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कामयाबी (Kaamyaabi) 00:09:12 कामयाबी (Kaamyaabi) ऑडियो अवधि : 00:09:12 आज जो तुम्हारे जीवन में असफलता आती है — कभी भी आती है तो तुम हार क्यों मान लेते ...

प्रेम रावत:

अगर मनुष्य को देखा जाए तो हर एक मोड़ पर मनुष्य हार मान लेता है। वो कहता है कि मैं अब आगे नहीं जा सकता। भगवान से प्रार्थना करता है, मंदिरों में जाता है, मन्नतें मांगता है। क्या-क्या नहीं करता है ? क्योंकि वो समझता है कि वो आगे नहीं चल सकता। जीवन में समस्याएं आती हैं और जितनी बड़ी समस्या होती है, उतना ही वो अपने आपको छोटा पाता है।

पर एक बात मैं कहना चाहता हूं और वो बात ये है कि एक समय था, जब एक व्यक्ति, जिसको भगवान के बारे में नहीं मालूम था। दुनियादारी के बारे में नहीं मालूम था। कौन-सा हवन करूं, कौन-सा यज्ञ करूं — कुछ नहीं। वो किसी गुरु के पास जाकर के सत्संग नहीं सुन सकता था। वो किसी inspirational speaker के पास जाकर के कोई उसका लेक्चर नहीं सुन सकता था।

पर उसके जीवन के अंदर एक ऐसा मौका आया, जिसको पूरा करने के लिए उसकी सारी शक्ति लगी। और कितनी ही बार — एक बार नहीं, दो बार नहीं, तीन बार नहीं, चार बार नहीं। कितनी ही बार वो कामयाब नहीं रहा। परंतु फिर भी उसने हार नहीं मानी। वो कौन था ? हम सब थे। और बात कर रहा हूं मैं उस समय की, जब आप छोटे बच्चे थे। चलना सीख रहे थे। कितनी बार गिरे आप ? आपने कोशिश की खड़ा होने की, कदम लेने की और गिर गये। असफलता हर कदम में थी। टांगें — इनमें बल नहीं था कि तुम्हारा वजन उठा सके। तो जब बच्चे को देखते हो, जब खड़े होने की कोशिश करता है तो वो हिलता है। क्योंकि उसके पैर अभी इतने मजबूत नहीं हैं और असफलता हर कदम में। परंतु वो कभी अपनी हार को नहीं मानता है।

आप जितने भी यहां बैठे हुए हैं, आपके साथ यही हुआ है। अब आपको याद हो या न हो, पर हुआ। और असफलता हर एक कदम में — उठे, कोशिश की, गिरे! कई बार रोये भी!

मां ने कहा, "बेटा! उठ! कोशिश कर! अच्छा बच्चा है, अच्छी बच्ची है।"

वो समझ में नहीं आया, क्या कहा, पर कोशिश की। हार नहीं मानी। हार नहीं मानी तो फिर उठने की कोशिश की। फिर असफलता मिली। फिर कोशिश की। फिर असफलता मिली! फिर एक दिन उन सारी असफलताओं के बावजूद — क्योंकि आपने हार नहीं मानी, उसका परिणाम क्या हुआ ? उसका परिणाम हुआ कि एक दिन आपने एक कदम लिया और आप नहीं गिरे! फिर दूसरा कदम लिया और आप नहीं गिरे। फिर तीसरा, फिर चौथा, फिर पांचवां, फिर छठा! और आपने क्या हासिल कर लिया ? आपने चलना हासिल कर लिया। और जिस दिन आपने चलना हासिल कर लिया, उस दिन आपने अपने आपको एक ऐसा तोहफा दिया, ऐसी कामयाबी पायी कि आपने संसार में एक ताला ऐसा खोल दिया कि अब आपके पास स्वतंत्रता थी कि आप जहां जाना चाहें, आप जा सकते हैं।

और इसका मूल कारण क्या था ? असफलता या हार न मानना! असफलता तो थी! जैसे ही पहली बार कोशिश की — भड़ंक! दूसरी बार कोशिश की — भड़ंक! उसके बाद ऐसी भी हालत आयी कि एक कदम लिया और फिर — धड़ाम, फिर खत्म! तो ये तुम्हारे साथ हुआ ?

फिर क्या हुआ ? उसके बाद तो तुमको पता लग गया — भगवान कौन है, क्या है, कहां रहता है। वो ऊपर रहता है, ये होता है, वो होता है। पाठ है, पूजा है, पंडित हैं! और हार माननी शुरू कर दी! एक तरफ ज्ञानी बने। और ज्ञानी कैसे बने ? जैसे ही ज्ञानी बने, पहले अज्ञान के कुएं में छलांग मारी। मारी कि नहीं मारी ? उस बच्चे का अज्ञान देखो! उसे न मालूम है, न परवाह है। उसे न मालूम है, न परवाह है, परंतु एक चीज उसने हासिल की, तुमने हासिल की! तो आज जो तुम्हारे जीवन में असफलता आती है — कभी भी आती है तो तुम हार क्यों मान लेते हो ? जब तुमको मालूम है कि तुम्हारे जीवन में एक ऐसा हादसा हुआ है, जिसमें तुमने कभी हार नहीं मानी और हार न मानने की वजह से, उसकी सफलता तुम्हारे जीवन भर साथ है। ये सच्चाई है! ये कहानी नहीं है।

ये कामयाबी — क्या सबकुछ इतना बदल गया है कि वो कामयाबी आज संभव नहीं है तुम्हारे जीवन में ? पर किन बातों में फंस गये हो ? क्या है तुम्हारी सोच ? 

आनंद की खोज 00:09:06 आनंद की खोज ऑडियो अवधि : 00:09:06 हर एक मनुष्य को किसी न किसी चीज की तलाश है। क्या है वो चीज जिसको खोज रहे हैं लोग...

संसार के अंदर अगर देखा जाये तो हर एक मनुष्य को किसी न किसी चीज की तलाश है। खोज रहे हैं लोग! खोज रहे हैं लोग पर प्रश्न ये उठता है कि किसको खोज रहे हैं ? क्या वो चीज है जिसको खोजा जा रहा है ? किसकी खोज  है ? 

कबीरदास जी का एक भजन है कि —

पानी में मीन पियासी, मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी। 

पहले एक बात स्पष्ट हो जाये कि वो किस मीन की बात कर रहे हैं ? कौन है वो मीन ? कौन है वो मीन ?. . .

भजन : 

पानी में मीन पियासी, पानी में मीन पियासी 

मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी, मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी . . .

 

प्रेम रावत: 

कौन है वो मीन ? कौन है वो पानी ? तुम हो वो मीन। तुम्हारी बात हो रही है। ये भजन कबीरदास जी ने तुम्हारे लिये लिखा है—

भजन : 

                              पानी में मीन पियासी, पानी में मीन पियासी 

                            मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी, मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी  . . . 

 

प्रेम रावत:

आतमज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।  

कैसे ? 

मृग-नाभि में है कस्तूरी, बन-बन फिरे उदासी।। 

तुम कभी उदास हुए हो अपनी जिंदगी के अन्दर ?

 

भजन : 

                        आतमज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।...

                         मृग-नाभि में है कस्तूरी, बन-बन फिरत उदासी।।

 

प्रेम रावत:

मृग भी तुम हो और ये है वो वन। ये संसार है वो वन। तुम हो वो मृग। तुम्हारे ही अन्दर वो कस्तूरी है। 

                      मृग-नाभि में है कस्तूरी, बन-बन फिरे उदासी।। 

वन में फिरता है चेहरा लटकाए। क्या होगा ? क्या हाल होगा मेरा ? क्या करूंगा मैं ? चिंता लगी रहती है चिंता! सबको चिंता खाती रहती है, खाती रहती है, खाती रहती है, खाती रहती है। 

                               आतमज्ञान बिना नर भटके, 

क्या मतलब हुआ ? तुमको आत्मा का ज्ञान है ? बात आत्मा की नहीं है, बात है आत्मज्ञान की। क्योंकि बिना ज्ञान हुए तुम समझ नहीं पाओगे कि क्या, क्या है। तुम कौन हो ? जो तुम अपने आपको समझते हो तुम वो नहीं हो। जो तुम अपने आपको समझते हो तुम वो नहीं हो! तुम क्या हो ? इसको समझने के लिए तुम्हारे अंदर स्थित जो चीज है जब तक तुम उसको नहीं समझोगे तो तुम समझ नहीं पाओगे कि क्या है। 

 

भजन :

                  जल बिच कमल, कमल बीच कलियाँ, ता पर भँवर लुभासी। 

सो मन बस तिरलोक भयो सब, यती सती संन्यासी। 

                   आतमज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।।

        

तो फिर बात आती है कि — 

                     जल बिच कमल, कमल बीच कलियाँ, ता पर भँवर लुभासी। 

भंवर कौन है ? हम सब लोग हैं। भौंरा है उस कमल के आगे-पीछे, आगे-पीछे, आगे-पीछे दौड़ रहा है। 

                       जल बिच कमल, कमल बीच कलियाँ, ता पर भँवर लुभासी। 

                         सो मन बस तिरलोक भयो सब, यती सती संन्यासी। 

इसमें सब आ गये। सबका मन भाग रहा है। विषयों में भाग रहा है। सब भाग रहे हैं। सब भाग रहे हैं, सब दौड़ रहे हैं। सब खोज रहे हैं। जैसे भौंरा खोजता है न कि कहां है वो मीठा-मीठा जो पानी है उस कमल के अंदर, उसको ढूंढता है। कमल कभी इधर जाता है, कभी उधर जाता है। भौंरा जो है उस कमल के अंदर, जो वो मीठा — उस फूल के अंदर जो मीठा-मीठा शहद है उसका, उसको पाने के लिए कभी इधर जाता है, कभी उधर जाता है, कभी इधर जाता है, कभी उधर जाता है। और तुम्हारा भी यही हाल बताया है। तुम भी, उस माया रूपी पानी का तुमको स्वाद लग गया। अब जहां वो मिले वहीं तुम जाते हो। वहीं तुम भंवराते हो, वहीं तुम नखरे करते हो, सबकुछ वहीं होता है। और ऐसे ही मन तीनों लोकों में घूमता रहता है, घूमता रहता है, घूमता रहता है, घूमता रहता है। और उसमें कौन आ गया ? 

सब आ गये — यती, सती, सन्यासी। 

विधि हरि हर जाको ध्यान धरत हैं,  

निश दिन — हर एक दिन। 

मुनिजन सहस अठासी। 

सोई हंस तेरे घट माहीं, 

तेरे, तेरे, तेरे — हर एक व्यक्ति के लिए कहा है। 

सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख. . . 

जिसकी कोई परिभाषा नहीं है। जिसके बारे में तुम किताब नहीं लिख सकते। वही अलख पुरुष अविनाशी। तुम बताओ, तुम किस चीज को जानते हो जो अविनाशी हो ? जहां तक तुम देख सकते हो, चंद्रमा को देखते हो, सूरज को देखते हो, तारों को देखते हो, पेड़ों को देखते हो, धरती को देखते हो, आकाश को देखते हो, इन सबका नाश होना है। ये मैं नहीं कह रहा हूं। ये सबका नाश होना है। ये सारे वैज्ञानिक कहते हैं कि इन सबका नाश होगा, क्योंकि जो बना है उसका नाश जरूर होगा। परंतु ऐसी चीज जो बनी नहीं, जो अविनाशी है, जिसका कभी नाश नहीं होगा, तुम जानते हो ऐसी चीज ? क्योंकि वो चीज जिसकी दुनिया को तलाश है, जिसकी तुमको तलाश है, जिसकी हर एक व्यक्ति को तलाश है, वो तुम्हारे घट के अंदर ही बैठा है।

 

भजन :

                       है घट में पर दूर बतावें, दूर की बात निरासी। 

क्षमा की तलवार 00:07:05 क्षमा की तलवार वीडियो अवधि : 00:07:05 क्षमा — उस कार्य से अपना सम्बन्ध तोड़ना है जो आपको पीछे खींच रहा है।

MC:  ग्रैहम रिचर्ड्स:

और ये भी सवाल पूछा गया था, “अगर आपके लिए माफ करना मुश्किल है तो बाकियों को माफ करना और भी कठिन है ? इसे उस तरफ मोड़ना, जिस व्यक्ति को आप सबसे अच्छी तरह जानते हैं, जिसे आप सबसे ज्यादा परखते हैं। आप खुद को कैसे माफ करें ?”

प्रेम रावत:

देखिये! ये एक बढ़िया सवाल है, क्योंकि ये इतना जरूरी है खुद को माफ कर पाना और मैं कहूंगा ‘आपको और किसी और को’ बात में नहीं लाते। बात करें सिर्फ माफ करने की। ‘ये क्या है ?’

और कई लोग सोचते हैं “माफी देने से, निचले स्तर को बढ़ावा मिल जाएगा। किसी की गलती को बढ़ावा मिल जाएगा।” ये माफी देना नहीं है। “माफ करना” होता है उस चीज से नाता तोड़ना, जो आपको नीचे धकेल रहा है।”

तो अब जो भी और जानते हैं किसी ने आपके साथ बहुत बुरा किया और वो काफी लम्बे समय पहले हुआ था। पर, उस व्यक्ति का आप पर अब भी असर है। उनकी आप पर पकड़ है। पूरी तरह से। क्योंकि हर रोज जब आप उठते हैं, तो शायद, एक अकेले पल में आप उसे गाली देते हैं; आप उसके बारे में सोचते हैं। वह व्यक्ति आप से अब भी जुड़ा हुआ है। और माफी कह रही है “और नहीं! आपका मुझ पर नियंत्रण नहीं है। मुझे जीवन चाहिए। मुझे मेरा जीवन दें। और मैं आपको हक़ नहीं देता, इसके बाद मुझे डराने का।” ये होता है माफ करना।

तो ऐसा नहीं, वो ऐसा कहती है कि “ओह, हां! मैं तुम्हें जानती हूं।” हां, मेरा मतलब, मेरे हिसाब से ये है। मेरा मतलब, मेरे साथ एक बार बहुत बुरी चीज हुई। और फिर हर बार मैं उसके बारे में सोचता ये होता कि, "हे भगवान, हे भगवान, हे भगवान!”

फिर मैंने कहा, “उस दुष्ट का अब भी मुझ पर नियंत्रण है। मैं तो उसके देश में भी नहीं हूँ। मैं उसे अपने ऊपर नियंत्रण नहीं होने दूंगा।” और मैंने कहा, “बस! ख़त्म!”

ये है माफ करना। माफ करना ताकतवर होता है। ये कहता है – “नहीं! मेरा जीवन मेरे पास है। बहुत धन्यवाद!”

वापिस – वापिस आ रहा है। क्योंकि अगर नहीं आये, फिर वो बेड़ियाँ रहेंगी और वो आपके साथ क्या करेंगी, ये बेड़ियाँ क्या करती हैं, ये पंजे जो आप में गड़े हैं। ये आपको गुस्सा दिलाते हैं। इससे गुस्सा आता है; डर आता है; ये आपको सोचने नहीं देता; ये आपको आगे बढ़ने से रोकता है; ये सराहना को रोकता है।

आप डर में जीते हैं। आप सिर्फ और सिर्फ डर में जीते रहते हैं और वो व्यक्ति तो जा चुका है, पर वो पंजे गड़े हुए हैं और वो कह रहे हैं, “और नहीं। धन्यवाद!”

और जब आप माफी को इस तरह देखते हैं, इसका एक बिल्कुल अलग मतलब निकलता है। क्योंकि अब तक तो ऐसा था जैसे कि — “ओह! मैंने माफ कर दिया, और जानते हैं ठीक है! अच्छा ये क्या किया तुमने।”

पर जानते हैं, ऐसी चीजें होती हैं आपके साथ जीवन में, जो अगर आप बात करें दूसरों के काम को अपनाने की, तो ऐसा नहीं होगा, बिल्कुल भी नहीं! ऐसा बिल्कुल नहीं होगा। क्योंकि आप उनमें से कुछ चीजें नहीं मान सकते, वो इतनी बुरी होती हैं। और आप खुद को शिकार नहीं बनने दे सकते, क्योंकि कुछ चीजें ऐसी है, जो आप स्वीकार कभी नहीं कर पाएंगे कि "हां! ये ठीक है!" पर ये आप पर है कि उस व्यक्ति के पंजे और उस घटना का अब भी आप पर पकड़ रहे या नहीं। क्योंकि अगर आप नहीं करते तो इस्तेमाल करें, माफी की तलवार को और आज़ाद हो जाएं।

तो मैं माफी को ऐसे देखता हूँ। ऐसे नहीं कि — "हां! ये तुमने किया!" क्योंकि कुछ बातें बहुत बुरी होती हैं। और आप देखते हैं उन्हें होता हुआ देखें, इतनी जगह पर।

एक और तरीका समझने का है, एक दिन बुद्ध चल रहे थे और कई लोग उन्हें भला-बुरा बोल रहे थे। उनके भक्त जो उनके साथ थे, वापिस आ गए और उन्होंने कहा — “बुद्ध, वो लोग इतनी बुरी चीजें कर रहे थे, बुरी बातें कह रहे थे, आपको इससे फर्क़ नहीं पड़ता ?”

और बुद्ध ने कहा — “ओके, देखिये! ये कटोरा देखा! ये किसका है ?”

वो उनका ही था।

उन्होंने कहा — “हां! ये आपका है।”

तो उन्होंने कटोरे को अपने भक्त की तरफ सड़का दिया।

उन्होंने कहा — “अब ये किसका कटोरा है ?”

भक्त ने कहा — “अब भी ये आपका ही है।”

उन्होंने थोड़ा और सड़काया, अब ये किसका कटोरा है ? और अब किसका कटोरा है ? अब बताओ ? वो ये करते रहे और अंत में कटोरे को अपने भक्त की गोद में रख दिया।

उन्होंने कहा — “अब ये किसका कटोरा है ?”

उसने कहा — “बुद्ध! आप ही का है।”

उन्होंने कहा — “बिल्कुल, बिल्कुल! मुझे नहीं मानना। जिस दिन मैं मानूंगा, ये मेरा बन जाएगा। पर अगर मैं नहीं मानूंगा, वो तब भी उनका है।”

आप जानते हैं, मैं समझता हूँ, मेरा मतलब कभी-कभी ये कहानियां कहनी आसान होतीं हैं, बल्कि जीवन में उतारने से। पर, अंत में अगर आप अलग होने लगें, तो फिर शायद रस्सी इतनी मोटी हो जाए कि एक दिन आप काट न पाएं। पर कम से कम आप काटना शुरू तो करें। इसे समझना शुरू करें कि आपमें ताकत है रस्सी को काटने की। माफ करने का यही मतलब होता है… कि अंत में एक दिन आप रस्सी को कमजोर करेंगे और फिर ये कट जायेगी।

पर आपको शुरू करना होगा। आपको इसे समझना होगा।

सिक्के को पलटें 00:07:29 सिक्के को पलटें वीडियो अवधि : 00:07:29 अगर आपने सिर्फ अपनी बदसूरती का तज़ुर्बा किया है, फिर आपने सिक्का पलट कर नहीं देखा...

MC: ग्रैहम रिचर्ड्स

सवाल है “आप खुद से प्यार कैसे करें जब आप मानने लगें हैं कि आप बदसूरत हैं और एक विफलता ?”

प्रेम रावत:

अब, खुशकिस्मती से यह तथ्य नहीं, यह बस हमारी मान्यता है। मान्यता बदल सकती हैं।

मान्यता ऐसी होती है — और हां मैं एक बात कहता था। अगर मैं किसी के साथ बैठा हूं, कह सकता हूं, “सोचिये कि यहाँ एक गाय है, कोई दिक्कत नहीं; बस मान लीजिये कि यहाँ एक गाय है और यह गाय बहुत दूध देती है। बस मान लीजिये, ओके ?”

कोई परेशानी, नहीं ना ? पर अगर मुझे चाहिए चाय, असली चाय और कुछ दूध चाहिए। बात है कि इस मानी हुई गाय से असली चाय के लिए दूध नहीं मिलेगा। अब अगर मैंने मानी हुई चाय ली है, तो यह सोची हुई गाय थोड़ा सा दूध दे सकती है मेरी मानी हुई चाय के लिए, पर अगर मुझे असली चाय चाहिए तो ये काम नहीं करेगी।

‘मानने’ के बाद भी एक पड़ाव है, उसे कहते हैं 'जानना।' सच्चाई में जीना, और बस — क्योंकि कई लोग मुझसे कहते हैं जब मैं अपनी बात उनसे कहता हूँ कि “बस भी करिये; सच्चाई कहिये!” और बात ये है उनके डर के साथ वो लोग असल में सच्चाई से दूर हैं। वो लोग झूठ में जी रहे हैं।

आप जो चाहे वो मान सकते हैं। पर सच्चाई है क्या ? सच्चाई क्या है ? सच्चाई है कि अंधकार रोशनी से दूर नहीं होता।

पिछली बार जब आपने स्विच जलाया और अँधेरे कमरे में रोशनी की, कितनी देर लगी अंधकार को जाने में ? आपने लाइट बल्ब जलाया और बस हो गया। जजजजजजजजजजज...., जैसे जानते हैं एक ड्रेन ? बिलकुल नहीं, एकदम से, एकदम से!

अंधकार कभी रोशनी से दूर नहीं; रोशनी कभी अंधकार से दूर नहीं। जो ख़ुशी कभी उदासी से दूर नहीं और उदासी कभी भी ख़ुशी से दूर नहीं। ये साथ में रहते हैं।

जब आप बाथरूम में जाकर, दरवाजा बंद करते हैं, प्राइवेसी के लिए, आपको लगता है ये प्राइवेट है ? नहीं! आपका गुस्सा, आपका डर, आपका शक़, आपके साथ आये हैं। हालांकि आप अपने लिए बस या एयरोप्लेन में एक ही सीट बुक करते हैं, आपका गुस्सा, आपका डर, आपका शक़ हमेशा साथ में चलते हैं। हमेशा! हमेशा!

पर रहती है करुणा भी, रहती है समझ, रहती है कृतज्ञता। ये चीजें भी हैं क्योंकि ये सिक्के का दूसरा पहलू है।

आपको यह जानना है — अगर आपने सिर्फ अपनी बदसूरती का तज़ुर्बा किया है, फिर आपने सिक्का पलट कर नहीं देखा। आपको सिक्के को पलटना है। क्योंकि सिक्के की दूसरी तरफ कमाल की सुंदरता है।

सुंदरता क्या है ? क्या है सुंदरता ? कोई ऐसा जो सामान आकर का हो ? कोई फिल्म स्टार ? सुंदरता क्या है ? क्योंकि आप जानते हैं सच्चाई को, कितने फिल्मस्टार्स बेहद सुन्दर होते हैं, वो कई-कई घंटो तक खुद को शीशे में निहारते हैं कि “हे भगवान! क्या मैं हूं ये ? ये मैं हूं ? ये मैं हूं ?”

आप हैं रखवाले, अगर महसूस करें खुद में और देखें। मैं इस पर जाता रहता हूं और ये कमाल का सवाल है, क्योंकि इससे मुझे अपनी किताब के लिए बहुत कुछ मिलेगा — इसलिए आपको खुद को जानना होता है।

सॉक्रटीज़ ने कहा — "खुद को जानें!” आपको खुद को जानना है। आपको खुद को क्यों जानना है ? क्योंकि तभी तो आप खुद की असल सुंदरता को महसूस कर पाएंगे। इसलिए आपको खुद को जानना चाहिए।

अरबों वज़ह हैं मेरे मुताबिक, इस धरती पर 7.5 अरब वज़ह हैं, खुद को जानने की, कि आपको खुद को जानना क्यों है ? क्योंकि अगर सब जानें तो मुझे लगता है दुनिया की स्थिति काफी अलग होती। अगर वो सुंदरता जो आपके मन में है, वो असल सुंदरता से भिन्न है।

आंखों को देखिये! इस कमाल को देखिये! ये बच्चे सुन्दर हैं, ये कुछ बढ़िया देखते हैं और हैरान होते हैं, बिल्कुल हैरान! और बिल्कुल, बेवकूफ माँ-बाप कहते हैं — “ये चाँद है।” उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता। वो अपने बेवकूफ पिता के कहने से पहले ही चाँद से प्यार करने लगे थे या बेवकूफ माँ ने कि “ये चाँद है।” उन्होंने चाँद देखा, उसका नाम जाने बिना और उससे प्यार कर बैठे। ये है सुंदरता! और आपमें वो सुंदरता है, चाहे और कोई कुछ भी कहे। आप उनसे कहीं बुरे हैं, क्योंकि आप खुद को लगातार बताते रहते हैं कि मैं सुन्दर नहीं, मैं सुन्दर नहीं…।

ये सुंदरता एक दिन चली जायेगी। वही लोग, जिसे लोग आकर चूमते हैं, वो कहेंगे, “आह! ये क्या हुआ ?”

तो ये नहीं है, ये सुंदरता वाला हिस्सा नहीं — सुंदरता का हिस्सा यहाँ है, आपके हृदय में! आपमें!

25,550 दिन 00:08:09 25,550 दिन वीडियो अवधि : 00:08:09 25,550 दिन। ये है उपहार! बड़ा उपहार!

बदलाव — बहुत से लोगों के लिए बदलाव एक ऐसी चीज है जिसे या तो लोग स्वीकार नहीं करना चाहते या उसके साथ बह जाते हैं। पर क्या हम सचमुच यह समझते हैं कि इसका क्या मतलब है, बदलाव क्या है ? 

क्योंकि जिस तरह हमारा अस्तित्व है, जिस तरह हम जीते हैं हम उस बदलाव के साथ होते हैं। अगर वह स्वांस आया अच्छी बात है — हम जीवित हैं। अगर यह गया तो हम मौत के बहुत करीब हैं हम नहीं जानते हैं कि वह कब आएगी। और फिर अगर यह आया तो वह हमारे लिए फिर एक मौका है जीवित होने का। और अगर यह गया और वापस नहीं आया तो वह एक बहुत बड़ा बदलाव होगा— यही है सभी बदलावों की जननी। 

पर यह हर समय, हर समय होता है, दिन-रात और हम इसे इस तरह नहीं देखते हैं। हम अपने जीवन को आंकड़ों के रूप में देखते हैं — 60 साल, 65 साल, 70 साल औसतन।

 

साक्षात्कार:

महिला: कितने दिन...

महिला: अरे बाप रे!

महिला: अब वो तो हमें मल्टीप्लाई करना पड़ेगा। 

पुरुष: 18,000

पुरुष: 60 से 70 साल।

महिला: 70 years x 365 days + लीप ईयर काउंट so you add one day.

महिला: close to one lakh.

पुरुष: 50,000

पुरुष: 15 to 16,000

पुरुष: 15,000

पुरुष: 15 to 20,000 days.

पुरुष: 1,00,000 days.

महिला: I don't know...कितने हुए।

पुरुष: 20,000 days.

पुरुष: 25 to 30,000

महिला: 50,000

पुरुष: इतने ही अराउंड 50,000.

महिला: नहीं, इतना तो कभी calculate नहीं किया।

पुरुष: 100, 200, 250 करोड़।

पुरुष: Yah exactly same.

महिला: एक्चुअली calculation तो हमारी years की है डेज़ तो calculate किये नहीं।

 

मैं आपको अर्थशास्त्र का एक पाठ पढ़ाता हूं। अगर मैं आपसे कहूं कि आपको 25,550 रुपये मिलने वाले हैं, क्या ये बहुत सारे रुपये हैं ? 

कुछ लोगों के लिए ये बहुत सारे रुपये हैं। कुछ लोगों के लिए ये बहुत सारे रुपये नहीं हैं। 25,550 रुपये में आप एक घर, एक गाड़ी, एक रेफ्रिजरेटर और एक वॉशिंग मशीन नहीं खरीद सकते हैं और बहुत दिनों तक अपना भोजन नहीं खरीद सकते हैं। 

मेरा मतलब है, आज के जमाने में 25,550 रुपये बहुत ज्यादा नहीं हैं। और अगर आपके पास इतने ही रुपये हैं, बस यही हैं आपको और नहीं मिलने वाले हैं, तो मुझे लगता है कि आप काफी उदास हो जायेंगे क्योंकि ये ज्यादा दिन तक नहीं चलने वाले हैं। मेरा मतलब घूमना-फिरना तो भूल जाइए। हो सकता है आपको दुकान तक पैदल चलकर जाना पड़े। ऐशो-आराम की सारी चीजें तो भूल ही जाइए। 

तो मैं आपसे क्यों बात कर रहा हूं 25,550 रुपये की ? इससे आपका क्या मतलब है ? 

मतलब है, रुपये नहीं कुछ और। औसतन रूप से अगर मनुष्य 70 साल तक जीवित रहता है तो इस तरह आपको मिलते हैं 25,550 दिन! बस। 

 

साक्षात्कार:

महिला: 25,550 दिन।

पुरुष: 70 years तो काफी कम हैं मतलब।

पुरुष: मैं generally ये expect करके चल रहा था कि मैं 30,000 दिन तो जीऊंगा।

महिला: Life is too short.

पुरुष: हां, वही मतलब।

पुरुष: Enough me यार! और भी चाहिए मुझे क्योंकि मेरे गोल बहुत हैं तो मुझे और बहुत सारे डेज़ चाहिए।

महिला: 25,550 तो सच में कम लग रहा है। सोचा नहीं था इतना कम परbut I think 75 years तो बहुत लगता है लेकिन 25,550 कम लग रहा है। 

पुरुष: हम ऐसे नॉर्मल सोच रहे थे 80,000-90,000 बट ऐसा आपने बताया 70 years x 365 = 25,000 तो obviously. 

पुरुष: बस इतने से ही दिन है 25,550 दिन। मुझे लगा 70 साल बहुत ज्यादा होते हैं। 

 

आप जीवित हैं। और बहुत से लोगों के लिए ये कोई जमीन को हिला देने वाला संदेश नहीं है। तो जरा सोचिए इसके बारे में! अगर कोई आपसे कहे आप मरने वाले हैं। ये जमीन को हिला देने वाली खबर है। तो ये उल्टी बात क्यों है ? अगर एक डॉक्टर आपसे कहे आप सिर्फ दो महीने और जीयेगें तो लोग कहेंगे, हे भगवान! 

जब हम जीवित होते हैं तो क्या हम इस बात को समझते हैं कि जीवित होने का क्या मतलब है ? या क्या ये बात तभी हमारे दिमाग में घुसती है जब इसकी संभावना समाप्त हो जाती है ?

 

साक्षात्कार:

महिला: Of courseअब मुझे लग रहा है कि हां इतना कम दिन है हमारे पास। इसको जितना, जितना ज्यादा जी लो उतना ही अच्छा है।

महिला: अगर आपको पता ही है कि definitely सिर्फ इतने ही दिन हैं then मेरे ख्याल से आपको किसी की हेल्प करनी चाहिए जो less fortunate हैं।

पुरुष: कोई टेंशन नहीं है। इस बात की टेंशन नहीं है दिन कितने गुजार दिये, जितने बचे हैं उन पर concentrate अपना।

महिला: छोटी-छोटी चीजों की वैल्यू पता लगनी शुरू हो जायेगी just क्योंकि तुमको पता है कि तुम्हारे पास अब कम टाइम है।

पुरुष: तो मेरे पास 25,550 दिन हैं तो मैं पूरी कोशिश करूंगा मैं उतने में ही अपना गोल अचीव करू लूं।

महिला: मायने तो यही है हर दिन को वैल्यू करेंगे और हार्ड वर्क करेंगे अपनी सारी ड्रीम्स को फुलफिल करेंगे। 

महिला: मैं calculate करने लग जाऊंगी obviously कि मुझे क्या-क्या चीजें कितने-कितने टाइम तक क्या-क्या करना है और कितनी जल्दी मुझे क्या-क्या चीजें अचीव करनी है तो obviously मैं वो चीज अपने माइंड में calculate करने लग जाऊंगी।

पुरुष: मैं और ज्यादा livingly जीऊंगा। ऐसे अभी कोई फालतू चीजों में टाइम वेस्ट कर देता हूं। उससे ज्यादा मैं चीजों को पकड़कर और ज्यादा इंजॉय करूंगा each and every secondको मैं इंजॉय करना शुरू कर दूंगा। 

 

मेरे दोस्तों आप क्या खरीदना चाहते हैं उन रुपयों से जो आपको मिल रहे हैं हर दिन 25,550 दिनों तक ? 

मैं उससे खरीदना चाहता हूं — सच्चा आनंद। मैं अपने लिए संतुष्टि पाना चाहता हूं। 

कल कैसा होगा ? 

एक मायने में आज से अलग नहीं और बीते हुए कल से अलग नहीं। और अगर आप संतुष्ट हैं तो ये बिल्कुल अलग होगा। ये आज से अलग होगा। और ये बीते हुए कल से अलग होगा। और उसके पिछले दिन से अलग होगा और फिर भी हम गिन नहीं सकते 25,550 दिन। इससे आपको कोई फर्क नहीं पड़ता। ये है उपहार! बड़ा उपहार! बहुत बड़ा नहीं लेकिन बड़ा। 25,550!

सफलता (Safalta) 00:05:54 सफलता (Safalta) वीडियो अवधि : 00:05:54 हमें जिन्दगी में ऐसी कौन-सी और कब ऐसी सक्सेस मिलेगी जिसमें हम कम्प्लीटली सैटिस्फ़...

प्रश्नकर्ता : अंकिता

हैलो! प्रेम रावत जी, मेरा नाम अंकिता है और मैं एक स्टूडेंट हूं। मैंने आपके प्रोग्राम को बहुत बार सुना है और इतनी बार सुनने के बाद मेरे मन में एक क्वेश्चन आया है, जो कि मैं आपसे पूछना चाहती हूं। लोग जॉब करते हैं, पढ़ाई करते हैं, सबकुछ करते हैं सिर्फ सक्सेस पाने के लिए। क्योंकि उनका मेन मोटिव होता है that is to only achieve success, at onceलोग सक्सेसफूल हो जाते हैं। पर तब भी उन्हें सैटिस्फैक्शन नहीं होती है। They are always dissatisfied. कई लोग होते हैं कि सक्सेसपन नहीं मिलती तो डिप्रेशन में चले जाते हैं। तो मेरा क्वेश्चन यह है कि ये सैटिस्फैक्शन, मतलब हमें जिन्दगी में ऐसी कौन-सी और कब ऐसी सक्सेस मिलेगी जिसमें हम कम्प्लीटली सैटिस्फ़ाइड रहेंगे ?

प्रेम रावत:

चार चीजें — किसी भी मनुष्य के जीवन में स्थापित हो जाएं तो सारा रूख बदल जाए। अब मैं ये चार चीजों के बारे में इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि ये हमारे स्केल में नहीं हैं। जो हम लाइन बनाते हैं, उसमें नहीं है। और लाइन हो या न हो; आप अमीर हों या न हों; आप सक्सेसफुल हों या न हों; इससे कोई मायने नहीं रखता। ये आपकी चार निज़ी चीजें आपके अंदर होनी चाहिए।

सबसे पहली बात कि मनुष्य अपने आपको जाने! 

दूसरा — उसके जीवन में आभार होना चाहिए। आभार! तो इसका मतलब है कि आप अपने बच्चे को, जिसने शैतानी की है, जिसको आप डाँटना चाहते हैं — डाँटने से पहले आप यह सोचें कि ये जो बच्चा है आपका, आपके जीवन में है, क्या आपके हृदय में इसके प्रति आभार है या नहीं ?

महिला एंकर : बच्चे के प्रति! 

प्रेम रावत:

Are you thankful for your child ? किसी से आप लड़ने जा रहे हैं। आप भी जीवित हैं, वो भी जीवित है। क्या आपके जीवन में आपके जीने का आभार — इसका अनुभव करते हैं या नहीं ? आभार! To be thankful! इस जीवन के अंदर!

तीसरी चीज है कि आप अपने जीवन में असफलता को कभी स्वीकार न करें। आप अपने जीवन में असफलता को कभी स्वीकार न करें। असफलता हो — मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप कभी असफल न हों। नहीं। आप असफल तो होंगे। सफल भी होंगे, असफल भी होंगे। परंतु जब आप असफल हों तो उस असफलता को कभी स्वीकार न करें। 

उदाहरण देता हूं मैं। जब आप, सभी लोग, सारे श्रोता जब आप बच्चे थे और आपने चलना सीखा, तो आप खड़े हुए। सबसे पहले खड़े हुए! फिर आपने थोड़े हिलकर के कदम लिए और आप गिर गए। असफल हुए। तो आप बैठ गए ? फिर खड़े हुए। तो आपके अंदर एक समय था कि ऐसी प्रेरणा थी कि असफल होते हुए भी आपने असफलता को कभी स्वीकार नहीं किया और फिर खड़े हुए और फिर खड़े हुए, और फिर खड़े हुए, और फिर खड़े हुए। और एक दिन आपने चलना सीख लिया। जब आपने बाइसकिल चलाना सीखा, साइकिल चलाना सीखा, आप गिरे, पर आपने कभी उस असफलता को स्वीकार नहीं किया। तो ये सफल होना और असफल होना, अपने में एक बात है और उस असफलता को स्वीकार करना अपने में दूसरी बात है। और आप अपने जीवन के अंदर असफलता को स्वीकार न करें।

और चौथी चीज — आपके बारे में कोई क्या सोचता है, इससे आपको मतलब नहीं होना चाहिए। 

पुरुष एंकर :  बहुत अच्छी आपने यह बात बोली।

प्रेम रावत :  तो ये चार चीजें अगर मनुष्य के जीवन में हो जाएं...

महिला एंकर : यही नहीं हो पाता। कोई आपके बारे में क्या सोचता है, इससे बहुत फर्क पड़ता है। 

पुरुष एंकर : हमारा ज्यादा वक्त इसी में निकल जाता है कि लोग हमारे बारे में क्या सोच रहे हैं।

प्रेम रावत:

जो आप सोच रहे हैं, वो आप सोच रहे हैं और जो आपको मालूम है, वो उसको नहीं मालूम है, जिसके बारे में आप सोच रहे हैं कि वो मेरे बारे में क्या सोच रहा है। तो वो क्या सोच रहा है ? वो सोच रहा है — किस फिल्म को देखने जाएं ? क्या खाएं ? आपके बारे में थोड़े ही सोच रहा है ? वो अपने सोच में मस्त है! परंतु आप बैठे-बैठे ये सोच रहे हैं कि वो मेरे बारे में क्या सोच रहा है, जबकि आपको नहीं मालूम कि वो नहीं सोच रहा है। परंतु फिर भी, क्योंकि आप हैं। आप कह रहे हैं, ‘‘अच्छा, मैं — ये सोच रहा होगा। ये सोच रहा होगा। क्योंकि, मैं होता तो मैं ये सोचता।’’ परंतु ये सबकुछ हो नहीं रहा है। ये सिर्फ एक इमेजिनेशन है आपके दिमाग में कि ऐसा होगा, ऐसा होगा, ऐसा होगा, ऐसा होगा। परंतु ये सारी चीजें दरअसल में नहीं होती हैं।

सफलता की जो लाइन है, जो दर्ज़ा है, वो हमसे शुरू होना चाहिए। किसी और से नहीं। तो ये चीजें अगर हम जरा ध्यान में रखें और अपने हृदय में हमेशा आभार! हर एक चीज की — हमारी माता हैं, हमारे पिता हैं, हमारे भाई हैं, हमारे बंधु हैं। अपने जीवन में जो कुछ है — जो कुछ नहीं है, नहीं। जो कुछ है, उसके लिए आभार है या नहीं ?

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