प्रेम रावत:
अब देखिए! एक छोटी-सी बात। आपकी वॉन्ट्स भी हैं, आपकी नीड्स भी हैं। क्या कभी आपने बैठ के एक दिन अपने से यह पूछा है कि मेरी वॉन्ट्स क्या हैं और मेरी नीड्स क्या हैं ? या दोनों की खिचड़ी बनी हुई है ?
साक्षात्कार:
पुरुष: यह तो एक ही सिक्के के दो पहलू हो गये।
पुरुष: ज़रूरत है . . .
पुरुष: अटेंडेंस . . .
पुरुष: हर चीज़ चाहत है।
पुरुष: पढ़ाई करनी है, जॉब करनी है, पैसे कमाने हैं, जो करना है करना है। लेकिन वॉन्ट्स में क्या हो रहा है सबकुछ करना है हमें।
महिला: अच्छी-सी, मस्त-सी लाइफ बिना शादी के।
पुरुष: चाहत जो है कभी खत्म नहीं होती इंसान की।
महिला: चाहत क्या होती है ?
पुरुष: घूमना सबसे ऊपर है।
महिला: ग्रोथ चाहिए, डेवलपमेंट चाहिए डेफ़िनिटेली मनी इज़ वैरी इम्पोर्टेन्ट
महिला: पहाड़ों में जाकर ट्रैकिंग करना।
पुरुष: चाहत तो यह है कि मैं फ़रारी में घूमूं।
महिला: मेरी! मैं बेसिकली आर्मी में जाना चाहती हूं।
महिला: ज़रूरतें हैं . . .
प्रेम रावत:
असली ज़रूरत! उन चीज़ों की बात कर रहा हूं जिनके बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकेगा। मनुष्य की ज़रूरतें क्या हैं ? तीन हफ्ते अगर भोजन न मिले, आप गए!
साक्षात्कार:
पुरुष: तीन हफ्ते खाना...
महिला: बिल्कुल डैमेज़ हो जायेंगे, चल भी नहीं पायेंगे।
पुरुष: अरे! बचेंगे ही नहीं और क्या होगा।
पुरुष: थ्री टाइम्स भी डे...नहीं मिलता आइ कांट लीव विदाउट फूड।
महिला: ओह माइ गॉड! हम लोग फूडी हैं हम लोग को तो वैसे ही चाहिए।
पुरुष: खाना नहीं मिले तो कैसे ? रह नहीं पाऊंगा पहली बात तो।
महिला: मैं तो नहीं रह सकती।
महिला: खाना! खाना तो इंसान की ज़रूरत होती है।
प्रेम रावत:
अगर कोई बिना भोजन के मर गया तो उसके लिए मेडिकल टर्म है — स्टारवेशन। वो मरा स्टारवेशन से। अगर तीन-चार दिन आपको पानी न मिले, हफ्ते भर पानी न मिले, आप गए!
साक्षात्कार:
पुरुष: चाहिए पानी तो।
महिला: पानी के बिना तो नहीं सर्वाइव कर सकते।
महिला: पानी, हवा, खाना नहीं छोड़ सकते आप।
पुरुष: पानी भी नहीं और खाना भी नहीं तो, मर जायेगा वो।
पुरुष: तीन दिन तक अगर एक इंसान को पानी न मिले ना, दो घंटे में मर जाता है इंसान। तुम तीन दिन की बात कर रहे हो यार
महिला: पानी के बिना तो हम तीन घंटे भी नहीं रह सकते।
प्रेम रावत:
कोई अगर पानी के बिना मर गया तो उसके लिए भी मेडिकल टर्म है, वो मर गया डि-हाइड्रेशन से। अगर आप पाँच मिनट हवा नहीं लेंगे, स्वांस नहीं लेंगे, आप गए!
साक्षात्कार:
पुरुष: नहीं रह पाऊंगा सांस के बिना तो।
महिला: मेरे से तो एक मिनट तक सांस नहीं रोकी जाती।
महिला: एक मिनट भी नहीं हो पाती।
महिला: सांस के बिना मैं एक मिनट भी नहीं सर्वाइव कर पाऊंगी।
महिला: सांस लिये बिना हम यहां पर 30 सेकेंड्स रोकने की कोशिश करते हैं योगा के थ्रू पर वो भी नहीं हो पाता है।
प्रेम रावत:
अगर कोई मर गया बिना हवा के, ऑक्सीजन के तो उसके लिए भी मेडिकल टर्म है — सफोकेशन। पर अगर कोई मर गया बिना टीवी देखने के तो उसके लिए कोई मेडिकल टर्म नहीं है। क्योंकि वो इम्पॉर्टेन्ट नहीं है। मैं बात कर रहा हूं आपकी ज़रूरतें, और आपकी चाहतों की।
साक्षात्कार:
पुरुष: मैं रह ही नहीं पाऊंगा बिना टीवी के।
पुरुष: फ़ोन के बिना तो आइ थिंक मैं सोच सकता हूं कि लाइफ मेरी मॉम मेरे से छीन चुकी हैं।
पुरुष: पहले कैसा था, रोटी, कपड़ा, मकान। अभी रोटी, कपड़ा, मकान एंड मोबाइल।
पुरुष: वॉटसअप चाहिए होता है सबसे पहले। फ़ोन के बिना आज के टाइम में कुछ नहीं है।
महिला: फ़ोन तो लाइफ...।
महिला: लाइफ है आजकल की।
महिला: इंटरनेट इज़ वैरी नेसेसरी।
महिला: फेसबुक, वॉटसअप क्यों ? क्योंकि हमारा टाइम पास नहीं होता है।
महिला: फ़ोन ही सबकुछ हो गया है। फ़ोन ही गर्लफ्रेंड हो गया है, फ़ोन ही बॉयफ्रेंड हो गया है।
महिला: खाने के बिना रह सकते हैं पर फ़ोन के बिना नहीं रह सकते।
महिला: मतलब मैं सबकुछ भूल सकती हूं पर फ़ोन के बिना घर से बाहर इम्पॉसिबल नहीं।
प्रेम रावत:
मेरी ज़रूरत है — ‘शांति!’ ये लग्ज़री नहीं है। क्योंकि अगर ज़ीवन में शांति का अनुभव नहीं कर सकता हूं तो जहां भी जाऊंगा, मैं बिखरा रहूंगा।
On screen text: ज़रूरतें और चाहतें . . . आप किसे ज्यादा महत्व देते हैं ?