प्रेम रावत जी:
सभी लोगों को हमारा नमस्कार!
आज के दिन मैं आप लोगों से एक छोटी-सी बात कहना चाहता हूँ। क्योंकि जो माहौल है इसमें इतना सबकुछ हो रहा है और लोग डरे हुए हैं। और ये जो सीरीज़ मैं बना रहा हूँ ये है "हिम्मत का समय।" तो एक बात आपने सुनी हुई है, एक दोहा है, चौपाई है बल्कि कि —
धीरज धर्म मित्र अरु नारी।
आपद काल में परिखिअहिं चारी।।
ये जो चार चीजें हैं — धीरज, धर्म, मित्र और नारी — अब जरा इसके बारे में मैं एक बात स्पष्ट करना चाहता हूं। क्योंकि जब नारी कहा है तो नारी का मतलब सिर्फ नारी ही नहीं है। नारी का मतलब है कोई भी जिसके साथ आप रहते हैं दोस्त हो, आज के समाज में वही बात नहीं रह गयी है जो पहले होती थी तो जैसा भी है, जैसा भी माहौल में है, पर जो आपके साथ है। और मित्र, मित्र का मतलब सिर्फ दोस्त ही नहीं हुआ बल्कि मित्र वो भी है जो किसी भी तरीके से आपका सहयोग करता है। और धर्म, धर्म के बारे में तो बात स्पष्ट है। और मैं ज्यादा कहूंगा भी नहीं धर्म के बारे में। क्योंकि फिर लोग हैं तो उनको लगता है कि आपने मेरे धर्म के बारे में ये कह दिया, आपने मेरे धर्म के बारे में ये कह दिया, तो फिर लोगों को अच्छा नहीं लगता है। और फिर आती है बात धीरज की। वह आपके ऊपर है। किसी और का धीरज नहीं, आपका धीरज। धीरज में क्या-क्या है ? धीरज रखने के लिए किस-किसकी जरूरत है ? एक तो इस चीज की जरूरत है कि शांति हो अंदर। बिना शांति के धीरज कहां से लाएगा मनुष्य! और वो परखने की चीज हो कि कोई भी स्थिति जिसमें से गुजर रहे हैं यह मालूम होना चाहिए मनुष्य को कि यह भी गुजरेगी। कोई भी परिस्थिति हो।
अच्छा समय भी हो वह भी गुजरेगा। बुरा समय भी हो वह भी गुजरेगा। स्थानीय कोई भी चीज नहीं है इस संसार के अंदर। हरेक चीज बदलती है। हरेक चीज बदलती है। भगवान राम के साथ भी यही हुआ। जब वह पहले छोटे थे फिर बड़े हुए। फिर वह गए, जंगल में गए। उन्होंने दानवों को मारा। फिर वह आये, सीता के साथ और फिर उनको वनवास हुआ। सारी स्थिति, परिस्थिति बदलती गयी, बदलती गयी, बदलती गयी, बदलती गयी,बदलती गयी। स्थानीय कोई चीज नहीं थी। अच्छा समय भी आया और बुरा समय भी आया। मनुष्य को बुरे समय में इस बात का एहसास होना चाहिए कि यह भी टलेगा। और बुद्धिमान वो है कि जो अच्छे समय में भी इस बात को जानता है कि यह भी हमेशा नहीं रहेगी। अब अच्छा समय क्या है और बुरा समय क्या है ?
जब इच्छा अनुकूल सबकुछ होता है तो मनुष्य समझता है कि वह अच्छा समय है। और जब इच्छा के अनुकूल सबकुछ नहीं होता है तो उसको मनुष्य बुरा समय मानता है। पर जबतक यह स्वांस तुम्हारे अंदर आ रहा है, जा रहा है तुम्हारा समय अच्छा है। यह बात है ज्ञानी की, अज्ञानी की नहीं। अज्ञानी को ये नहीं मालूम। अज्ञानी को तो ये भी नहीं मालूम कि यह स्वांस क्या है! अज्ञानी को तो ये भी नहीं मालूम कि इस स्वांस की कीमत क्या है। अज्ञानी को तो ये भी नहीं मालूम कि जो मेरे को मनुष्य शरीर मिला है यह कितना दुर्लभ है। लगा हुआ है मनुष्य कहीं इधर भाग रहा है, कहीं वहां भाग रहा है, कुछ ये कर रहा है, कुछ ये कर रहा है, जो कुछ भी। क्योंकि एक रेडियो बाहर होता है और एक रेडियो कान के बीच में चल रहा है। और दिन-रात, दिन-रात, दिन-रात, दिन-रात, दिन-रात, दिन-रात वो रेडियो चलता है। किसी ने ये कह दिया, किसी ने ये कह दिया मेरे को ये करना चाहिए, मेरे को वो करना चाहिए, इसी के बीच में चलता रहता है। मेरे लिए ये अच्छा नहीं है, मेरे लिए वो अच्छा नहीं है; मेरे को ये चाहिए, मेरे को वो चाहिए। तेरे को ये कर, तू ये कर, तू ये कर, अपना नाम रौशन कर। कहां नाम... क्या नाम रौशन करेगा ? जब एक दिन पृथ्वी ही नहीं रहनी है। जब एक दिन चन्द्रमा ही नहीं रहना है। जब एक दिन सूरज ही नहीं रहना है। जब एक दिन सबकुछ, जो कुछ भी है ये सब खत्म होना ही है, तो क्या नाम रौशन करने में लगे हुए हो! और किसका नाम हो गया रौशन ?
ऐसे भी लोग थे, बड़े-बड़े लोग हिन्दुस्तान में ही देख लो जब अंग्रेज आये तो उन्होंने बड़ी-बड़ी मूर्ति बनायी, क्वीन विक्टोरिया की। अब कहां हैं वो ? अब वो थोड़ी-बहुत जो बची हुई हैं कहीं हैं रखी हुईं उन पर कबूतर दिन-रात अपना काम कर रहे हैं। एक तो वो होता है जो सारी चीज को देखता है। क्या हुआ और क्या हो रहा है और आगे क्या होगा! एक चीज तो वो हैं न जो थी, जो है, जो रहेगी। और मनुष्य अपने को देखे कि मैं एक समय में नहीं था। अब मैं हूँ और एक ऐसा समय भी आएगा कि मैं नहीं हूँगा। अब ये कब आएगा, यह किसी को नहीं मालूम। हां, इतनी बात जरूर है कि आएगा। इसमें कोई संदेह नहीं है। निःसंदेह यह सत्य है कि वह समय आएगा।
अब लोग हैं "अब हम क्या करें जी ? हमारे साथ ये है, हमारे साथ ये है, हमको ये चाहिए, हमको वो चाहिए।" और कितने ही लोग हैं, और कितने ही लोग हैं जो हमको चिट्ठी लिख रहे हैं कि "जी हमारा एक बच्चा है, वह सबकुछ ठीक ढंग से नहीं कर पाता है।"
देखो, सबसे पहली बात अब मैं ये बात इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मैं डॉक्टर हूँ, पर मेरा यह अनुभव है, क्योंकि मैंने इस बात का अनुभव किया हुआ है। किसी भी मनुष्य को, किसी भी मनुष्य को — दो चीजें हैं एक तो है प्रेम। मनुष्य दूसरे मनुष्य को अगर कुछ नहीं दे सके और प्रेम दे सके, प्रेम और इस समय मनुष्य को गुस्सा, एक-दूसरे को गुस्सा देने की, एक-दूसरे को तकलीफ देने की जरूरत नहीं है। इस समय एक-दूसरे को प्रेम देने की जरूरत है। ये मनुष्य एक-दूसरे को दे सकता है।
मैं जो, जो मेरा अनुभव है — जब हम छोटे थे तो एक लड़का था, वह आया। तो उसके माँ-बाप बहुत अमीर थे, परन्तु उसका दिमाग ठीक नहीं था। तो वह आया। तो अब जब मैं कह रहा हूं कि दिमाग ठीक नहीं था, तो सचमुच में ठीक नहीं था। एक तो वह अपने आपको काटता था। कुछ भी गलत हो तो अपने आपको काटता था। उससे तो बात भी नहीं की जा सकती थी। और जहां जाता था पेन इकट्ठा करता था और उसके जेब में इतने पेन रखे रहते थे कि पूछो मत। और बोतल, बोतल इकट्ठा करने का उसको बड़ा शौक था। तो जहां जाता था बोतल इकट्ठा करता था। तो जब वह आया तो हमने कहा कि "भाई यह तो हमारा घर है। हम यहां रहते हैं। आप इसको क्यों ले आये ?" तो खैर जैसा भी था वो वहां रहने लगा। तो धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे करके सबको उस पर तरस आने लगा। धीरे-धीरे करके सबने उसको प्रेम देना शुरू किया।अगर किसी के पास पेन था तो बजाय उससे मांगने के वह जब कोई भी उससे मांगता था पेन, उसका पेन तो वह बहुत ही गुस्से में आ जाता था और अपने को काटता था और खून निकलता था और उसके यहां चारों तरफ बहुत ही बुरा हाल था उसका। परन्तु धीरे-धीरे करके जब उसको वो प्रेम मिलने लगा, तब उसने वो पेन इकट्ठा करने की आदत छोड़ दी। धीरे-धीरे करके जब उसको आदर और प्रेम मिलने लगा तो उसने बोतल भी इकट्ठा करना बंद कर दिया बल्कि उसको अगर कहीं बोतल मिल भी जाए तो वह किसी को भी देने के लिए तैयार हो जाता था। एक समय था कि वह किसी को देता नहीं था। अगर किसी ने बोतल इधर से उधर भी रख दी तो वह एकदम चिल्लाने लगता था। परन्तु धीरे-धीरे-धीरे करके प्रेम उसको जैसे-जैसे मिला उसको फिर इन चीजों की जरूरत नहीं रही।
परिवार में एक-दूसरे को प्रेम क्यों नहीं देते हैं ? एक-दूसरे को ताना क्यों मारते हैं ? एक-दूसरे को गुस्सा करने की कोशिश क्यों करते हैं ? एक-दूसरे के गुण क्यों नहीं छीनते हैं बल्कि उनकी बुराइयों को देखते हैं। प्रेम की जरूरत है। धीरज की जरूरत है। और अगर धीरज नहीं है तो इस संसार में कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर होगी। और वो धीरज उसका समय आ गया है, हिम्मत का समय आ गया है, मनुष्य की असली हिम्मत का समय आ गया है। क्योंकि और चीजें कोई काम नहीं करेंगी। और चीजें कुछ काम नहीं करेंगी।
अब मौका जो हमको मिला पहले ही तो हमने वैक्सीन कर ली — दो, दो वैक्सीन। तो अब लोग हैं, "अजी हमको करनी चाहिए या नहीं चाहिए ?" भाई, क्यों नहीं करनी चाहिए ? और लोग हैं कोई, कोई अफवाह उड़ा रहा है, कोई-कोई अफवाह उड़ा रहा है। अभी किसी ने मेरे को चिट्ठी भेजी कि "जी, हमने सुना है कि आप बीमार हो गए!" हमको पहले ही वैक्सीन लगी हुई है, तो उस वैक्सीन से क्या होगा ?
हम तो गए, हिन्दुस्तान में गए। साउथ अफ्रीका में गए, ब्राज़ील में गए। ऐसी-ऐसी जगह गए जहां बहुत ही सबकुछ हो रहा था। हमको नहीं हुआ। क्योंकि मास्क हमने पहना। सबसे छह फुट, छह फुट से भी दूर का जो डिस्टेंस था वह हमने बनाकर रखा। हाथ हमने धोये। तो जो कहा गया था उसका हमने पालन किया। और हमको अच्छी तरीके से मालूम था कि ये इसलिए थोड़े ही कह रहे हैं कि ये हमको जानते हैं और हमको परेशान करना चाहते हैं। नहीं, हमारी भलाई के लिए। जो बात किसी की भलाई के लिए की जाती है अगर वो अपनी भलाई की बात को नहीं समझ सकता है, तो वो तो गया। ऐसे कैसे काम होगा! हिम्मत रखने का मतलब ही ये चीज है कि जो मनुष्य है वो सुने अफवाहों को नहीं, अफवाहों को नहीं, अफवाहों को अलग करे। वो सुने, उस बात को सुने जिससे कि उसका भला हो। सबसे बड़ी बात ये है। सबसे बड़ी बात ये है। ये बात लोग भूल जाते हैं। कोई फिर और बात सुनने लगता है, कोई और बात सुनने लगता है, कोई और बात सुनने लगता है। उससे फिर भ्रमित होता है मनुष्य। भ्रमित करने वाले भी तो थोड़े कम हैं। ना, उनकी तो इतनी आबादी हो गयी कि पूछो मत। कोई धर्म के नाम पर, कोई भगवान के नाम पर किसी को बेवकूफ बना रहा है। कोई गवर्नमेंट के नाम पर किसी को बेवकूफ बना रहा है। कोई पुलिस के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहा है। कोई मिलिट्री के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहा है। जहां देखो बेवकूफ बनानेवालों की कमी है ही नहीं। परन्तु अगर बेवकूफ बनानेवाले हैं तो कम से कम अगर किसी चीज की कमी होनी चाहिए, तो वो उनकी होनी चाहिए जो बेवकूफ बनते हैं।
अरे, बेवकूफ बनानेवाला भी अगर हो तो यह जरूरी थोड़े ही है कि बेवकूफ बनना है तुमको। क्यों! हिम्मत रखो। ठीक है, परिस्थितियां जैसी हैं वैसी हैं, परन्तु इनसे आगे चलने का हल तो हिम्मत की ही जरूरत है न। इस मनुष्य को, आज के मनुष्य को हमदर्दी भी चाहिए और हिम्मत भी चाहिए, क्योंकि आगे चलना है, पीछे नहीं, आगे चलना है हमेशा। अच्छे समय में आगे चलना है। बुरे समय में आगे चलना है। और आगे चलने की शक्ति तुमको कहां से मिलेगी ? हिम्मत की शक्ति तुमको कहां से मिलेगी ? यह किसी पहाड़ के ऊपर नहीं है। यह किसी पेड़ के ऊपर नहीं है। यह भी तुम्हारे अंदर है। और अगर अपने अंदर तुम इसको महसूस नहीं कर सकते हो तो फिर — धीरज धर्म मित्र अरु नारी। ये कैसे परख पाओगे कि कौन तुम्हारा हितैषी है!
अगर तुम यही नहीं जानते कि सबसे बड़ा हितैषी तुम्हारा तुम्हारे अंदर बैठा हुआ है। जो सबसे ज्यादा हित तुम्हारा जानता है, वह तुम्हारे अंदर है। और तुम उस चीज को स्वीकार करो अपने में जो सचमुच में ज्ञान है, अज्ञान नहीं, ज्ञान है। इस समय प्रकाश की जरूरत है, अंधेरे की नहीं। अंधेरे की एक बात है और इसका, इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो मनुष्य अंधेरे में बैठा है, बैठा है, बैठा है, बैठा है, बैठा है, बैठा है, वो अंधेरे का आदी हो जायेगा। अंधेरे का आदी होना क्या हुआ ? क्या मतलब हुआ इसका ? इसका मतलब ये हुआ कि जब प्रकाश होगा, जब प्रकाश होगा तो वो इतना आदी है अंधेरे का कि जब रोशनी उसकी तरफ आएगी तो वह अपनी आंखें बंद कर लेगा। क्योंकि वह देख नहीं पायेगा उस प्रकाश को वह कहेगा, "अहह! बहुत-बहुत-बहुत ज्यादा है।" यह है अंधेरे का आदी बनने का नतीजा।
तुमको प्रकाश की जरूरत है जीवन में। प्रकाश तुमको दिखायेगा कि उस चीज से, जिस चीज से बचना है वह कहां है। अपने जीवन में, अपने जीवन को सफल बनाओ। हिम्मत रखो, आगे चलो क्योंकि यह तुम्हारा नियम है। तुम आये और एक दिन तुमको जाना है। कब जाना है यह तुमको नहीं मालूम। जबतक तुम जीवित हो, जीवित रहो।अंदर से जीयो, बाहर से ही नहीं, अंदर से जीयो। और इन चीजों की जरूरत है। हिम्मत की जरूरत है।
मेरे को मालूम है काफी सारे लोग हैं, जिन्होंने अपने प्यारों को खो दिया है। सचमुच में यह शोक की बात है, परन्तु फिर भी आगे चलना है। फिर भी आगे चलने की जरूरत है, चिंता करने की नहीं।
चिंता तो सतनाम की, और न चितवे दास,
और जो चितवे नाम बिनु, सोई काल की फांस।
इस समय में भी, यह तो बात बहुत साल पहले कही मैंने पर आज इसकी जरूरत और है। इसलिए सभी लोग हिम्मत रखें, आगे चलें और जो तुम्हारे अंदर शांति है उसको आने दो। जैसे होली के समय पानी जब पड़ता है तो आदमी भीगता है, उसी तरीके से "बरसन लाग्यो रंग शबद झड़ लाग्यो री।" उस ज्ञान को, उस शांति को अपने ऊपर आने दो और उसमें भीगो और जो अंदर का आनंद है उसको मत भूलो। चाहे कुछ भी हो जाए जो अंदर की शांति है उसको मत भूलो।
तो सभी लोगों को हमारा नमस्कार!