हिम्मत का समय: दूसरी कड़ी (वीडियो)

श्री प्रेम रावत द्वारा, हिम्मत, आशा और विवेक का हार्दिक संदेश
May 10, 2021
"यह जो समय है, यह धीरज का समय है। चाहे बाहर जो कुछ भी हो, अपने अंदर शांति बनाए रखो। डरो मत, यह समय भी गुज़रेगा।" —प्रेम रावत

प्रेम रावत जी:

सभी लोगों को हमारा नमस्कार!

और ये इस सीरीज़ में दूसरी वीडियो है। तो कल हमने जिस बात की चर्चा की, एक तो बात की कानूनों की कि देश के कानून होते हैं, पुलिस के कानून होते हैं। कानून तो बहुत होते हैं। परिवार में भी कानून होते हैं। और एक कानून है प्रकृति का, इसके बारे में हमने बात की। उसको मैं थोड़ा और आगे ले जाना चाहता हूं। क्योंकि एक तरफ से देखा जाये तो जो कुछ भी हमारे आस-पास हो रहा है, इससे हम प्रभावित होते हैं। जब हमारे इच्छानुसार चीजें होती हैं तो हमको खुशी होती है। जब इच्छानुसार चीजें नहीं होती हैं तो हमको दुख होता है।

परंतु प्रकृति के लिए कोई खेल नहीं है यह कि वो प्रकृति हमको दुखी करना चाहती है या हमको खुश करना चाहती है। प्रकृति तो वो कर रही है जो उसको करना है, जो करते आयी है। हजारों-करोड़ों साल हो गये हैं पृथ्वी घूमती है, सूरज चमकता है, चंद्रमा है। और रात भी होती है दिन भी होता है। और एक मनुष्य है जो आता है, जो जाता है। परंतु मनुष्य होने का मतलब क्या है ? जीवित होने का मतलब क्या है ? तो एक दोहा है मैं आपको सुनाता हूं कि —

मानुष तेरा गुण बड़ा, मांस न आवै काज

कह रहे हैं कि — “हे मनुष्य तेरा गुण है, परंतु वो क्या है, वो तेरा मांस नहीं है, वो किसी काम का नहीं है, वो किसी काम नहीं आयेगा, उसको कोई खायेगा नहीं।’’

हाड़ न होते आभरण,

तेरे, तेरे से आभूषण नहीं बन सकते हैं, तेरे से कपड़े नहीं बन सकते हैं और

त्वचा न बाजन बाज।

और तेरी खाल से कोई ड्रम नहीं बजायेगा, ढोलक नहीं बनेगी। तो तेरा जो गुण है वो क्या गुण है ? जो बड़ा गुण है तेरा, वो क्या है ?

तो संत-महात्माओं ने हमेशा यही बात समझाने की कोशिश की है कि भाई, तुम आये हो, तुम हो यहां इस संसार में। ठीक है, तुम व्यस्त हो, इसमें, यह कर रहे हो, वो कर रहे हो। तुमको नौकरी करनी है। ठीक है, अब नौकरी क्यों करनी है ? यह भी बात स्पष्ट है। और नौकरी इसलिए करनी है क्योंकि तुमको छत चाहिए अपने सिर के ऊपर, खाना चाहिए और ये सारी चीजें मिला करके तुमको नौकरी करनी है। क्योंकि धन कमाना है, क्योंकि धन से फिर तुम खाना खरीद सकते हो, मकान खरीद सकते हो, कपड़ा खरीद सकते हो, ये सारी चीजें कर सकते हो। और इस संसार में लोग इसी चीज को मानकर चलते हैं।

परंतु बात स्पष्ट यह नहीं है कि क्या यही मकसद है मनुष्य का इस संसार में आने के लिए कि वो इस संसार में आये और इस संसार में आने के बाद वो नौकरी करे और नौकरी के बाद वो धन कमाये और उस धन की कमी को महसूस करे। जब भी, जब भी कोई दूसरे को देखेगा जो उससे ज्यादा धन कमाता है तो वह अपने आप ही महसूस करेगा कि मैं भी इतना ही धन कमाना चाहता हूं। अपने आपको छोटा मानेगा। तो कबीरदास जी कहते हैं कि —

मानुष तेरा गुण बड़ा।

क्या है वो गुण ?

मांस न आवै काज।

तेरा मांस तो किसी काम का है नहीं।

हाड़ न होते आभरण।

तेरे से कोई कपड़े तो बनेंगे नहीं और

त्वचा न बाजन बाज।

और ये जो तेरी खाल है, इससे कोई यंत्र तो बनेगा नहीं जिसको बजा सकें। तो तेरा ये जो गुण है, ये है क्या — जो बड़ा गुण है वो क्या है ?

अच्छा, एक बात मैं कहूंगा क्योंकि ये जो नौकरी की बात है, मैं ये नहीं कह रहा हूं कि ये अच्छी बात है या बुरी बात है या ऐसा है या वैसा है। पर मैं एक बात कहना चाहता हूं कि जब से मनुष्य इस पृथ्वी पर आया है, जब से मनुष्य इस पृथ्वी पर आया है, तब से आज तक ज्यादा लोगों ने नौकरी नहीं की। ये नौकरी का जो सवाल बना है, ये हाल ही में बना है। कुछ ही साल पहले ये बना है। उससे पहले लोग नौकरी नहीं करते थे। जीवित रहते थे, बिलकुल रहते थे। अगर उनको भूख लगती थी तो जाते थे फल तोड़ते थे, जो खाना मिलता था, जंगल से या उसको खाते थे। जब प्यास लगती थी तो पानी था। कोकोकोला नहीं थी, पानी था। कॉफी नहीं थी, पानी था। चाय नहीं थी, पानी था। और इन चीजों को ले करके आज जो मनुष्य है वो है। क्योंकि बात तो यही है कि —

चलन-चलन सब कोई कहे, मोहि अंदेशा और।

नाम न जाने गांव का, पहुंचेंगे कहि ठोर।।

अब सभी लगे हुए हैं कि चलो, चलो, चलो, चलो, चलो, चलो, पर कहां जा रहे हैं ? सारी दुनिया, “हमको नौकरी करनी है, हमको ये करना है, हमको वो करना है, ये करना है!” सबकी लिस्ट है। सबकी लिस्ट है। और सब देशों में लिस्ट है। जापान के लोग भी हैं, ऑस्ट्रेलिया के लोग भी है, अमेरिका के लोग भी हैं, हिन्दुस्तान के लोग भी हैं। सब जगह, सबकी लिस्ट है। ये करना है, वो करना है, ये करना है, वो करना है। सभी, सभी यही करते हैं। सवेरे-सवेरे उठते हैं। नौकरी पर जाते हैं। दोपहर में खाने के लिए बैठते हैं। शाम को घर आते हैं, खाना खाते हैं, थोड़ी-बहुत बात करते हैं, फिर सो जाते हैं। फिर सवेरे उठते हैं और वही उनका चक्कर चलता रहता है।

परंतु यह मनुष्य शरीर मिला क्यों ? इससे करेंगे क्या ? यह किस चीज का साधन है, किस चीज का दरवाजा है ? क्या ऐसी चीज है जिसको हम आनंद कह सकते हैं ? क्या ऐसी चीज है, क्योंकि चक्की के लिए यह मिला है। चक्की चलाने के लिए ही क्या यह मिला है या किसी और चीज के लिए मिला है ? यह मैं नहीं कहूंगा। मैं सिर्फ आपको इंस्पायर कर रहा हूं, प्रेरणा दे रहा हूं कि आप सोचिये। क्योंकि भेड़ की तरह, अगर एक भेड़ कुएं में कूद गयी और दूसरी भी कूद गयी, तीसरी भी कूद गयी, चौथी भी कूद गयी, पांचवीं भी कूद गयी और ऐसे करते-करते हजार भेड़ भी अगर कुएं में कूद गयीं, तो वो सही नहीं है। वो सही नहीं है। चाहे हजार कूद गयी उस कुएं में भेड़, इसका यह मतलब नहीं है कि वो गलत हो रहा है, गलत तो है।

तो यह जो कुछ हो रहा है, इस संसार के अंदर जो सब कर रहे हैं। क्योंकि सब कर रहे हैं तो वो ठीक नहीं है। क्योंकि सब कर रहे हैं तो इसका यह मतलब नहीं है कि वो ठीक हो गया। क्या कारण है जो यह मनुष्य शरीर मिला है ? क्यों सबकुछ होने के बावजूद भी मनुष्य खुश नहीं है ? क्या ऐसी चीज है कि एक छोटा-सा कीटाणु, एक छोटी-सी वायरस इसने इस सारे संसार को हिला के रख दिया!

अरे, बड़े-बड़े देश जो कहते थे “देखो जी हमारी परेड हो रही है, हमारे इतने हेलीकॉप्टर हैं, हमारे इतने फाइटर जेट हैं, इतने हमारे सोल्जर्स हैं, सिपाही हैं, ये है, वो है, सब सलूट मार रहे हैं।” मारो सलूट, मारो सलूट! कौन-सी गोली से इसको उड़ाओगे। हैं, इतना, इतना सबकुछ खतम करने के लिए, तबाह करने के लिए। एक-दूसरे को तबाह करने के लिए इतना सबकुछ किया है मनुष्य ने और ये छोटा-सा कीटाणु आया जो इतना सूक्ष्म है कि आंख से भी नहीं दिखाई देता और सबको हिलाकर रख दिया। बड़े-बड़े देशों को हिलाकर रख दिया। इतना कमजोर... तो अब प्रश्न यह आता है कि मनुष्य इतना ताकतवर है या इतना कमजोर है ? इतना सबकुछ होने के बाद भी क्या मनुष्य ताकतवर है या कमजोर है ?

तो जब अपने गुण को ही नहीं समझा मनुष्य ने तो कमजोर तो होगा ही। क्योंकि जो, जिस चीजों में मनुष्य लगा हुआ है, उस चीजों के लिए मनुष्य नहीं बना है कि यह —

नर तन भव वारिध कहुं बेरो।

इस भवसागर से पार उतरने का यह साधन है।

सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो।

इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है। तो कौन इस्तेमाल कर रहा है इसको, भवसागर पार करने के लिए ? नहीं, सारी दुनिया तो खड़ी हुई है, भवसागर में डूबने के लिए।

अच्छा, यह कोरोना वायरस आया, गवर्नमेंट ने कहा, “भाई, आइसोलेशन में जाओ।” ‘आइसोलेशन में जाओ’ का मतलब — “बाहर मत जाओ, अपने घर में रहो।” नहीं रह सकते। फिर घर बनाया ही क्यों है ? जब उसमें रहना ही नहीं है, तो घर बनाया ही क्यों है ? तो घर इसलिए बनाया है क्योंकि उसकी जरूरत है। इसीलिए तो, यही तो बात मैं कह रहा था पहले कि छत चाहिए, छत चाहिए तो इसलिए घर है पर उसमें रहना नहीं चाहते। उसमें रहने के लिए गवर्नमेंट ने कह दिया कि ‘बाहर मत जाना।’ ना, हमसे नहीं रहा जायेगा; हम तो बाहर जायेंगे। तो मनुष्य मनुष्य के साथ नहीं रह सकता, अपने साथ नहीं रह सकता। औरों के साथ रहने की उसकी इच्छा है। औरों के साथ उठना-बैठना उसके लिए ठीक है। औरों के साथ बात करना, गप्प मारनी, उसके लिए यह मनुष्य समझता है कि वो ठीक है।

किसी ने कह दिया, किसी ने कह दिया कि “मनुष्य सोशल एनीमल है।’’ तो सभी उस पर, मंत्र पढ़ रहे हैं। हां जी, सोशल एनीमल है, सोशल एनीमल है, सोशल एनीमल है, सोशल एनीमल है। उसको औरों की जरूरत है, उसको सोसायटी की जरूरत है। अरे, इतने सालों से सोसायटी थी ही नहीं। आज क्या जरूरत हो गयी है उसको ? मैं अच्छे-बुरे की बात नहीं कह रहा हूं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि ऐसा नहीं होना चाहिए। मैं यह कह रहा हूं कि जो अभाव मनुष्य महसूस कर रहा है, वो क्यों कर रहा है, क्योंकि वो अपने आपको नहीं जानता। अगर वो अपने आपको जानता तो उसको इन चीजों से डर नहीं लगेगा। इन चीजों के होने के बावजूद भी, वो अपने साथ रह सकता है, क्योंकि वो अपने आपको जानता है। जब मनुष्य ही अपने आपको अजनबी समझता है, तो किसको समझेगा वो। किसी को भी नहीं समझेगा।

बड़े-बड़े लोग हैं। बड़े-बड़े भाषण देते हैं। बड़ी-बड़ी बातें करते हैं परंतु उसका कोई प्रभाव होता है ? कुछ प्रभाव नहीं होता है। कुछ प्रभाव नहीं होता है। हमारे संत-महात्माओं ने तो कहा है कि “इस सारे संसार को अपना कुटुंब मानो।’’ यह तो बात हजारों साल पहले कही गयी है। हजारों साल पहले कही हुई बात भी आज लागू नहीं हो रही है इस संसार के अंदर क्योंकि क्या सचमुच में कोई भी इस संसार को कुटुंब मान रहा है। एक-दूसरे से लड़ने के लिए तैयार हैं। ये बड़ी-बड़ी जो फौजें हैं वो काहे के लिए हैं ? माला पहनाने के लिए हैं, एक-दूसरे का स्वागत करने के लिए हैं या एक-दूसरे से लड़ाई करने के लिए हैं। और वो दिखाते हैं कि हमसे मत लड़ना, हमसे मत लड़ना, हमारे पास ये है, हमारे पास ये है, हम तबाह कर देंगे, हम ये कर देंगे, हम वो कर देंगे। और इस संसार के अंदर तो सबसे बड़ी बात है “म्यूचुअल एश्योर्ड डिस्ट्रक्शन’’ कि हम, तुम अगर हमको मारोगे तो हम तुमको मार देंगे। तो हम तो मरेंगे ही पर तुमको भी मारेंगे। मैड - Mad का एक दूसरा भी मतलब होता है कि “पागल’’ और ये दुनिया की रीत बनायी हुई है।

ये समझते हैं लोग कि ये सबकुछ होने के लिए हम आगे बढ़ेंगे। बात आगे बढ़ने की नहीं है, बात अंदर जाने की है। वहां तुमको क्या मिलेगा ? अपने आपको जानना मिलेगा। जब तुम अपने आपको जानोगे, तब तुम समझ पाओगे कि तुम्हारा गुण क्या है। क्योंकि तुम्हारे अंदर करूणा भी है, दया भी है, समझना भी है, समझाना भी है। खुश होना भी तुम्हारे अंदर है। क्योंकि अब तो ये है ना कि ये दुनिया हमको दुखी कर रही है। ना, दुख भी तुम्हारे अंदर है और सुख भी तुम्हारे अंदर है, इसका दुनिया से कोई लेना-देना नहीं है। और जिस दिन तुम यह बात जान जाओगे और इस बात को स्वीकार कर लोगे पूरी तरीके से कि दुख भी तुम्हारे अंदर है और सुख भी तुम्हारे अंदर है तो फिर दुखी होने की क्या बात है।

फिर वो खोजो। खोदो उस चीज को जो तुम्हारे अंदर है जिससे कि तुम खुश हो सकते हो। रोना भी तुम्हारे अंदर है, हंसना भी तुम्हारे अंदर है। तुम समझते हो कि ये सारी चीजें बाहर से आती हैं। जिस दिन तुम यह समझ जाओगे कि ये बाहर से नहीं आती हैं ये तुम्हारे अंदर हैं। परेशानी भी तुम्हारे अंदर है। जिस दिन तुम यह समझ जाओगे कि परेशान तुमको कोई बाहर वाला नहीं कर रहा है, तुम ही खुद कर रहे हो अपने आपको उस दिन तुम्हारी दुनिया बदल जायेगी। सारी की सारी दुनिया बदल जायेगी क्योंकि फिर तुम दुनिया को उस तरीके से नहीं देखोगे। दोस्ताना किससे करोगे जो तुम्हारे अंदर बैठा है उससे दोस्ताना करोगे। इसका यह मतलब नहीं है कि तुम्हारे दोस्त बाहर नहीं होंगे। होंगे, पर उनसे क्या अपेक्षा करोगे वो बात बदल जायेगी। और किसी भी कारण अगर तुमको अपने साथ होना पड़ा तो तुमको उससे दुख नहीं होगा, उससे खशी होगी। सारी चीजें छोड़ करके अगर अपने साथ रहने के लिए, किसी मजबूरी के कारण, चाहे वो कोरोना वायरस हो या कुछ भी हो, अगर तुमको होना पड़ा तो तुम उसके लिए दुखी नहीं होगे। तो यह बात समझने की है। तुम अगर जान जाओ कि तुम कौन हो, तुम्हारा गुण क्या है।

ये जिस, जिस, जिस चमड़ी को तुम रगड़ते रहते हो। कभी गोरा करते हो, कभी कुछ करते हो, कभी कुछ करते हो। सजाते हो इसको ताकि दुनिया देखे कि तुम कितने सुंदर हो। कबीरदास जी कहते हैं — इससे तो कोई ढोलक भी नहीं बजा सकता। किसी काम की नहीं है यह। क्या करेंगे इसको या तो दफना देंगे या जला देंगे या बहा देंगे। जिसको तुमने इतना रगड़ा, इतना रगड़ा, इतना रगड़ा, इतना साफ किया, इतना ये किया, इतना वो किया उसको सजाया-धजाया, ये किया, वो किया किसी काम की नहीं। हिन्दुस्तान में कितने गहने हैं, लोग पहनते हैं। कोई अपने दांत पर लगाता है सोना। कोई सोने की माला बनाता है और इस शरीर को सजाते हैं कि देखो हम कितने सुंदर हैं। और होना क्या है एक दिन, कुछ नहीं बचेगा। कुछ नहीं बचेगा।

तो अपने गुण को समझो कि अपना असली गुण क्या है! अपने आपको जानने की कोशिश करो। क्योंकि अगर अपने आपको जान नहीं पाओगे, जो कुछ हो रहा है ये तुम्हारे कभी समझ में नहीं आयेगा। क्यों हो रहा है ? लोग कहेंगे क्या हमारे पिछले जन्म का कर्म था यह ? पिछले जन्म के कर्मों में फंस जाते हैं लोग। तुमको क्या मालूम कि तुम पिछले जन्म में थे या नहीं थे, तुमको क्या मालूम।

भगवान कहते हैं, कृष्ण भगवान कहते हैं अर्जुन से कि “अर्जुन तेरे-मेरे में यही अंतर है। मेरे को सबकुछ याद है, तेरे को कुछ याद नहीं रहेगा।’’ तो जब याद ही नहीं रहेगा तो फिर क्या मालूम। यह कभी बात समझ में नहीं आयेगी कि क्या सचमुच में यह स्वांस का आना-जाना ही बनाने वाले की कृपा है। बिलकुल! जब युद्ध पूरा हुआ तो एक प्रथा थी। प्रथा यह थी कि जब रथ आयेगा वापिस तो सबसे पहले जो रथ को चलाने वाला है, वो उतरेगा और चला जायेगा। और फिर जो योद्धा है, वो उतरेगा फिर उसको माला पहनायी जायेगी, लोग उसकी जय-जयकार करेंगे, सबकुछ होगा उसका। आदर-सत्कार होगा। तो उस आदर-सत्कार में कोई बाधा न पड़े इसलिए रथी जो है वो उस रथ से उठकर चला जायेगा, पहले।

तो जब भगवान कृष्ण उस रथ को लाये, तो उन्होंने कहा, “नहीं, नहीं, अर्जुन पहले तुम इस रथ से नीचे जाओ, तुम उतरो बाद में मैं उतरूंगा।’’ तो लोगों के समझ में नहीं आया कि ऐसा क्यों ? तो अर्जुन ने कहा, “जी, ये तो, ये तो बात विपरीत, जो प्रथा है उसके विपरीत है।’’ तो भगवान कृष्ण ने कहा कि “तेरी समझ में आ जायेगा, तू वही कर जो मैं कह रहा हूं।’’ तो अर्जुन पहले उतरा उसका स्वागत हुआ, सबकुछ हुआ जब वो थोड़ा-सा दूर हुआ तब वो नीचे उतरे और जैसे ही वो नीचे उतरे तो सारा का सारा जो रथ था एकदम फट गया। आग से फट गया। सबको बड़ा अचम्भा हुआ ऐसा क्यों ? तो कहा कि “इस रथ पर इतने ब्रह्मस्त्र चले कि इसका फटना तो होना ही था।’’ परंतु मैं हूं एक, भगवान कृष्ण कहते हैं कि “मैं हूं एक जिन्होंने अपने ताकत से इस रथ को एक रखा, फटने नहीं दिया। और जैसे ही मैं इस रथ से निकला, ये फट गया।’’

जबतक इस आशीर्वाद का इस रथ पर, इस रथ पर आना-जाना है। क्योंकि इसका रथी कौन है, इसको कौन चला रहा है, जो चला रहा है उसने इसको एक रखा हुआ है। जैसे ही वो निकलेगा यह रथ किसी काम का नहीं रहेगा। तुम हो अर्जुन जो समझते हो कि तुम्हारी वजह से यह रथ चल रहा है। पर यह तुम्हारी वजह से नहीं चल रहा है। तुम इस रथ में बैठे हुए बहुत कुछ कर सकते हो। और अपने जीवन को सफल कर सकते हो। परंतु जिस दिन वो जो इस रथ को चला रहा है, जब वो उतरेगा तो तुम कुछ नहीं कर पाओगे।

यह तो है फैक्ट, यह तो है सही बात। इसको समझो और यह जो समय है धीरज, धीरज से, अपने अंदर शांति बनाये रखो। बाहर जो हो रहा है, वो हो रहा है, तुम अपने अंदर शांति बनाये रखो। डरो मत, डर की बात नहीं होनी चाहिए। यह समय भी गुजरेगा। आनंद लो, इस जीवन के अंदर यह जो चीज तुम्हारे अंदर चल रही है इसका पूरा-पूरा फायदा उठाओ और अपने असली गुण को समझो।

तो सभी लोगों को हमारा नमस्कार!

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