प्रेम रावत:
जो कुछ भी हम सुनते हैं, क्या हम जो सुनते हैं, उसको समझते भी हैं ? उस पर अमल भी करते हैं या नहीं? क्योंकि सिर्फ सुनना पर्याप्त नहीं है। किसी चीज को सुन लिया, किसी ने कुछ कह दिया कि —
"भाई! तुम्हारा जीवन, जो तुमको मिला है, वो बड़े भाग्य से मिला है। और यहां जो तुम हो, जबतक तुम जीवित हो, तुम इसका पूरा-पूरा फायदा उठाओ!"
ये तो कितनी बार हमलोगों ने सुना होगा! एक बार नहीं, हजारों बार सुना होगा। पर इसमें अमल कितने लोग करते हैं ?
जैसे ही घर पहुंचेंगे, तो घर की सारी समस्याएं तुम्हारा इंतजार कर रही हैं। उनको कहां जाना है ? वो कहां जाएंगी ? और चंद मिनटों के बाद तुम उन्हीं चीजों में लग जाओगे, जो तुमको दुःख देती हैं, जिसकी वजह से तुम अपने आपको भाग्यशाली नहीं समझते हो। तुम समझ पाओ कि ये स्वांस तुम्हारे अंदर जो आ रहा है, जा रहा है, ये क्या है, जिसकी वजह से तुम जीवित हो।
एक बात मैं किसी से कह रहा था — सारी दुनिया स्वर्ग और नरक के चक्कर में पड़ी हुई है, "ये करोगे, वो करोगे तो नरक में जाओगे, ये करोगे, वो करोगे, स्वर्ग में जाओगे।" तो कहां जाएंगे, इसकी सबको पड़ी हुई है। पर कहां से आए, यह कोई नहीं पूछता। कहां जाएंगे — "ये करो, वो करो!" कहां से आए? यह किसी को नहीं मालूम, कहां से आए।
अब बात बताने के लिए लोग बोल देते हैं, "तुम पिछले जन्म में हाथी थे, तुम पिछले जन्म में घोड़ा थे, तुम पिछले जन्म में कीड़े थे, तुम पिछले जन्म में कॉकरोच थे, तुम पिछले जन्म में ये थे, वो थे।" सबूत किसी के पास नहीं है। क्योंकि वो भी ये न बोलते, अगर तुम उस — जो एक चीज है, जो तुम्हारे में एक ताकत है झूठ और सच की, अगर तुम उसको इस्तेमाल करते तो फिर कोई नहीं बक-बक करता।
मतलब, जहां जाओ, उसकी बात नहीं है। बात वो है कि एक जगह है, जहां अगर तुम नहीं गए तो तुम चाहे कहीं भी चले जाओ, तुम कहीं नहीं गए।
और क्या होगा तुम्हारे साथ?
दो दीवाल हैं। एक दीवाल से निकल के आए और दूसरी दीवाल से जाना है। और उसके बीच में है तुम्हारी जिंदगी। कहां से आए ? किसी को नहीं मालूम। और जब दूसरी दीवाल के अंदर घुसेंगे, कहां जाएंगे ? यह किसी को नहीं मालूम। ये दो दीवाल हैं! इसके बीच में है तुम्हारा खेल! उस दीवाल के उधर नहीं है और इस दीवाल के उधर नहीं है। इस दीवाल के इधर है और इस दीवाल के इधर है। इसमें तुम हो। तुम्हारे रिश्ते, तुम्हारे दोस्त, तुम्हारा सुख, तुम्हारा दुःख, तुम्हारी चिंताएं, सब इसके बीच में हैं।
यह जो समय मिला है, तुम कहां लगे हुए हो ? इन दो दीवालों के बीच की सोचने के लिए नहीं। कहां जाता है मनुष्य का ध्यान ? इस दीवाल के उस तरफ क्या है ? फायदा क्या हुआ ? फायदा क्या हुआ ? फायदा क्या हुआ ? क्योंकि वो तो होना ही है। वो तो होकर रहेगा। उसको टालने के लिए तो बहुत लगे हुए हैं पर वो कभी टलेगी नहीं। जब यह हो गया कि तुम इस दीवाल के इस तरफ आए तो अब उस दीवाल के उस तरफ तुमको जाना है। यहां जो जवान लोग बैठे हैं, उनको यह बात समझ में नहीं आती है।
जवान हैं न ? "नहीं। अभी तो सारी जिंदगी है आगे।"
देखो! जब तुम पैदा होते हो, तुमको कोई ध्यान नहीं है, तुम कौन हो, क्या हो, क्या करते हो, क्या करना है, क्या है, क्या नहीं है ? एक-एक मिनट के आधार पर तुम जीते हो। सबकुछ ठीक है, सबकुछ ठीक नहीं है। भूख लगी है — ऐं! तकलीफ है, क्योंकि डाइपर किसी ने चेंज नहीं किया है तो — ऐंऽ! नींद आ रही है, सो नहीं रहे हैं तो — ऐंऽऽ! उससे मां को पता लग जाता है कि कोई चीज ठीक नहीं है। त,त,त,त,त,त सुला देती है! सोना क्या है ? जागना क्या है ? कुछ नहीं मालूम। यही चक्कर चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है।
इसमें लगभग समझो — 10 साल लग जाएंगे। फिर अगले 10 साल में सब चक्कर होगा। उसी अगले 10 साल में “टीन एजर” बनोगे। सिर्फ 10 साल में। उसी 10 साल — जैसे पहले 10 साल, वैसे ही दूसरे 20 साल में और 10 साल में तुम “टीन एजर” बनोगे और “टीन एजर” से बाहर भी निकलोगे। नाइनटीन! बस! फिर ट्वेंटी।
फिर अगले 10 साल में, सिर्फ दस साल में — दस साल की बात हो रही है। पहला दस साल, दूसरा दस साल, तीसरा दस साल — सारी दुनियादारी के चक्कर में पड़ोगे। शादी! कोई जब 30 का होने लगता है — ऐंह! उससे पहले ही ये सबकुछ होता है। नौकरी लग जाती है, ये ..! क्योंकि नौकरी लग जाए, फिर शादी भी अच्छी होगी। ग्रेजुएट भी उसी में होना है। अगर कोई डिग्री लेनी है कॉलेज से, वो भी उसी में होगी। ये सबकुछ कर-करा-करके सारी अच्छी तरीके से तुम अगले उस दस साल में फंस जाओगे।
फिर अगले दस साल में तुम क्या करोगे?
फंसे रहोगे। पहले दस साल में उस चक्कर से तुम, निकलने की तुम्हारी इच्छा भी नहीं थी। अगले दस साल में उससे भी तुम्हारी निकलने की इच्छा नहीं थी। अगले दस साल में उससे भी निकलने की इच्छा नहीं थी, परंतु ये जो होंगे अगले, तुम्हारी इच्छा होगी — कैसे निकलें ? फिर ध्यान जाएगा तुम्हारा रिटायरमेंट की तरफ, जो अगले दस साल में होना है। रिटायर भी होना है और होगा क्या ? पहले मंदिरों का चक्कर काटते थे, अब अस्पतालों का चक्कर काटोगे —
"उंह! ये हो गया, वो हो गया! डॉक्टर साहब! ठीक कर दो!"
यही होना है सबके साथ। चाहे कोई अमेरिका में हो, चाहे कोई हिन्दुस्तान में हो, चाहे कोई ऑस्ट्रेलिया में हो, चाहे कनाडा में हो; चाहे कोई साउथ अमेरिका में हो, चाहे कोई अफ्रीका में हो। त,त,त,त,त,त,...धड़क, धड़क, धड़क,धड़क, धड़क, धड़क!
तो तुम जब सोचते हो कि तुम्हारे पास बहुत टाइम है तो जरा सोचो कितना टाइम है। ज्यादा टाइम नहीं है। और इसी में करना है, जो कुछ करना है। इसी में समझना भी है, अपने हृदय को भरना भी है, अपने आपको समझना भी है।
तो उसके प्रति तुम क्या कर रहे हो ?
नहीं करोगे तो उस दीवाल से तो निकलना है। ये तो सबका भाग्य है।इसके लिए हमको पंडित-वंडित की जरूरत नहीं है समझने के लिए। ये तो निकलना है। उस दीवाल से तो निकलना है। ये तो हम प्रीडिक्ट कर सकते हैं। ये तो हम भविष्यवाणी कर सकते हैं कि सबको उस दीवाल से निकलना है।
अब रही धारणाओं की, तो धारणाओं के पीछे हम क्या-क्या नहीं समझा सकते हैं तुमको ? जब कोई पैदा होता है तो इस पृथ्वी का बोझ नहीं बढ़ता है, जब कोई आदमी मरता है तो इस पृथ्वी का बोझ कम नहीं होता है। तो इसका मतलब क्या हुआ ? यहीं से तुम्हारा शरीर है और यहीं तुम्हारा शरीर जाकर इन्हीं पदार्थों में, जिनसे तुम्हारा शरीर बना है, उन पदार्थों के साथ मिल जाएगा।
गुब्बारा देखा है कभी ?
उसमें हवा भरो, वो फूल जाएगा। नहीं ?
जबतक वो गुब्बारा फूला हुआ है, तो उसके अंदर की जो हवा है, वो उस बाहर की जो हवा है, उससे बहुत नजदीक है, परंतु विभिन्न है। और जिस दिन वो गुब्बारा फूटेगा, गुब्बारा फिचिक और हवा, उसी हवा के साथ मिल जाएगी, जिस हवा को तुमने भरा।
यह तो जो कुछ भी हम कर रहे हैं, जिस पर हमको इतना घमंड है, जिसको हम टेक्नोलॉजी कहते हैं — घिसीपीटी बात है। क्योंकि मनुष्य कंट्रोल करना चाहता है। हर एक चीज को कंट्रोल करना चाहता है। मौसम को कंट्रोल करना चाहता है, सूरज को कंट्रोल करना चाहता है, पृथ्वी को कंट्रोल करना चाहता है, नदियों को कंट्रोल करना चाहता है।
यह कंट्रोल करने की भावना आई कहां से उसमें ?
ये सब एक ही चीज का परिणाम है। क्योंकि तुम भी अपनी फैमिली को कंट्रोल करना चाहते हो। तुम भी अपने दोस्तों को कंट्रोल करना चाहते हो। और तुम्हारे आसपास जितने लोग हैं, तुम सबको कंट्रोल करना चाहते हो।
जब तुम मूवी देखने के लिए जाते हो, फिल्म देखने के लिए जाते हो, पिक्चर देखने के लिए जाते हो — लाइन जब ज्यादा लम्बी होती है, तुम्हारे दिल में इच्छा नहीं होती है कि तुम्हारे पास कुछ ऐसा हो और लाइन(खत्म)।
हर एक चीज को तुम कंट्रोल करना चाहते हो। क्यों कंट्रोल करना चाहते हो तुम ? कभी सोचा ? पर कंट्रोल करना चाहते हो। पर यह नहीं मालूम कि क्यों कंट्रोल करना चाहते हो।
तुम इसलिए कंट्रोल करना चाहते हो कि तुम अपने आपको नहीं समझते। और अगर तुम अपने आपको समझ जाओ, तुम अपने आपको जान जाओ कि तुम्हारे अंदर की चीज क्या है — उस ज्ञान द्वारा अपने स्थित जो शक्ति तुम्हारे अंदर विराजमान है, उसका तुम अनुभव करो तो तुम समझने लगोगे कि तुम असली में कौन हो।