शांति तो सबके अंदर है, परंतु उसको हमने मौका नहीं दिया है, उभरने का।
उस शक्ति का अनुभव करना, साक्षात अनुभव करना — मन से नहीं, ख्यालों से नहीं, साक्षात अनुभव करना — उससे फिर शांति उभरती है। क्योंकि मनुष्य उस चीज का अनुभव कर रहा है, जिसका कि वह एक हिस्सा है और जिसकी कोई हद नहीं है।
प्रेम रावत
कई लोग हैं, जो धर्म को नहीं मानते हैं। कई लोग हैं, जो भगवान को भी नहीं मानते हैं। पर इसका मतलब ये नहीं है कि वो शांति का अनुभव नहीं कर सकते।
लोग समझते हैं कि ‘‘नहीं, ऐसा करो, ऐसा करो, ऐसा करो, तब जाकर के ये सबकुछ होगा।’’
नहीं। शांति तो सबके अंदर है, परंतु उसको हमने मौका नहीं दिया है, उभरने का। उसको मौका नहीं दिया है, जानने का।
शांति है मनुष्य के अंदर। शांति है वो चीज, जो कि मनुष्य अपने आपको पहचाने। अपने आपको पहचाने कि — मेरी ताकत क्या है और मेरी कमजोरियां क्या हैं। शांति वो है, जब मनुष्य के अंदर, वो जो तूफान आते रहते हैं, उनसे निकलकर के, वो उस चीज का अनुभव करे, जो उसके अंदर है।
हम उस ताकत को, उस शक्ति को, जिसने सारे विश्व को चला रखा है इस समय, वह हमारे अंदर भी है और वो — उसका अनुभव करना, साक्षात अनुभव करना — मन से नहीं, ख्यालों से नहीं, साक्षात अनुभव करना — उससे फिर शांति उभरती है। क्योंकि वो उस चीज का अनुभव कर रहा है, जिसका कि वो एक हिस्सा है और जिसकी कोई हद नहीं है। इन्फीनिट! जिसका कभी नाश नहीं होगा, वो भी उसके अंदर है। और जबतक वो उसका अनुभव नहीं कर लेगा, वो अपने आपको पहचान नहीं पाएगा पूरी तरीके से कि वो है क्या ?