सोशल मीडिया की आदत से कैसे बचें ?
प्रश्नकर्ता:
आज हम सब मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के आदी हो गये हैं। हमारा ज्यादा से ज्यादा समय इसी पर लगता है। सोशल मीडिया के इस एडिक्शन से, इस लत से हम कैसे बच सकते हैं ?
प्रेम रावत:
एक एडिक्शन सोशली एक्सेप्टेबल है, एक एडिक्शन सोशली एक्सेप्टेबल नहीं होता है। जो सोशली एक्सेप्ट नहीं होता है, उसके लिए सबकुछ करने के लिए तैयार हैं, जो एडिक्शन सोशली एक्सेप्टेबल होता है, उसके लिए कोई परवाह नहीं करता है। परंतु लोग यह भूल जाते हैं कि दोनों ही एडिक्शन हैं। दोनों ही एडिक्शन हैं और दोनों ही मनुष्य के लिए खराब हैं।
ये टेक्नोलॉजी भी मोडरेशन में होनी चाहिए। खाना भी मोडेरेशन में खाना चाहिए, एक्सरसाइज़ भी मोडेरेशन में होनी चाहिए। हर एक चीज मोडरेशन में होनी चाहिए। इस सोसाइटी में, इस बाहर की दुनिया में सब चीजें मोडरेशन में होनी चाहिए। तो बात यह आ जाती है कि — क्योंकि यह सोशली एक्सेप्टेबल है, इसके जो कान्सिक्वेंसेज़ हैं, अभी ज्यादा नहीं लोगों के आगे सामने आए हैं।
अस्पतालों में वो चीजें बढ़ गई हैं, जो लोग आते हैं इमरजेंसी में, क्योंकि सिर पर चोट लग गई। क्यों लग गई ? क्योंकि वो अपना यहां ऐसे कर रहे थे और आगे चल रहे थे और गिर गये या खम्भे के साथ टकरा गए। ये सारी चीजें हो रही हैं। परंतु अभी हमने इस एडिक्शन को डिफाइन नहीं किया है। सबसे बढ़िया चीज तो यह होगी कि हम इसको अपनी समझ से करें। अर्थात् प्रेशर से नहीं! क्योंकि बात यह है — सबसे बड़ी चीज इसमें एक गेगा बाइट का डाटा नहीं है। सोशल एक्सेप्टेन्स! ये बीमारी सोशल एक्सेप्टेन्स की है। एक गेगा बाइट की नहीं है, दो गेगा बाइट की नहीं है, तीन गेगा बाइट की नहीं है। हर एक मनुष्य सोशली एक्सेप्टेन्स चाहता है। पर क्यों चाहता है ? क्यों चाहता है ?
यह नहीं पूछ रहा है वो। वो चाहता है कि उसके फ्रैण्ड्स हों और सब उसको एक्सेप्ट करें, परंतु वो यह नहीं पूछ रहा है क्यों ? और मेरे पास उसका जवाब है। क्योंकि वो अपने आपको नहीं जानता है। क्योंकि वो अपने आपको नहीं जानता है, इसलिए वो चाहता है कि और लोग उसको जानें। और...और लोग जो कॉमेन्ट करेंगे उस पर, वो अपने आपको जानेगा, उन लोगों के कॉमेन्ट्स के द्वारा। पर वो अपने आपको नहीं जान पायेगा।
तो डिसीज़ यहां और यह प्रॉब्लम यहां, एक गेगा बाइट की नहीं है, डिसीज़ है सोशल एक्सेप्टेन्स की। सोशल एक्सेप्टेन्स लोगों को हमेशा चाहिए थी। यह नई चीज नहीं है। यह तो नया तरीका है उसी बीमारी को पकड़ने का। उसी बीमारी को इस्तेमाल करने का।
समाज तो बहुत पहले से ही बंटा हुआ है। फौजी लोग एक तरह की सूट पहनते हैं, पुलिस वाले एक तरह की सूट पहनते हैं। ये सारी चीजें — और सोशल एक्सेप्टेन्स। अब आप कहीं भी चले जाइए, किसी भी आर्मी के घर में चले जाइए, किसी सोल्जर के, आपको एक फोटो मिलेगी सोल्जर की, जिसमें खूब अच्छी तरीके से अपना कैप पहना हुआ है, अपनी वर्दी पहनी हुई है। अमेरिका में भी यही होता है। इंग्लैण्ड में भी यही होता है। सब जगह यही होता है। पर यह इसलिए है — सोशल एक्सेप्टेन्स औरों की चाहिए, क्योंकि अपने आपको नहीं जानते हैं। जिस दिन अपने आपको समझना शुरू कर देंगे, यह बात सम हो जाएगी और फिर लोग औरों की तरफ नहीं देखेंगे। और यह जो टेक्नोलॉजी है, जिससे मैसेजेस लोगों को मिल सकती है, वो अपने दौर पर पहुंच जाएगी। परंतु चक्कर यहां गेगा बाइट का नहीं है, चक्कर यहां अपने आपको न जानने का है।