Text on screen : तनाव में आकर आज बहुत से युवा आत्महत्या कर लेते हैं, इसे कैसे रोका जा सकता है ?
प्रेम रावत:
यह बहुत ही गंभीर सवाल है। क्योंकि अगर आप गुब्बारे में फूंक मारते रहेंगे, मारते रहेंगे, मारते रहेंगे, मारते रहेंगे, आपको अच्छी तरीके से मालूम है कि उस गुब्बारे के साथ क्या होगा। फफ्फ! सोसाइटी दो आँसू बहाने के लिए तो तैयार है, पर ये समस्या के बारे में कुछ करने के लिए तैयार नहीं है। सक्सेस की फूंक ऐसी मार दी है लोगों के पीछे, ऐसी — और उन बच्चों के पीछे, शुरुआत से — तुझे कुछ बनना है, तुझे कुछ बनना है, तुझे कुछ बनना है, तुझे कुछ बनना है, तुझे कुछ बनना है।
जब आप कह रहे हैं, ‘‘तुझे कुछ बनना है’’ तो उसका तो — एक बात तो स्पष्ट हो गयी उसके दिमाग में कि मैं कुछ हूं नहीं। तो जब यह बात किसी बच्चे के दिमाग में स्पष्ट हो जाती है कि ‘‘मैं कुछ हूं ही नहीं, मेरे को कुछ बनना है तो जब वो चीज, जो मेरे को बनने के लिए चाहिए, वो खतम हो गयी तो मैं भी खतम हो गया।’’
ये बीमारी बच्चों की नहीं है। ये बीमारी हमारी सोसाइटी की बनाई हुई है। और जब एक भी बच्चा अपनी जिंदगी को खतम करने के लिए मजबूर होता है तो ये तो wakeup call है सारी सोसाइटी के लिए। और न सिर्फ हिन्दुस्तान की सोसाइटी के लिए, सारे संसार की सोसाइटी के लिए! बच्चों का काम खुदकुशी करना नहीं है। बच्चों का काम है — इस जीवन को enjoy करना! उनको प्रेरित करना इस जीवन के बारे में, जो वो बचपना खो चुके हैं —बुजुर्ग लोग — ये तो उल्टी गंगा बह रही है यहां। तो सक्सेस, सक्सेस, सक्सेस, सक्सेस, सक्सेस! और मैं सबसे कहता हूं — तुम पहले से ही सक्सेसफुल हो! ये चीजें तुमको सक्सेसफुल नहीं बनाएंगी। तुम्हारा सक्सेस तुमसे शुरू होता है। और तुम्हारा सक्सेस एक फूल के माफ़िक है। एक फूल के माफ़िक है! इसको पानी दो, अपने आप खिलेगा। उसकी पत्तियों को खींचने से फूल नहीं खिलेगा और चाहे कितनी भी कोशिश कर लो! उस फूल को खिलने दो। ये सक्सेस की बीमारी बहुत ही खराब है। सक्सेस तो पहले से ही है।
जिस दिन आपने स्वांस लिया, आप सक्सेसफुल हुए। और जबतक आपके अंदर स्वांस आ रहा है, जा रहा है, आप सक्सेसफुल हैं। पर मां-बाप हैं — ‘‘तू मेरी बेटी है।’’ और मैं तो ये कहूंगा आपसे — क्योंकि ये बड़ी निजी बात है मेरी। पर मेरे साथ ये हुआ। और मैंने साफ-साफ कहा — चाहे कुछ भी हो, कुछ भी हो — बुरा समय आए, अच्छा समय आए, कुछ भी हो — बेटी! तेरा-मेरा जो संबंध है — तू भी प्रण कर, मैं भी प्रण करता हूं कि ‘‘कुछ भी हो, हम इस संबंध को बदलने नहीं देंगे। चाहे कुछ भी आए।’’ तो ये कहां गया ?
मां, बेटी! बाप है, अपने जीवन में संघर्ष कर रहा है! और वो नहीं चाहता कि मेरी बेटी भी ये संघर्ष करे। तो उसके अंदर फूंक क्या मार रहा है ? उल्टी फूंक मार रहा है। ‘‘सक्सेसफुल! मेरे जैसा मत बनना! मेरे से ज्यादा मेहनत करना!’’ मेहनत करने से नहीं — वो लोग सक्सेसफुल हैं, जो इस सारी जिंदगी को दोनों हाथों से बटोरते हैं, समेटते हैं। वो करना नहीं सिखाया।
आत्महत्या करने के लिए कितना अंधेरा चाहिए! कितना अंधेरा चाहिए! ये देखिए आप कि आदमी कोई — मैंने बहुत सोचा इस बारे में कि आदमी को जीने में और मरने में कोई अंतर नहीं आ रहा है। मतलब, बत्ती इतनी बुझ गई है, इतना अंधेरा हो गया है कि वो मोमबत्ती, जो जलनी चाहिए, वो बुझ गई है। हम सबको कोशिश करनी चाहिए कि वो मोमबत्ती कभी न बुझे। कभी न बुझे! और जबतक सभी मिलकर के उनकी मदद नहीं करेंगे — स्कूल तो बना देते हैं। स्कूल तो बना देते हैं, पर उस स्कूल में पढ़ाया क्या जा रहा है ? बच्चों की समझ में भी आ रहा है या नहीं ? इम्तिहान के पेपर तो बना देते हैं, पर वो बेचारे पास कैसे होंगे ? क्या पढ़ाया जा रहा है बच्चों को ?
अब देखिए! एक मैं documentary देख रहा था, उसमें साफ है। तो एक country है। उसमें level of education इतना ऊंचा नहीं था। तो उन्होंने कहा, कुछ करना चाहिए। तो उन्होंने कहा, ‘‘ठीक है! बदल देंगे!’’ बदल दिया उन्होंने। क्या बदल दिया ? गृह-कार्य खतम! मैंने कहा, ‘‘ऐऽऽऽ! ऐंऽऽऽ! ऐंऽऽ! गृह-कार्य खतम!’’ और स्कूल के जो घंटे हैं, वो बहुत ही कम कर दिए। बहुत ही limited, बहुत ही कम! और emphasis — जाओ, खेलो!
हुआ क्या ?
बच्चे दिल भर के खेलते थे। और जब स्कूल में आते थे तो उनके लिए ये नहीं है कि यहां भी खेलते रहेंगे। नहीं। खेल वहां हो गया, अब पढ़ेंगे! ध्यान देने लगे। लेवल ऑफ एजुकेशन उसका आया। और फिर उनको मालूम है अच्छी तरीके से कि ध्यान दे दिया, अब फिर जाकर के खेलेंगे। ये हम एक दूसरे से क्यों नहीं सीख पाते ? मतलब, ये तो facts हैं! affection नहीं है, ये तो facts हैं। वो चीजें, जिससे सबका भला हो — काहे के लिए हम implement नहीं कर पाते हैं ? ऐसी-ऐसी चीजें implement करने के लिए हम तैयार हैं, जिसमें सिर्फ चंद का फायदा हो। पर ऐसी चीजें नहीं, जिसमें सबका फायदा हो।
तो ये समस्या बहुत ही गंभीर समस्या है! और एक बच्चे का आत्महत्या करना, बहुत ज्यादा है! एक का भी नहीं होना चाहिए! ये उम्र नहीं है उन चीजों की। अंधेरे की उम्र नहीं है, ये उजाले की उम्र है। और अगर जिस सोसाइटी में ये हो रहा है, तो ये समझिए कि उस सोसाइटी में भी मोमबत्तियां बुझ रही हैं। किसी के पास वो मोमबत्ती जलाने के लिए जली हुई मोमबत्ती नहीं है। कितना जरूरी है कि जलती हुई मोमबत्ती हो, ताकि और लोग भी उससे जला सकें। और ये बहुत ही, बहुत ही जरूरी बात है कि — जब — देखिए! आशा एक ऐसी चीज है कि जब आशा हमारी जिंदगी से चली जाती है तो अंधेरा बहुत गंभीर हो जाता है। और आशा हमारी जिंदगी से कभी नहीं जानी चाहिए। आशा की हमको जरूरत है। क्योंकि जब आशा चली जाती है तो निराशा बैठ जाती है। जब निराशा बैठ जाती है तो अंधेरा हो जाता है। जब अंधेरा हो जाता है तो फिर दिखाई नहीं देता है, कहां जा रहे हैं ? और ऐसी ठोकर कि जब जिंदगी और अंधेरे में भी कोई अंतर नहीं दिखाई देता है तो फिर सबकुछ खतम!