Text on screen : आज के समय में समस्याओं का समाधान करके तनावमुक्त कैसे हो सकते हैं ?
प्रेम रावत:
हर एक मनुष्य के पीछे समस्या है, परंतु समझने की बात ये है कि हम चाहते हैं कि वो समस्याएं खतम हो जाएं। वो समस्याएं कभी खतम नहीं होंगी। समस्या, ये समझिए कि एक ऐसी मक्खी है कि आपके ऊपर है, आपने ऐसे किया, आपको छोड़ करके वो किसी और के — किसी और पर बैठ जाएगी। तो समस्याएं तो ऐसी हैं कि हम ही उनके victims हैं। मनुष्य को ही वो परेशान करती हैं और वो पता नहीं, कितने रूप में आती हैं, जाती हैं और इस पृथ्वी पर वो समस्याएं बनी रहती हैं। अर्थात् समस्या वही हैं, आदमी बदलते रहते हैं।
तो समस्याओं से दूर होने का क्या हल है? दूर या नजदीक — इनसे आप नहीं हो सकते। ये तो आपके पीछे लगेंगी। बात है आदमी के दृष्टिकोण की कि "क्या ये सचमुच में मेरी समस्या है या नहीं? मैं कौन हूं और ये समस्या क्या हैं?" कौन नहीं है — अब कई लोग हैं, जो कहते हैं कि "हमको ये रहता है कि ये काम समय पर करना है। ये काम हमको निभाना है।" अब बड़े से बड़े लोग और छोटे से छोटे लोग। एक बस स्टैण्ड पर खड़ा हुआ अपनी घड़ी को देख रहा है कि "मेरी बस लेट हो गयी। मैं काम देर से पहुंचूंगा।" उसको भी चिंता है। एक ऐसा, जो कि करोड़ों का contract साइन करने के लिए जा रहा है, वो भी अपनी घड़ी को देख रहा है कि "अगर मैं टाइम पर नहीं पहुंचा तो हो सकता है, ये contract साइन न हो सके।" चिंता तो वही है और सबको सता रही है। परंतु हम कभी इस बात को इस तरीके से नहीं देखते हैं कि एक दीवाल है इधर और मैं आपको कई बार इसका reference दूंगा क्योंकि ये सारी चीज को एक context में बांधती है।
एक तरफ वो दीवाल, जिससे हम होकर के आए, जब हमारा जन्म हुआ और एक वो दीवाल, जिसमें हम प्रवेश करेंगे और कहां जाएंगे, क्या होगा? हमको कुछ नहीं मालूम। तो एक जन्म है, एक मरण है और इसके बीच में सबकुछ है। आप चाहते क्या हैं? अब किसी को कोई समस्या है, उससे पूछा जाए, "आप क्या चाहते हैं?"
"अजी! मैं इस शंका से निवारण चाहता हूं। इस दुःख से निवारण चाहता हूं।"
आपको अच्छी तरीके से मालूम है कि एक न एक दिन वो दुःख तो रहेगा नहीं। फिर आप क्या चाहते हैं? फिर क्या चाहते हैं? फिर दूसरी समस्या का निवारण चाहते हैं? तो आपको यह लगता है कि आपकी जिंदगी यहां से ले के यहां तक दुःखों से बचने के लिए है या और कुछ भी इसमें संभव है ? इसकी संभावना पूरी तरीके से आपने जानी या नहीं जानी? क्योंकि दुःख तो आएंगे — सुख भी आएगा, दुःख भी आएगा। और मैं तो लोगों से कहता हूं — अगर अब दुःखी समय चल रहा है, थोड़ी देर इंतजार करो, सुखी समय आ जाएगा। जब सुख हो जाएगा, थोड़ी देर इंतजार करो, फिर दुःख आ जाएगा। और फिर दुःख आएगा तो फिर थोड़ी देर इंतजार करो, फिर सुख आ जाएगा। तो ये होता रहता है, होता रहता है, होता रहता है, होता रहता है। परंतु जाना क्या, पहचाना क्या? किस चीज को समझे कि ये जिंदगी इन चिंताओं से मुक्त होने के लिए नहीं है।
कहा है —
चिंता तो सतनाम की, और न चितवे दास।
और जो चितवे नाम बिन, सोई काल की फांस।।
अगर किसी चीज की चिंता करनी है तो वो जो तुम्हारे अंदर जो आशीर्वाद तुमको मिला है कि —
नर तन भव बारिधि कहुं बेरो।
सनमुख मरूत अनुग्रह मेरो।।
क्या मैं उस आशीर्वाद का पूरा-पूरा फायदा उठा रहा हूं या नहीं ?
देखिए! जब कोई चीज बहुमूल्य हमको मिलती है — जैसे, अगर हम कहीं गए। ये उदाहरण है मेरा। खील है! किसी ने हाथ में खील रख दी। तो आपको अच्छी तरीके से मालूम है कि खील बड़ी जल्दी से गिर भी जाती है, हल्की है। उसको आपने खाया, थोड़ी गिर गई, कोई बात नहीं। कपड़ों पर गिर गई — कई लोगों को तो मैंने देखा है कि वो ऐसे कर देंगे। हटा देंगे उसको। पर अगर आपके हाथ में उतने ही हीरे हों, आप उनको खाएंगे तो नहीं! पर अगर एक गिर गया तो आप उसको ऐसे कर देंगे? नहीं। जो चीज, जिसको हम बहुमूल्य समझते हैं, जिसको मूल्यवान समझते हैं, उसकी हम क़दर करते हैं। उसको व्यर्थ नहीं खोने देते।
सनमुख मरूत अनुग्रह मेरो।
इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है।
वो तो हीरों से भी ज्यादा मूल्यवान है! वही कृपा है। हम तो प्रार्थना करते हैं — "हे भगवान! अपनी कृपा कर, मेरे को इस दुःख से बचा ले!"
भगवान कह रहे हैं — "नहीं, नहीं, नहीं! इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है!"
उसको हम— उसकी क़दर ही नहीं जानते हैं। उसको — खील की तरह इधर-उधर गिर रही है — कोई बात नहीं। और ऐसी चीज के पीछे पड़े हैं, जिससे मुक्त होने के लिए सबकुछ करने के लिए तैयार हैं। और वो ही समस्या तुम्हारे पास ऐसी हाथ धो के बैठी है कि तुमको परेशान करके रखेगी। क्योंकि ये उसकी प्रकृति है।
हर एक चीज की प्रकृति होती है। उस प्रकृति को समझना जरूरी है। अगर अपना ध्यान उस, जो असली चीज है, उससे निकाल दिया गया तो फिर ऐसी-ऐसी जगह जाएगा कि "ये क्यों हो रहा है? ऐसा क्यों हो रहा है? अरे बाप रे! अब ये हो गया! अरे अब मैं ...... ।" बच्चे हैं — क्या करते हैं? मेहनत करनी चाहिए पढ़ने की। और सबसे ज्यादा मेहनत करनी चाहिए बात को समझने की। क्योंकि अगर बात कोई समझ में आ गई तो आपको दोबारा-दोबारा पढ़ने की जरूरत नहीं है। वो चली गई अक्ल में। और बुद्धि एक ऐसी चीज है, उसको याद करके रखेगी। पर समझ में तो आया नहीं और उसको तोते की तरह रट रहे हैं। और जब बैठेंगे इम्तिहान में तो अगर वो तोता नहीं बोला ठीक समय पर तो वो प्रश्न तो गया।
तो यही चीज हम करते रहते हैं अपनी जिंदगी में और परेशानियां हमारे पीछे पड़ी रहती हैं। किस चीज के पीछे पड़ना चाहिए? इस दुनिया के अंदर आप अगर सुकून से रहें और सुकून वो, जो आपके हृदय से आता है, जो आपके अंदर से आता है, जो अपने आपको समझने में आता है। ये नहीं है कि बाहर सबकुछ बदल जाएगा। बाहर सबकुछ नहीं बदलेगा। समस्याएं तो फिर भी आएंगी, परंतु आपको जीने का तरीका मिल जाएगा। आपको वो रास्ता मिल जाएगा, जिससे कि वो परेशानियां आपको परेशान न करें! एक बार परेशानियां अगर परेशान करना छोड़ दें तो वो परेशानियां नहीं रहतीं। आई, गई! आई, गई!
भगवान ने आपको एक चीज दी है, वो है — सब्र! और लोग कितना सब्र करते हैं? छूट गया लोगों का। दौड़ रहे हैं, परंतु ये नहीं मालूम किसके पीछे ? फिर मैं कहता हूं — एक वो दीवाल, जब पैदा हुए। एक वो दीवाल, जब आपको जाना है! भागिए! जाएंगे कहां? जाएंगे कहां? ये एक ऐसी रेस है, ये एक ऐसी दौड़ है कि अगर आप उल्टा भी भागना चाहें तो इधर ही भागेंगे! यहां से आए, यहां जाना है! इसको कोई नहीं टाल सकता। इस तरफ भागेंगे तो इसी तरफ जाएंगे, इस तरफ भी भागेंगे तो भी इसी तरफ जाएंगे! ये एक ऐसी रेस है! ये एक ऐसी दौड़ है! तो आदमी किस चीज के पीछे दौड़ रहा है? इस चीज के पीछे दौड़ रहा है। इस चीज के पीछे दौड़ना अच्छा नहीं है। क्योंकि ये तो होगा!
कब आता है आदमियों को चैन? रिटायरमेंट के बाद, अपने आप से जीना मुश्किल हो जाता है! अपने आप से जीना मुश्किल हो जाता है! ये देखिए! एक दिन काम पर जा रहे हैं, सबकुछ है और दूसरे दिन रिटायर्ड! अब क्या करेंगे? कोई कुछ करता है, कोई कुछ करता है — बिज़ी रहने की कोशिश करता है! क्यों? जेलों में सबसे बड़ी सजा क्या है? Solitary confinement! जब मनुष्य को हर एक चीजों से हटा करके बंद कर देते हैं। अब उसके पास कौन है? सिर्फ वो है! और वो अपने साथ नहीं जी सकता। कभी सीखा ही नहीं! कभी सीखा ही नहीं!
लोग ऐसी जगह हो जाते हैं कभी — खो गए, जंगल में खो गए और कोई है ही नहीं! सिर्फ वो ही हैं। बाप रे बाप! बचाओ! बचाओ! बचाओ! बचाओ! क्यों ? अपने आप से जीना कभी सीखा ही नहीं। और इस जिंदगी में जिसने जीना ही नहीं सीखा, तो उसके लिए ये जिंदगी है या नहीं है — परेशान है या नहीं है, एक ही चीज है। और हर एक चीज उसको परेशान करेगी। तो बात परेशानियों से बचने की नहीं है। क्योंकि मैं तो ये कहता हूं कि बारिश तो होगी, पर अगर छाता है तो भीगने की जरूरत नहीं है। बात है भीगने की, बारिश की नहीं। बारिश तो होगी। पर क्या आप भीगना चाहते हैं या नहीं?
हमको अच्छी तरीके से मालूम है, जब सर्दी का मौसम आता है, लोग कम्बल निकालते हैं। क्यों ? सर्दी तो होगी! वो तो मौसम है, सर्दी तो आएगी, पर यह जरूरी नहीं है कि आप ठंडे हो जाएं, आपको ठंड लग जाए। कम्बल ढूंढ़िए! जैकेट ओढ़िए, स्वेटर ओढ़िए, पहनिए। तो यह बात है! और जो समझदार लोग हैं, वो इस पर अमल करते हैं कि यह तो होगा! जबतक मैं हूं, परेशानियां तो आएंगी! परंतु मेरे को परेशान होने की जरूरत नहीं है। और चक्कर है परेशानी नहीं! परेशान होना। अगर परेशान — परेशानियों से आदमी परेशान न हो तो फिर उन परेशानियों का उस पर कोई असर नहीं। और यह संभव है! परेशानियों को हटाना संभव नहीं है, परंतु उनसे परेशान न होना संभव है।