प्रेम रावत :
सबसे बड़ी बात यह है। जो भी मेरा संदेश है, वह बड़ा साधारण संदेश है कि ‘‘भाई! जिस चीज की तुमको तलाश है, वह तुम्हारे अंदर है।’’
अब बाहर तो हम सबकुछ करते हैं, क्योंकि बाहर हम देखते हैं, सजाते हैं अपने आपको।
पर हम अंदर के लिए क्या कर रहे हैं ? संदेश यह है कि अंदर के लिए हम क्या कर रहे हैं ?
क्योंकि जो कुछ भी बाहर है, वह तो अंदर से आ रहा है। अब अगर अंदर आदमी को चिढ़ लगी हुई है तो उसको कितना भी आप मुस्कुराने के लिए कहिए, जैसे ही उसका ध्यान कहीं और जाएगा और वह मुस्कुराना बंद करेगा, उसकी जो चिढ़ है, वह बाहर आ जाएगी। तो जो कुछ भी हम कर रहे हैं, वह अंदर के लिए नहीं कर रहे हैं, बाहर के लिए कर रहे हैं। और बाहर हम चाहे कितना भी परिश्रम कर लें, शांति आपके अंदर से शुरू होनी है, बाहर से नहीं।
जो बाहर आप लक्षण देख रहे हैं शांति का, लोग अपनी धारणाएं लेते हैं कि अगर शांति हो तो ऐसा होगा, ऐसा होगा, ऐसा होगा! उनमें लगे हुए हैं, पर उनसे शांति नहीं होगी। शांति होगी तब, जब अंदर से शांति होगी।
अंदर की शांति ये नहीं है कि हमारी समस्याओं का हल हो जाए तो हम शांत हो जाएंगे क्योंकि हमारी समस्याएं बदलती रहेंगी। लोग समझते हैं कि ये लड़ाइयां बंद हो जाएं तो शांति हो जाएगी। यह भी शांति नहीं है।
तो अब शांति क्या है ? शांति है मनुष्य के अंदर। शांति है वह चीज, जो कि मनुष्य अपने आप को पहचाने।
आपके अंदर आनंद को अनुभव करने की भी ताकत है और आपके अंदर परेशान होने की भी ताकत है। ये दो ताकत जो आपकी हैं, इससे आप कभी वंचित नहीं हैं। मतलब, आप कहीं भी चले जाएं, ये दोनों चीजें आपके साथ-साथ चलती हैं। आप क्रोधित भी हो सकते हैं और आप आनंद में भी हो सकते हैं। आप प्यार भी कर सकते हैं, आप नफरत भी कर सकते हैं। दोनों चीजें आपके साथ चलती हैं।
तो अब बात यह है कि हम किस चीज को प्रेरणा देते हैं ?