन्सिबल और कोई नहीं, मैं हूं। और जब वो बदलना शुरू करते हैं तो उनके जीवन के अंदर जेल में भी रहकर के सुकून उनको मिलता है। तो जब जेल में रहते हुए उनके जीवन के अंदर शांति आ सकती है।
If they can feel peace in the middle of a prison, then imagine what is possible in the world outside that prison, change, change, change, change for the better, for the better. And that's the betterment of mankind, of mankind. How? By lighting individual candles. You can light a whole city. So, I hope that helps.